भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हर तरफ़ उनके तहलके हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |संग्रह=पेड़ नह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:36, 30 मई 2012 के समय का अवतरण
हर तरफ़ उनके तहलके हैं
फ़ायदे ये भी पहल के हैं
कौन ज़िन्दा है यहाँ अब तो
मौत के घर ये दहलके हैं
बाढ़ में तो बस्तियाँ डूबीं
और चर्चे जलमहल के हैं
ज़िन्दगानी तक पहुँच पाना
काम क्या इतने सहल के हैं
ढूँढ़ अफ़साने कई होंगे
शेर ये भी तो ग़ज़ल के हैं