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{{KKRachna
|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
}}
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खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा है |
लहर जो लेता है उसकी, वही दुनियां से न्यारा है ||
भरम के परदे फट जाते, सच्ची मुक्ति वह मानू ||
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