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(साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के सभागार में हाइकु दिवस समारोह)
 
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== ‘‘पासपोर्टका रङहरू‘‘विमोचन समारोह ==
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अप्रैल 07, 2007 शनिवार को जेसीज भवन इटहरी में कुमुद अधिकारीद्वारा अनूदित व सम्पादित श्री तेजेन्द्र शर्मा की बारह कहानियों का संग्रह पासपोर्टका रङहरू का विमोचन कार्यक्रम आयोजन साहित्यसञ्चार समूह इटहरी ने किया। कृति का विमोचन वरिष्ट कवि एवं साहित्यकार श्री कृष्णभूषण बल ने किया। विमोचित कृति के समीक्षकों में से तीन प्रमुख थे – श्री कृष्ण धरावासी, श्री भूषण ढुङ्गेल और श्रीमती ज्योति जङ्गल। उनके विचार सारांश में इस प्रकार थे-  
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==पाँच सितारा होटल में नए मौसम के फूल==
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उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को जन्मे शायर मुनव्वर अली राना की शायरी की 16 और गद्य की 1 यानी अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाल ही में दिव्यांशु प्रकाशन. लखनऊ से उनकी शायरी की नई पुस्तक प्राकाशित हुई है – ‘नए मौसम के फूल’ । मुम्बई के पाँच सितारा होटल सहारा स्टार में शनिवार 21 मार्च को आयोजित एक भव्य समारोह में सहारा इंडिया परिवार के  डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर श्री ओ.पी.श्रीवास्तव ने इस पुस्तक का विमोचन किया । श्रीवास्तवजी ने इस अवसर पर साहित्य, सिनेमा, मीडिया और व्यवसाय जगत की जानी मानी हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस तरह स्लमडॉग मिलेनियर के जमाल के लिए ज़िंदगी ही सबसे बड़ी पाठशाला है, उसी तरह मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना भी ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है । श्रीवास्तवजी ने उनके कुछ शेर भी कोट किए-
  
श्री धरावासीः
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बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
  
1. तेजेन्द्र की कहानियां बहुत प्रभावशाली व सामयिक हैं। उनकी कहानियां पढ़ने से लगता है, हम खुद उनके पात्र हैं और वैसी ही जिन्दगी जी रहे हैं। जो हम भोग रहे हैं वही सत्य है। उनकी कहानियों में दूसरी महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने वही लिखा है जो देखा हैं जो भोगा है। वे नोस्टाल्जिया और कोरी कल्पना के शिकार नहीं हैं।
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बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है
  
2. उनकी कुछ कहानियों के थिम पश्चिमी परिवेश में नयीं लगती हैं पर हैं नहीं। जैसे ‘कोखको भाडा‘ में पैसे लेखर बच्चा जनने की बात श्रद्धेय मदनमणि दीक्षित के (नेपाली) उपन्यास ‘माधवी‘ में पहले ही आ चुकी है। उस उपन्यास में श्यामकर्ण घोड़े के बदले कोख को किराए पर लगाने कि बात कही गई है। पर इस कहानी में कोख किराए में देने का मकसद महज प्यार है।
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कार्यक्रम के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने मुनव्वर राना का परिचय कराते हुए कहा कि उनकी शायरी में रिश्तों की एक ऐसी सुगंध है जो हर उम्र और हर वर्ग के आदमी के दिलो दिमाग पर छा जाती है । पाण्डेयजी ने आगे कहा कि शायरी का पारम्परिक अर्थ है औरत से बातचीत । अधिकतर शायरों ने ‘औरत’ को सिर्फ़ महबूबा समझा । मगर मुनव्वर राना ने औरत को औरत समझा । औरत जो बहन, बेटी और माँ होने के साथ साथ शरीके-हयात भी है । उनकी शायरी में रिश्तों के ये सभी रंग एक साथ मिलकर ज़िंदगी का इंद्रधनुष बनाते हैं । कार्यक्रम के संयोजक एवं स्टार न्यूज के वरिष्ठ सम्पादक  उपेन्द्र राय ने रानाजी का स्वागत करते हुए कहा कि वे हिंदुस्तान के ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर हैं जिसने ‘माँ’ की शख़्सियत को ऐसी बुलंदी दी है जो पूरी दुनिया में बेमिसाल है –
  
3. ‘पासपोर्टका रङहरू‘ की कहानियां पढ़ने से ऐसा लगता है कि ये कहानियां हिन्दी में न लिखकर नेपाली में ही लिखी गई हों। यहीं पर रुपान्तरकार ने अपनी खूबियां दिखाई हैं। यदि पात्रों व जगहों के नाम बदल दिए जाएं तो वे पूरी की पूरी नेपाली कहानियां बनती हैं।
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
  
4. कहानियों में बहुत सी जगहों पर हिन्दी शब्द हैं। रूपान्तरकार का उद्देश्य मूल हिन्दी के स्वाद को बरकरार रखना हो सकता है पर यह जरूरी नहीं था। फिर भी कोई किताब सौ फीसदी ठीक भी तो नहीं हो सकती।
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मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
  
श्री भूषण ढुङ्गेलः
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मंच पर लगे बैनर पर भी ‘माँ’ इस तरह मौजूद थी-
  
1. तेजेन्द्र की कहानियों में प्रवासी भारतियों की पीडा़ ज्यों कि त्यों दिखाई पड़ती है। ‘पासपोर्टका रङहरू‘ कहानी में इस बात को दर्शाया गया है की एक भारतीय कैसे जीता है पराए देश में।
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इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
  
2. मानवीय संबंधों के तानेबाने देखने को मिलते हैं उनकी कहानियों में। लोगों की भीड़ में अपनी पहचान ढूंढ़ते पात्र देखकर लगता है की हम सब भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
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माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है
  
3. कुमुद अधिकारी ने इन बारह शक्तिशाली कहानियों को नेपाली में अनुवाद कर नेपाली साहित्य को बहुत इज्जत दी है। वैसे मुझे नहीं लगा की मैं हिन्दी कहानियां पढ़ रहा हूं। उनका यह अनुवाद कार्य नेपाली और हिंदी साहित्य को जोड़ने के लिए एक और सेतु सिद्ध होगा।
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दरअसल पत्रकार उपेन्द्र राय ने अपनी जीवन संगिनी डॉ.रचना के जन्मदिन पर उनको 'शायरी की एक शाम' का नायाब तोहफा दिया था । उनकी तीन वर्षीय बेटी ऊर्जा अक्षरा ने जन्मदिन का केट काटकर 'माँ' लफ़्ज़ को सार्थकता प्रदान की । शायर मुनव्वर राना की रचनाधर्मिता और सरोकारों पर रोशनी डालते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने उन्हें काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया –
  
श्रीमती ज्योति जङ्गलः
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न मैं कंघी बनाता हूं , न मैं चोटी  बनाता हूं
  
1. मैं तेजेन्द्र की कहानियों से बहुत प्रभावित हुई हूं या यों कहें भीतर तक हिल गई हूं। मैं खुद औरत हूं पर अब लगता हैं की मैंने औरत की मजबूरियां और दर्द को समझा ही नहीं। उनकी कहानियां पढ़ने पर ऐसा लगा मानों उन सब कहानियों की औरत पात्र मैं ही हूं, वे सब दर्द मेरे हैं। औरतों की भावनाओं और दर्द को इस कदर उजागर करने के लिए तेजेन्द्र को बहुत बधाई।
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ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूं
  
2. कुमुद की सायद यह दूसरी अनुवाद कृति है। उनकी पहली कृति ‘जिंदगी एक फोटो-फ्रेम‘ बहुत से मायनों में सफल रही है। इसमें भी श्री अधिकारी ने वही उत्साह और दिलेरी दिखाई है।
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मुनव्वर राना ने काव्यपाठ की शुरुआत माँ से ही की-
  
कार्यक्रम के प्रमुख अथिति श्री कृष्णभूषण बल ने अपनी बात में रुपान्तरकार के उत्साहको सराहते हुए सुझाव दिया कि हर पाँच कहानियां अनुवाद करने के वाद वे खुद अपनी एक कहानी लिखें। साथ ही साथ उन्होंने श्री तेजेन्द्र शर्मा को इतनी अच्छी कहानियों को नेपाली में रूपान्तर करने के लिए अनुमति प्रदान करके नेपाली पाठकों का जो सम्मान किया उसके लिए ढेर सारी बधाइयां दी और धन्यवाद व्यक्त किया।
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ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
  
कार्यक्रम के समापन वक्तव्य में सभापति श्री मनु मंजिल ने रूपान्तरकार की हिम्मत को दाद देते हुए कहा कि ऐसे मुश्किल कार्य में हाथ डालकर कुमुद ने काबिले तारिफ काम किया है। साथ ही उन्होंने लेखक श्री तेजेन्द्र शर्मा का भी तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।
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मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है
  
कार्यक्रम में साहित्यकार विवश पोखरेल, रश्मिशेखर, कृष्ण बराल, जी.बी लुगुन, तेराख, लीला अनमोल, दीपा अविरल, समुन्द्रा शर्मा, टीका सुवेदी, सुजात, वैदिक अत्रि, डम्बर घिमिरे, शर्मिला खड़का, रीता खत्री, शालिकराम ढकाल, कालीप्रसाद सुवेदी, छविनाथ रिजाल, रुद्र उप्रेती, ठमनाथ लम्साल, कृष्णविनोद लम्साल, चूड़ावसन्त लम्साल, टीका आत्रेय, टोलनाथ काफ्ले, रीता ताम्राकार आदि वरिष्ठ तथा सक्रिय साहित्यकारों के अलावा तकरीबन २५० साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।
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अपने डेढ़ घंटे के काव्यपाठ में राना ने उस आदमी की भी ख़बर ली जो ज़िंदगी की दौड़ में सबसे पीछे है-
  
इसके अलावा प्राध्यापक डा. गोपाल भण्डारी, डा. टङ्क नेउपाने की उपस्थिति विशेष अतिथि के रूप मे थी।
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सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर
कार्यक्रमका संचालन कवि और सप्तकोसी एफ.एम. साहित्यिक कार्यक्रम प्रस्तोता श्री एकू घिमिरे ने किया।
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दिनेश पौडेल,
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मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
  
सचिव,
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रानाजी के अनुरोध पर संचालक देवमणि पाण्डेय ने भी कुछ ग़ज़लें सुनाईं । कार्यक्रम के अंत में हास्यसम्राट राजू श्रीवास्तव और सुनीलपाल ने अपनी रोचक प्रस्तुतियों से माहौल को ठहाकों से सराबोर कर दिया ।
  
साहित्यसञ्चार समूह
 
  
इटहरी, नेपाल।
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== साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के सभागार में हाइकु दिवस समारोह==  
 
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Email: nibandhakar@yahoo.com
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== मॉस्को में हिन्दी महोत्सव ==
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आज रूस की राजधानी मॉस्को में  त्रिदिवसीय मॉस्को हिन्दी महोत्सव आरंभ हुआ। रूस में भारत के राजदूत श्री कंवल सिब्बल ने मॉस्को हिन्दी महोत्सव का उद्घाटन किया। महोत्सव में रूस और उसके पड़ौसी देशों कज़ाकिस्तान, बेलारूस, उक्रेन, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, लिथुआनिआ आदि के लगभग सौ हिन्दी विद्वान भाग ले रहे हैं।
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भारत के राजदूत श्री कंवल सिब्बल ने अपने.म्प3 भाषण में कहा कि इस नई सदी में जब पूरा विश्व एक गांव के रूप में सिमट आया है, यह ज़रूरी है कि हम एक दूसरे की संस्कृति को गहराई से समझें। मॉस्को हिन्दी महोत्सव इसी दिशा में एक नया कदम है।
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पिछले पचास वर्षों से हिन्दी से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार पद्मभूषण येव्गेनी चेलिशेव इस अवसर पर बेहद भावुक हो गये और उन्होंने कहा कि इतिहास चल रहा है, समय गुज़र रहा है, हिन्दी भी साथ साथ बढ़ रही है। इसी हिन्दी ने हमें यहां इकट्ठा किया है। उन्होंने निराला, मुक्तिबोध, नागार्जुन, पंत, बच्चन, श्रीकांत वर्मा, अज्ञेय जैसे महारथी साहित्यकारों से जुड़े  संस्मरण सुनाए।
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मॉस्को विश्वविद्यालय के एशियाई व अफ्रीकी अध्ययन संस्थान के डीन प्रो. मिखाइल मेयर ने कहा कि आज जब रूस और भारत के संबंध एक बार फिर अपने विकास के उच्च स्तर पर पहुंच रहे हैं इस तरह के सम्मेलन आ आयोजन एक सही समय है।
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हिन्दी व्याकरण के रूसी आचार्य श्री ऑलेग उलत्सीफेरोव ने बताया कि रूस में 1947 से हिन्दी  पढ़ाई जा रही है। इस बीच में रूसी विद्वानों ने हिन्दी के दस व्याकरण लिखे हैं, जिनमें सॆ 5 भारत में प्रकाशित हुए हैं।
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भारत से प्रो. वाई लक्ष्मी प्रसाद, प्रो. अशोक चक्रधर, डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, डॉ. विमलेश कांति वर्मा और मधु गोस्वामी इस महोत्सव में भाग लेने गए हुए हैं।
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रूसी साहित्य के प्रसिद्ध अनुवादक श्री मदनलाल मधु को रूस आए पूरे पचास साल हो गए। पूरे सभागार ने इस अवसर पर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. सराजू ने बताया कि यह सम्मेलन तीन दिन तक चलेगा और इसमें विदेशों में हिन्दी शिक्षण पर व्यवहारिक चर्चाएं होंगी। 
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रूस स्थित भारत मित्र समाज ने भारत के विदेश मंत्रालय और रूस स्थित जवाहर लाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र, भारतीय दूतावास, के साथ मिलकर इस महोत्सव का आयोजन किया है।
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== "रंग तरंग और हास्य व्यंग - सीधे प्रसारण के संग" ==
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१० मार्च २००७, फिलेडेल्फिया, यू एस ए,  होली के सुअवसर पर फिलेडेल्फिया स्तिथ भारतीय टेंपल भवन में  'रंग तरंग और हास्य व्यंग्य' नामक कवि सम्मेलन का आयोजन 'भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र' के तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम का प्रारभ भारत के प्रख्यात गीतकार सोम ठाकुर नें दीप प्रज्जवलित कर के किया तथा फिर लगभग चार घंटों तक सभी नें कविताओं का रसास्वादन किया। हास्य, व्यंग्य, गीतों तथा ग़ज़लों से सजी शाम का आयोजन इस क्षेत्र में पहली बार किया गया था।
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इंदौर से पधारी डा अनीता सोनी नें माँ सरस्वती की वन्दना करी तथा अपने सुमधुर कंठ से आनंदित करने वाली रचनाएँ सुनाईं। उनकी होली के अवसर पर लिखी कविता 'बलम अनाडी नें' खूब पसंद किया। न्यू जर्सी से पधारे अनूप भार्गव नें अपनी छोटी छोटी रचनाओं से सभी श्रोताओं का मन मोह लिया तथा वहीं डा बिन्देश्वरी अग्रवाल की कविताओं नें सबको गुदगुदाया। फिलेडेल्फिया के प्रसिद्ध कवि घनश्याम गुप्त नें रामधारी सिंह 'दिनकर' के कुछ छन्द पढ़े तथा अपनी कुछ रचनाएँ सुनाईं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पधारे श्री पी के मिश्रा जी नें भी सभा को सबोधित किया।
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हास्य व्यंग्य के प्रतिष्ठित कवि अभिनव शुक्ल सभागार में सशरीर उपस्तिथ नहीं थे। वे किन्हीं कारणों से सिएटल से फिलेडेल्फिया नहीं आ पाए थे। अभिनव नें सिएटल से सीधे प्रसारण के ज़रिए सभागार में लगे बड़े पर्दे पर अपनी कविताएँ सुनाईं। हिंदी कवि सम्मेलन के मंचों पर यह अनूठा प्रयोग था जिसे श्रोताओं तथा आयोजकों नें पसंद किया। पहली बार हिन्दी कवि सम्मेलन मन्च पर अन्तरजाल के माध्यम से सीधा प्रसारण कराने हेतु विजय ताम्बी का योगदान सरहानीय रहा।
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कार्यक्रम के मुख्य आयोजक तथा काव्य प्रेमी उमेश ताम्बी नें बीच-बीच में अपनी चुटकियों तथा रचनाओं से श्रोताओं को भाव विभोर किया। प्रख्यात गीतकार श्री सोम ठाकुर नें अंत में मंच संभाला तथा 'ये प्याला प्रेम का प्याला है' तथा 'लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको' सहित अपने अनेक गीत पढ़े। अंत में नन्द टोडी एवम सचिव सन्जीव ज़िदल नें काव्यमयी मधुर शाम के लिए सभी कवियों ऒर श्रोताओ को धन्यवाद दिया।
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== सांस्कृतिक मञ्च द्वारा श्रेष्ठी बिशनस्वरूप व्याख्यानमाला के प्रथम पुष्प पर आयोजित व्याख्यान ==
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'राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता : सिद्धान्त और व्यवहार' विषय पर एक बृहद् आयोजन स्थानीय सूर्या बैंक्वेट हॉल में किया गया। यह आयोजन दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। प्रथम सत्र जाने माने व्यक्तित्व विकास के स्तंभकार सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक सरदार जोगेन्द्र सिंह ने नगर के स्थानीय एवं आसपास गांवों के २५० विद्यार्थियों को व्यक्तित्व विकास के सूत्र बताए। इस अवसर पर पूर्व निदेशक ने कहा कि हर इंसान की अपनी समस्या होती है यदि समस्या नहीं होगी तो इंसान आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने जीवन की सफलता के तीन सूत्र कड़ी मेहनत, सामान्य ज्ञान व निश्चित रणनीति बताए। उन्होंने कहा कि यदि आप भविष्य की रणनीति तय करके चलेंगे तो नकारात्मक आदतें आपको प्रभावित नहीं कर पाएगी। उन्होंने अपने चालीस मिनट के उद्बोधन में विद्यार्थियों को  अनेक सूत्र बताकर उनको अपने कैरियर के प्रति जागृत किया। इसके पश्चात्‌ विद्यार्थियों ने उनसे संवाद स्थापित करते हुए अनेक प्रश्न पूछे और विद्यार्थियों को संतुष्ट किया। श्री जोगेन्द्र सिंह को अपने मध्य पाकर विद्यार्थी काफी उत्साहित थे। इस अवसर पर जिला पुलिस अधीक्षक सुभाष यादव भी उपस्थित थे।
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द्वितीय सत्र में 'राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता : सिद्धान्त और व्यवहार' विषय पर शहर के गणमान्य एवं प्रबुद्ध नागरिकों को संबोधित करते हुए सरदार जोगेन्द्र सिंह ने वर्तमान राजनीति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इतिहास पर नजर डाली जाये तो पूरे विश्व में जनभावनाओं में अधिक अंतर नहीं मिलेगा। राजनीति में बढ़ते आपराधिकरण पर तब तक अंकुश नहीं लगाया जा सकता जब तक सभी राजनीतिक दल मिल बैठकर आचार संहिता तय नहीं कर लेते। स्वतंत्रता के साठ वर्ष बाद भी हम अपना कानून नहीं बना पाए। उन्होंने कहा कि १८६१ में बने कानूनों को हम वर्तमान में भी ढोये चले जा रहे हैं। इन्हीं कारणों से न्यायालयों में आज भी लाखों केस लंबित हैं। आम आदमी आज भी न्याय की आस से कोसों दूर है। सरदार जोगेन्द्र सिह ने कहा कि पारदर्शिता का पहला कदम हमें ही उठाना पड़ेगा तभी सफलता की सीढ़ी पर हम आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि जो हम चाहते हैं वह पहले स्वयं पर लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि हम कितने ही कानून बना लें फिर भी जहां वोट, इंसान और विवेक बिकता हो वहां भ्रष्टाचार को लगाम लगाना कहां तक संभव है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंट इंटरनेशनल  के अनुसार भारत में भ्रष्टाचार कम करने के मामले में ३३ अंक मिले हैं। जबकि गत वर्ष यह आंकड़ा २९ अंक का था। आज हरियाणा प्रदेश में पूरे बजट का ९२ प्रतिशत कर्मचारियों के वेतन, मंत्रियों एवं विधायकों पर और बाकि बचा हुआ ८ प्रतिशत विकास के कार्र्यों पर खर्च होता है। उन्होंने कहा कि आम जनता आज तक एक अधिनियम से अनभिज्ञ है जो १२ जुलाई २००६ को लागू हो चुका है। उन्होंने इस सूचना के अधिकार को लोकतंत्र में सही कदम बताया। ऐसे में देश के बुद्धिजीवियों को व प्रबुद्ध संगठनों के प्रतिनिधियों को आम जनता से अवगत कराना चाहिए। सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक ने कहा कि मीडिया द्वारा स्टिंग ऑपरेशनों पर रोक लगाने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने ऐडी-चोटी का जोर लगा दिया परन्तु भ्रष्ट आचरण पर अंकुश लगाने व पैसे के लेने-देन के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ० चन्द्र त्रिखा ने कहा कि पूंजीपतियों ने आयकर से बचने के लिए राजनीतिक दलों का गठन कर लिया लेकिन वे चुनाव नहीं लड़ते। उन्होंने कहा कि वर्तमान में लगभग ३०० से ज्यादा चैनल संचालित हैं लेकिन करोड़ों रूपये की विज्ञापन राशि हासिल करने के चक्कर में मूल मुद्दों से हट जाते हैं। उन्होंने कहा कि न तो कोई राजनीतिक दल पूर्ण है और न ही कोई कंपनी। उन्होंने लोगों को आह्‌वान किया कि वे अपने जीवन मूल्यों को व्यवहार में लाएं इसके बिना राजनीति में पारदर्शिता नहीं आ सकती।
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कार्यक्रम का शुभांरभ श्रेष्ठी बिशनस्वरूप के सुपुत्र गणेश गुप्ता ने श्रीफल तोड़कर किया। मंच की वरिष्ठ सदस्या सुश्री मंजीत मरवाह ने राष्ट्रीय गीत का गायन कर कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। स्वागताध्यक्ष शिवरतन गुप्ता ने अपने स्वागतीय व्यक्तव्य में उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए कहा कि इस प्रकार के व्याख्यान का आयोजन समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा। इस अवसर पर स्थानीय विधायक डॉ० शिव शंकर भारद्वाज ने भी जोगेन्द्र सिंह और डॉ० चंद्र त्रिखा के पधारने पर उनका आभार प्रकट करते हुए अपने विचार प्रकट किए। इस अवसर पर कम्प्यूटर डिजायनर व सांस्कृतिक मंच के अनन्य सहयोगी योगेश शर्मा को भी सरदार जोगेन्द्र सिंह द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के अंत में सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष विद्यासागर गिरधर ने उपस्थित श्रोताओं का धन्यवाद दिया।
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इस अवसर पर मंच ने रोटरी क्लब, भारत विकास परिषद, ब्राह्मण विकास परिषद्, दक्ष प्रजापति महासभा, संस्कार भारती, भिवानी क्लब, रामा काम्पलैक्स मार्केट, भिवानी चैम्बर ऑफ कॉमर्स, कहरोड़ पक्का महासभा (दिल्ली), जूनियर चैम्बर्स इंडिया, श्री गुरुद्वारा श्री गुरूसिंह सभा, हरियाणा राजपूत प्रतिनिधि सभा, श्री राम परिवार सेवा समिति, श्री सीतादेवीश्रीनिवासशास्त्रीसेवानिधिः जैसी संस्थाओं को अपने साथ जोड़कर कार्यक्रम को ऊंचाई प्रदान की। इस अवसर पर वरिष्ठ एडवोकेट अविनाश सरदाना, प्रदेश अधिवक्ता परिषद् के संगठन मंत्री राजकुमार मक्कड़, बी.टी.एम. के महाप्रबन्धक राजेन्द्र कौशिक, आर.पी. सिंह आईएएस,, एवं अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन डॉ० बुद्धदेव आर्य ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मंच के महासचिव जगतनारायण, डॉ० वी.बी. दीक्षित, आशीष आर्य, डॉ० संजय अत्री, डॉ० निलांगिनी शर्मा, श्रीमती शशी परमार, गजराज जोगपाल, घनश्याम शर्मा, डॉ. मदन मानव व अन्य सभी कार्यकर्ताओं ने अपना योगदान दिया। इस अवसर पर श्रेष्ठी बिशनस्वरूप की धर्मपत्नी श्रीमती शारदा देवी, पुत्र अनुज गुप्ता, राजरतन गुप्ता व उनके परिवार के सदस्य उपस्थित थे।
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== प्रोफेसर अशोक चक्रधर का छप्पन छुरोत्सव ==
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नयी दिल्ली-गत आठ फरवरी को हिंदी भवन में प्रख्यात कवि प्रोफेसर अशोक चक्रधर का छप्पनवां जन्मदिन खास अंदाज में मनाया गया।  इस अवसर पर वरिष्ठ विधिवेत्ता श्री लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, विख्यात सरोद वादिका पद्मभूषण शरनरानी बाकलीवाल, साहित्यकार डॉ. महीप सिंह , डॉ. निर्मला जैन, डॉ. अजित कुमार, डॉ. प्रेम जनमेजय , डॉ. हरीश नवल , पद्मश्री वीरेंद्र प्रभाकर , कवि ओमप्रकाश आदित्य , ओम व्यास , गजलकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी , मंगल नसीम और अशोक चक्रधर के परिजनों समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे। इस अवसर पर  महीप सिंह ने कहा कि व्यंग्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अशोक चक्रधर ने इस भूमिका को बखूबी निभाया है। ओमप्रकाश आदित्य ने कहा कि अशोक चक्रधर ने हर काम को अपने अंदाज में किया है। लोग आम तौर पर साठवां जन्मदिवस मनाते हैं या पिचहत्तरवां। अशोक चक्रधर ने छप्पनवां जन्मदिवस मनाने की नयी परंपरा की शुरुआत की है। ओमप्रकाश आदित्य ने कहा कि अशोक चक्रधर ने यश की नयी ऊंचाईयां छुई हैं। लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कहा कि छप्पन का होने के बाद छप्पन भोगों में कमी कर देनी चाहिए। इस अवसर पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर की पत्नी बागेश्री चक्रधर ने रोचक संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि ये तो छप्पन छुरे अब हुए हैं , पर मुझे इन्होंने छप्पनछुरी बहुत सालों पहले ही घोषित कर दिया। उन्होंने बताया कि अशोक चक्रधर की एक कविता पोल खोल यंत्र में एक पात्र अशोकजी से कहता है-अकेला ही आया है, अपनी छप्पनछुरी गुलबदन को साथ नहीं लाया है। इस अवसर पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर ने कहा कि उन्हें लाखों लोगों का प्यार मिला, इससे वे अभिभूत हैं। उन्होने कहा कि अपनी प्रशंसा सुनना बुरा नहीं लगता, पर उन्हें लगता है कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। इस मौक़े पर प्रोफेसर अशोक चक्रधर की बेटी स्नेहा चक्रधर ने भरतनाट्यम नृत्य के अंतर्गत मल्लारी, मीरा भजन (बसो मोरे नैनन में) और वृंदावनी राग में तिल्लाना प्रस्तुत किया। सुश्री नेहा पद्मश्री नृत्यांगना गीता चंद्रन की शिष्या हैं।
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== भारत एवं अमेरिका के अनेक नगरों के लोगों द्वारा डा बृजेन्द्र अवस्थी को अद्भुत भावपूर्ण श्रद्धान्जलि==
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२७ जनवरी २००७, संयुक्त राज्य अमेरिका की सिएटल नगरी में डा बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धान्जलि देते हुए कार्यक्रम "कुछ संस्मरण कुछ स्मृतियाँ - महान राष्ट्रकवि डा बृजेन्द्र अवस्थी" का आयोजन किया गया। इसमें देश विदेश से अनेक लेखकों, कवियों एवं साहित्यकारों नें भाग लिया तथा अपने संस्मरण सुनाए। ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम का प्रसारण कान्फ्रेंस काल द्वारा किया गया था जिससे तकनीकी शक्ति की सहायता लेकर, भौगोलिक दूरियों को लांघ कर सिएटल के अतिरिक्त न्यूयार्क, वाशिंगटन डी सी, न्यू जर्सी, सेंट फ्रांसिसको, ओहाएयो, डालस, कनेक्टिकट, कर्नाटक, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश रज्यों से लोगों नें डा अवस्थी को अपने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
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सर्वप्रथम श्री प्रद्युम्न अमलेकर नें माँ सरस्वती तथा डा अवस्थी के सामने दीप प्रज्जवलित किया, तदुपरांत डा अवस्थी की मातृ-वन्दना कविता की रिकार्डिंग बजाकर सभा का प्रारंभ किया गया।
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कार्यक्रम के संचालक तथा सुप्रसिद्ध हास्य एवं ओज कवि अभिनव शुक्ल ने बतलाया कि "यदि डा अवस्थी से भेंट ना हुई होती, उनका आशीर्वाद ना प्राप्त हुआ होता तो अभिनव कभी कवि अभिनव न बन पाते। राष्ट्र के प्रति प्रचण्ड आस्था, मानव के प्रति सम्मान तथा कर्म के प्रति प्रतिबद्धता का जो पाठ उन्होंने मुझे कुछ मुलाकातों में पढ़ाया वह मेरी अट्ठाराह वर्षों की स्कूल तथा कालेज की शिक्षा नहीं पढा़ सकी। छन्द की शुद्धता, रस का संचार तथा भावों की शक्ति का वास्तविक ज्ञान मुझे आदरणीय डा अवस्थी से ही प्राप्त हुआ। उन्होनें इन पंक्तियों द्वारा अपने मनोभावों को व्यक्त किया।
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अपने कद से ना घटें कभी,
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सच्चाई से ना हटें कभी,
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आंधी में अविचल टिक जाएँ,
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हम तुम कुछ अच्छा लिख जाएँ,
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वह ही सच्चा अर्पण होगा,
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वह सच्ची श्रद्धान्जलि होगी।" 
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डा अवस्थी के पूज्य गुरुदेव डा कुंवर चन्द्र प्रकाश सिंह जी के पुत्र डा रवि प्रकाश सिंह जी ने अपने बचपन के अनेक संस्मरण सुनाए तथा बतलाया कि "डा अवस्थी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा स्वाभिमान के धनी थे। वे बहुत मेहनती थे, वे सुबह से शाम तक बैठ कर लिखते रहते थे। मुझे याद है कि जब वे पी एच डी कर रहे थे तो पाँच सौ पृष्ठ की थीसिस पैंतिस दिनों में पूरी कर ली थी।"
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सिनसिनाटी से रेनु गुप्ता जी नें अपने संस्मरण सुनाते हुए बतलाया कि किस प्रकार डा अवस्थी नें उन्हें कविता लिखने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि " डा अवस्थी सिनसिनाटी को सनसनाती हवा कह कर संबोधित किया करते थे। वे बहुत ही सादा जीवन बिताते थे, मैं उन्हें शत शत नमन करती हूँ।"
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अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी सी के सुमधुर गीतकार राकेश खण्डेलवाल नें अपने मनोभावों को निम्न पंक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया,
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"अपनी वीणा में से तराश मां शारद ने
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जिसके हाथों मे इक लेखनी सजाई थी
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जिसकी हर कॄति के शब्द शब्द में छुपी हुई
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सातों समुद्र से ज्यादा ही गहराई थी
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जिसकी वाणी का ओज प्राण भर देता था
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मॄत पड़े हुए तन में अमॄत की धारा बन
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मैं अक्षम हूं कुछ बात कर सकूँ उस कवि की
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ब्रह्मा ने वर में जिसको दी कविताई थी. "
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भारत के सुप्रसिद्ध वीर रस के कवि राजेश चेतन नें कारगिल युद्ध के समय का एक मार्मिक संस्मरण सुनाते हुए बतलाया कि "कारगिल युद्ध के समय जन जागृति हेतु "चुनौती है स्वीकार" शीर्षक से एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसकी समापन की बेला मे अध्यक्षीय काव्य पाठ के लिये डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की आशु काव्य धारा पर जन समुदाय उमड़ रहा था और फिर जैसे ही डा॰ अवस्थी ने शहीदों के सम्मान में कविता सुनाई जनता के साथ साथ देश के गृहमंत्री की आँखों से भी अश्रुधारा बह निकली। श्रोताओं के मध्य बैठे श्री आडवाणी जी ने अपने स्थान पर खडे होकर डा॰ अवस्थी से कहा कि मुझे भी कुछ कहना है और फिर अडवाणी जी ने जो कहा उससे डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की शब्द शक्ति को समझा जा सकता है। गृहमंत्री ने कहा – डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी जी मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि चाहे जो हो एक इंच भूमि भी दुश्मन को नहीं जायेगी। ऐसे शब्द शिल्पी डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि।"
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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के पूर्व अध्यक्ष तथा 'विश्वा' के संपादक श्री सुरेन्द्र नाथ तिवारी नें कहा कि वे डा अवस्थी के देहवसान का समाचार सुनकर स्तब्ध रह गए। वे बोले कि "सन १९९४ में जब डा अवस्थी, हुल्लड़ मुरादाबादी, माधवी लता एवं राम रतन शुक्ल जी अमेरिका आए तब न्यू यार्क के जान एफ केनेडी एयरपोर्ट पर मैं उन्हें रिसीव करने पहुँचा। मैं अपने साथ कोक के कुछ कैन्स लेकर गया था ताकि अमेरिका में सबका स्वागत आमेरिकन वाटर से किया जाए। जब मैं एयरपोर्ट पहुँचा तो मैंने देखा कि कि माथे पर तिलक लगाए ऊँचे कद एवं सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी डा अवस्थी खड़े मुस्कुरा रहे हैं तथा बाकी सभी लोग यात्रा की थकान से चूर कुर्सियों पर बैठे हैं। मैंने सबको पीने के लिए कोक दिया तो सबने सहर्ष स्वीकार किया पर डा साहब नें कहा कि "मैं कोक नहीं पीता हूँ, घर पर चल कर पानी तो मिलेगा ना।" उस पहली ही भेंट में मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ तथा जब ह्यूस्टन के अधिवेशन में मैंने उनकी कविताएँ सुनीं तब तो मैं रोमांचित हो उठा। डा अवस्थी की स्मृति में लिखी हुई यह पंक्तियाँ भी सुरेंद्रजी नें सुनाईं,
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तुम भारत गौरव के चारण,
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बलिदानों के तुमुल-तूर्य तुम,
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संस्कृति के तुम शंखघोष थे,
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हिंदी के थे प्रखर सूर्य तुम,
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अश्रु नहीं डूबते सूर्य को,
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अर्ग्य सदा अर्पण करते हैं,
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इसीलिए इस दुख में भी हम,
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तुमको नित्य नमन करते हैं।
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भारत के लोकप्रिय गीतकार एवं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष श्री सोम ठाकुर नें अपन भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा कि "डा अवस्थी से मेरा परिचय सन १९५७ से था, उस समय वे हल्दवानी में पढ़ाते थे। डा अवस्थी के कोई सगा भाई नहीं था तथा मेरा भी कोई सगा भाई नहीं था पर मैंनें उन्हें सदा अपने बड़े भाई के रूप में माना तथा वे भी मुझे अपने छोटा भाई मानते थे। जब डा अवस्थी शादियों में हमारे यहाँ आते थे तो साथ में नोटों कि गड्डियाँ ले आते थे कि कहीं कोई कमी ना पड़ जाए। जहाँ तक कविता के प्रश्न है वे अद्भुत आशुकवि थे तथा जहाँ तक मैं समझता हूँ इस समय जितने महाकाव्य और खण्ड काव्य उन्होंनें लिखे हैं किसी दूसरे कवि नें नहीं लिखे होंगे। मनुष्य के रूप में उनके विराट व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नहीं था। यहाँ पर उनके यश से तथा उनकी प्रतिभा से कुछ लोग बड़े इर्ष्यालु थे।"
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भारतीय विद्याभवन न्यूयार्क के निदेशक एवं प्रबुद्ध विद्वान डा जयरमन की भावनाएँ इन पंक्तियों से पगट हुईं, "कवि श्रेष्ठ डा बृजेन्द्र अवस्थी जी के जाने से हिंदी साहित्य का एक अनूठा हस्ताक्षर हमारे बीच में से निकल गया। सरस्वती के वरद पुत्र आदरणीय डा अवस्थीजी का निधन हिंदी काव्य के लिए एक बड़ा धक्का है।"
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हिन्दी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान तथा डा बृजेन्द्र अवस्थी के अनन्य शिष्य डा वागीश दिनकर जी नें बहुत सुंदर शब्दों में डा अवस्थी के कृतित्व से सभी को परिचित कराया तथा अपनी भावपूर्ण श्रद्धान्जलि अर्पित की। वे बोले, "डा अवस्थी में भक्ति और शौर्य शक्ति का अद्भुत संगम था। उन्होंनें असंभव को संभव कर दिखाया। वे शब्दों के चितेरे थे। वे जो एक बार मन में ठान लेते थे उसे पूर्ण करते थे।" उन्होंने डा अवस्थी के काव्य के अनेक खण्डों के भावपूर्ण उदाहरण भी प्रस्तुत किए तथा यह भी कहा कि, "आज हृदय आसुओं से भरा हुआ है आज हमनें एक राष्ट्र ऋषि को खो दिया है। मेरे हृदय से यही शब्द निकल रहे हैं।
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राष्ट्र सदन में जिन कविवर की काव्य कला गूँजा करती थी,
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जिनके ओज भरे चरणों की प्रतिभा नित पूजा करती थी,
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मुझ जैसे रचनाकारों नें जिनसे सदा प्रेरणा पाई,
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बूढ़ी पीढ़ी में भी जिनने ओजोमय भर दी तरुणाई,
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रचना के उत्तुंग शिखर थे श्रेष्ठ आशुकवि पद्वी धारे,
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स्वीकारें श्री बृजेन्द्र अवस्थी सब प्रणाम नयनाश्रु हमारे। "
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सिएटल के कवि राहुल उपाध्याय जी नें भी डा अवस्थी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए तथा सबको धन्यवाद दिया। अंत में सभी नें डा अवस्थी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखा तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इसके बाद एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अनु अमलेकर, संतोष पाल, राहुल उपाध्याय, विद्या, स्वर्ण कुमार राजू, सलिल दवे, शकुंतला शर्मा तथा अभिनव शुक्ल समेत अनेक कवियों नें अपनी रचनाएँ पढ़ीं।
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डा अवस्थी दिवंगत नहीं हुए हैं, हम सब के बीच में हैं। वे अपनी अमर रचनाओं के द्वारा सदा अमर रहेंगे। हम अपना प्रणाम उन तक निवेदित कर रहे हैं। हम अपने परिवार की ओर से, सारे भारत की ओर से तथा सारे संसार की ओर से उस राष्ट्र ऋषि को अपनी श्रद्धान्जलि देते हैं।
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== कमलेश्वर जी नहीं रहे ==
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[[चित्र:20070112_Hindi_Utsav_(86).JPG|left|thumb|200px]]
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नई दिल्ली। हिंदी साहित्य के जाने माने साहित्यकार और कथाकार कमलेश्वर जी का शनिवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। कमलेश्वर जी के पारिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी । कितने पाकिस्तान जैसे मशहूर कृतियों के रचनाकार कमलेश्वर जी का जन्म 6 जनवरी 1931 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जिले हुआ था। सन 2003 में साहित्य अकादमी और 2005 में कमलेश्वर जी पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित हुए थे। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के साथ-साथ बतौर पत्रकार के रूप में वह वर्ष 1990 से 1992 तक 'दैनिक जागरण' और वर्ष 1996 से 2002 तक 'दैनिक भास्कर' से जुडे़ रहे। कमलेश्वर ने वर्ष 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर करने के बाद दूरदर्शन में पटकथा लेखक के तौर पर काम किया। उन्होंने कई कहानी संग्रह, उपन्यास, यात्रा वृतांत तथा संस्मरण लिखे। कमलेश्वर ने टेलीविजन धारावाहिक दर्पण, एक कहानी, चंद्रकांता और युग की पटकथा लिखने के अलावा कई वृत्तचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। उन्होंने सारा आकाश, आंधी, मौसम, रजनीगंधा, छोटी सी बात और मिस्टर नटवरलाल जैसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी।
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==कवि डा. बृजेन्द्र अवस्थी की आवाज खामोश==
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[[चित्र:Dr_Awasthi_1.jpg|left|thumb|200px]]
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लखनऊ/बदायूं। राष्ट्रीय भावनाओं के चितेरे कवि डा. बृजेन्द्र अवस्थी की ओज भरी जोशीली आवाज आज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गयी। बीती रात उनका यहां पीजीआई में निधन हो गया। वे 77 वर्ष के थे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर उनका शव बदायूं पहुंचा। जहां कछलाघाट पर अश्रुपूरित नेत्रों के बीच राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके पुत्र राजीव अवस्थी ने उन्हें मुखाग्नि दी। पीजीआई में भर्ती डा. अवस्थी रात करीब दो बजे अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के प्रतिष्ठित अवंतीबाई सम्मान से अंलकृत होने के साथ 30 से ज्यादा पुस्तकों व 5 महाकाव्यों के रचयिता डा.अवस्थी की काव्य रचनाओं में तापसी, छत्रपति शिवाजी, वीर बजरंग बली प्रमुख हैं। उनके निधन का समाचार सुन कर मुख्यमंत्री पीजीआई पहुंचे और शोक संतप्त पुत्र-पुत्रियों व दामाद को ढांढस बंधाया। बदायूं में पुलिस गारद ने उन्हें अंतिम सलामी दी। डीएम व एसएसपी समेत अनेक लोगों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
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==..मेरी कलम बिके तो मेरा सिर कलम कर देना ==
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[[चित्र:LogoJagran.gif|left|thumb|184px|jagran 23 january 2007]]
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बदायूं। चाहें घुटना पड़े कबीरा की तरह,
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चाहें विष पीना पड़े मीरा की तरह।
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दास हो न पलना पसंद करुगा,
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मैं हाथी से कुचलना पसंद करुगा॥
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यह वह चंद पंक्तियां हैं, जिनसे डा. बृजेंद्र अवस्थी के स्वभाव का सहज अंदाज लगाया जा सकता है। संघर्ष स्वाभिमान और सफलता यह शब्द राष्ट्रकवि डा.अवस्थी के जीवन के मूलमंत्र रहे। वैसे तो उनके व्यक्तित्व को एक कलम और चंद पन्नों के दायरे में समेटना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है, लेकिन इतना अवश्य है कि अपनी सोच के समुद्र में लेखनी को आकण्ठ डुबोने वाले डा.अवस्थी की प्रत्येक अभिव्यक्ति स्वाभिमान और राष्ट्रीय एकता की भावना को प्रकट करती है। संसार में कुछ विरले ही होते हैं जिनका व्यक्तित्व कुछ शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। कुछ ऐसे ही थे कविवर डा.बृजेंद्र अवस्थी, जिनके हृदय में वात्सल्य का सागर था तो देश की वर्तमान परिस्थितियों के प्रति बाहरी वेदना भी। वाग्देवी मां सरस्वती के प्रसाद से उन्होंने अनेक उत्कृष्ट रचनाएं कर हिन्दी काव्य जगत को समृद्ध बनाया। डा.अवस्थी ने अपने जीवन में न केवल प्रचुर साहित्य का सृजन किया, बल्कि 1960 के बाद अपनी पहचान बनाने वाले कवियों को बनाने संवारने में पितृवत वत्सलता दी। स्वभाव की बात करें तो डा.अवस्थी बड़े ही विनम्र थे। छोटों से अगाध प्रेम, हमउम्र के लोगों से मैत्रीपूर्ण व्यवहार और बड़ों का आदर उनकी खूबी थी। स्वाभिमान की भावना तो उनमें कूट-कूट कर भरी थी। जीवन भर उन्होंने न तो किसी से कुछ मांगा और न ही किसी के समान गिड़गिड़ाए। सिंह सी गर्जना उनकी कविताओं में ही नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व में भी थी। उनकी कविता का हर शब्द बोलता था। उनके जीवन की सच्चाई और ईमानदारी इन पंक्तियों से साफ परिलक्षित होती है-
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मां मुझे शक्ति दो कवि धर्म को निभाऊं मैं,
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दर्द में डूबी हुई तेरी व्यथा को गाऊं मैं,
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लोभ से भय से जो सच्चाई को दबाऊं मैं,
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युग का चारण हो, कसीदों से उतर आऊं मैं,
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तो मेरी वाणी का वहीं इत्तेलम करा देना,
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मेरी कलम बिके तो मेरा सिर कलम कर देना॥
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सरस्वती मां से प्रार्थना करते हुए डा.अवस्थी लगभग हर मंच से अपनी यह पंक्तियां जरूर पढ़ते थे। साहित्यकार डा.रघुवीर शरण शर्मा उनके प्राचार्य पद के दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि उन्होंने कभी भी कुर्सी के बुरे रसों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और सदा स्नेह लुटाते रहे। वीर रस का कवि होने के बावजूद उनके हृदय में सदा दया, ममता और स्नेह की लहरें हिलोरें लेती रहती थीं।
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==बुद्धिजीवियों की ही नहीं मन की भाषा है हिंदी: चक्रधर ==
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[[चित्र:LogoJagran.gif|left|thumb|184px|jagran 13 january 2007]]
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नई दिल्ली। प्रसिद्ध कवि डा. अशोक च्रकधर ने कहा कि हिंदी बुद्धिजीवियों की ही नहीं, मन की भाषा है। जिसका दबदबा विश्वस्तर पर होना चाहिए। इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। यह बात उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भारतीय सांस्कृतिक संबंद्ध परिषद, साहित्य अकादमी और अक्षरम द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव के दौरान कहीं। कार्यक्रम में डा. सत्येंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि इंग्लैंड का समाज भी हिंदी भाषा के प्रति बदला है। जिसमें भारतीय समाज व बालीवुड का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गिरिराज किशोर ने कहा कि भारत में जैसे जनता उपेक्षित है, वैसे ही हिंदी। अक्षरम् के अध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि हिंदी को कंप्यूटर के साथ सघनता से जोड़ने की जरूरत है साथ ही राजनीति का अखाड़ा बनती अकादमियों में सुधार होना चाहिए। विश्व पटल पर हिंदी सत्र में डा. लक्ष्मीमल सिंघवी ने कहा कि हिंदी को अहम स्थान तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे। सांसद प्रभा ठाकुर ने कहा कि हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने के लिए ऐसे आयोजन की आवश्यकता है। समारोह में पूर्व विदेश सचिव शशांक ने विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से हिंदी की अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति को रेखांकित किया। इस अवसर पर जापान में हिंदी के प्रवक्ता डा. सुरेश ऋतुपर्ण ने भी विचार व्यक्त किया।
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==रामदरस मिश्र को अक्षरम शिखर सम्मान ==
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[[चित्र:LogoJagran.gif|left|thumb|184px|jagran 11 january 2007]]
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नई दिल्ली। हिंदी में साहित्य रचना और इस भाषा के विकास में भूमिका निभाने वाले सात साहित्य सेवियों को यहां हिंदी उत्सव के दौरान सम्मानित किया जाएगा। इनमें प्रख्यात साहित्यकार रामदरस मिश्र भी शामिल हैं। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद साहित्य अकादमी और अक्षरम द्वारा 12, 13 व 14 जनवरी को यहां आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव के अंतिम दिन अंतरराष्ट्रीय संस्था अक्षरम की ओर से ये सम्मान दिए जाएंगे। यहां जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र को अक्षरम शिखर सम्मान, अमेरिका के हिंदी साहित्यकार उमेश अग्निहोत्री को अक्षरम प्रवासी हिंदी साहित्य सम्मान, डॉ. सीतेश आलोक को अक्षरम साहित्य सम्मान, कनाडा के श्याम त्रिपाठी को अक्षरम प्रवासी हिंदी सेवा सम्मान, डा. ब्रज बिहारी कुमार को अक्षरम हिंदी सेवा सम्मान तथा ब्रिटेन के फिल्मकार डॉ. निखिल कौशिक को प्रवासी फिल्मकार सम्मान दिया जाएगा। इसी के साथ डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी सम्मान रूस के मदनलाल 'मधु' को दिया जाएगा। समारोह के मुख्य अतिथि विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा होंगे।
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==नार्वे में दूसरा विश्व हिन्दी दिवस मनाया गया ==
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[[चित्र:Norway2.jpg|left|thumb|चित्र में बायें से सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च्, राजदूत महेश सचदेव, प्रोफेसर क्नुत शेलस्तादली भाषण देते हुए और कवियित्री इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन]]
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१० जनवरी को वाइतवेत युवा केन्द्र, ओस्लो में भारतीय-नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम की ओर से दूसरा विश्व हिन्दी दिवस धूमधाम से मनाया गया। इस ऐतिहासिक हिन्दी दिवस के मुख्य अतिथि थे नार्वे और आइसलैण्ड में भारतीय राजदूत महेश सचदेव, विशेष अतिथि थे ओस्लो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्नुत शेलस्तादली और अध्यक्षता कर रहे थे ओस्लो पार्लियामेन्ट के सदस्य और नार्वे से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण पत्रिका के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च्।
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[[चित्र:Norway1.jpg|left|thumb|सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च् को पुस्तकें भेंट करते हुए राजदूत महेश सचदेव]]
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हिन्दी को विदेशों में मान्यता दिलाने के लिए हमारे प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने पिछले वर्ष १० जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। कार्यक्रम में महेश सचदेव जी ने प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह का सन्देश पढ़ा और उन्होंने बताया कि ओस्लो विश्वविद्यालय में आज से हिन्दी की कक्षायें शुरू की गयी हैं जिसमें जर्मन मूल के प्रोफेसर क्लाउस पेतेर जोलर हिन्दी पढ़ा रहे हैं। जोलर कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके पर उन्होंने अपनी शुभकामनायें भेजीं।
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सचदेव जी ने नार्वे में सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च् को हिन्दी पुस्तकें भेंट की और कहा कि भारतीय प्रवासियों को शुक्लजी की तरह अपनी संस्कृति और राष्ट्रभाषा की सेवा करनी चाहिये। उन्होंने हर उपस्थित व्यक्ति को गुलाब का फूल और हिन्दी में नार्वेजीय लोककथाओं की पुस्तिका भेंट की।
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प्रोफेसर क्नुत शेलस्तादली ने विश्व हिन्दी दिवस पर बधाई दी और शुक्ल को ध्वज भेंट किया और कहा कि सौ करोड़ आबादी वाले देश भारत का विश्व के इतिहास और संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपनी मुम्बई यात्रा के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि भारत में सड़कों, बाजारों और अन्य स्थानों पर मेला रहता है। चहल-पहल भरे एक बाजार में विवाह के आमन्त्रण पत्रों की २० दुकानें एक कतार में देखकर लगा कि भारतीय सपने देखते हैं और खुशहाल रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब वह ओस्लो एयरपोर्ट से टैक्सी से घर वापस आ रहे थे तो सड़कों के दोनो ओर सन्नाटा था।
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अपने अध्यक्षीय भाषण में सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च् ने कहा कि हिन्दी हमारी अस्मिता की पहचान है। सौ करोड़ भारतवासियों की राष्ट्रभाषा और विदेशों में भारतीय प्रवासियों की सम्पर्क भाषा है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्रसंघ में स्थान दिलाने के लिए आवश्यक है कि विश्व हिन्दी दिवस जैसे कार्यक्रम आयोजित किये जायें और हम विदेशों में राजनीति में भी सक्रिय हिस्सा लें।
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फोरम की मन्त्री अलका भरत ने आगन्तुकों का स्वागत किया। विश्व हिन्दी दिवस
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पर जिन लोगों ने अपने विचार प्रगट किये, कवितायें पढ़ीं उनमे प्रमुख थे : अनुराग सैम, इन्दरजीत पाल, इन्दर खोसला, इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन, राज नरूला, वासदेव भरत, कंवलजीत सिंह, माया भारती, सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च् और ऊला अनुपम।
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==अंतर्राष्ट्रीय हिंदी उत्सव का सफल आयोजन ==
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[[चित्र:20070114_2nd_Half_Session_(178).JPG|left|thumb|विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा डा निखिल कौशिक का सम्मान करते हुये । ]]
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'अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव' एक रिपोर्ट - नरेश शांडिल्य 'विदेशों में हिन्दी प्रचार-प्रसार के लिए संसाधनों की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा।' भारत के विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा की इस उद्धोषणा और संकल्प के साथ त्रिदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 2007 सम्पन्न हुआ। यह उत्सव 12-13-14 जनवरी 2007 के दौरान नई दिल्ली में आयोजित किया गया। यह उत्सव भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी और अक्षरम् संस्था का संयुक्त आयोजन था। तीन दिनों तक चलने वाला यह समारोह नई दिल्ली के इंडिया इन्टरनेशनल सैन्टर , हिन्दी भवन, त्रिवेणी सभागार और फिक्की सभागार में आयोजित किया गया। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के महानिदेशक पवन वर्मा, साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ0 गोपीचन्द नारंग और अक्षरम् के मुख्य संरक्षक डॉ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, संरक्षक डॉ0 अशोक चक्रधर, स्वागत समिति की अध्यक्षा सांसद प्रभा ठाकुर के मार्गदर्शन में आयोजित इस महोत्सव में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से गगनांचल के संपादक अजय गुप्ता और साहित्य अकादमी की ओर से उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने सक्रिय भागीदारी करते हुए समुचित समन्वय किया। भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से उपसचिव (हिन्दी) मधु गोस्वामी की भी सक्रिय भूमिका रही। तीन दिन के इस उत्सव का मुख्य संयोजन अक्षरम् के अध्यक्ष अनिल जोशी ने किया। उत्सव के समन्वय का दायित्व नरेश शांडिल्य ने संभाला। उद्धाटन समारोह-12 जनवरी की सुबह नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सैन्टर में त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय उत्सव का उद्धाटन समारोह आयोजित किया गया। उद्धाटन समारोह की अध्यक्षता हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार कमलेश्वर ने की। उन्होंने देश में हिन्दी की स्थिति पर चिन्ता जताते हुए कहा कि हमारे यहां जितना स्वागत लेखकों का होता है उतना किताबों का नहीं । उन्होंने आगे कहा कि भाषा मात्र व्याकरण से नहीं चलती वरन् उसके पीछे पूरी संस्कृति होती है। प्रसिध्द पत्रकार डॉ 0 वेदप्रताप वैदिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि भारत को महाशक्ति बनने के लिए हिंदी की नितान्त आवष्यकता है । प्रसिध्द लेखक गिरिराज किशोर ने अपने बीज व्यक्तव्य में हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार में दुविधा के कारणों और उसके निदान के उपाय बताए। कार्यक्रम में इंग्लैण्ड से पधारे डॉ 0 सत्येन्द्र श्रीवास्तव उपस्थित थे, अन्य वक्ताओं में सांसद डॉ0 प्रभा ठाकुर ने कहा कि हिंदी करोड़ों लोगों को जोड़ने वाली भाषा बने और जीवन के सभी क्षेत्रों में इसका प्रचार-प्रसार हो। डॉ 0 अशोक चक्रधर ने हिंदी को अध्यापकीय दुनिया से बाहर की चीज बताया। अक्षरम् के अध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि हिंदी को कम्पयूटर के साथ सघनता से जोड़ने की जरुरत है, साथ ही कहा कि राजनीति का अखाड़ा बनती अकादमियों में सुधार होना चाहिए। कार्यक्रम में डायमण्ड पॉकेट बुक्स के नरेन्द्र वर्मा स्वागताध्यक्ष के रुप में मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने किया। इस सत्र का संयोजन डॉ 0 प्रेम जनमेजय ने किया। विश्व पटल पर हिन्दी 12 जनवरी के पहले अकादमिक सत्र में 'विश्व पटल पर हिंदी' विषय पर गंभीर चिन्तन हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त डॉ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने की। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि हिंदी का सूरज अस्त न हो इसके लिए प्रवासी और निवासी भारतवंशियों को एक मंच पर आना होगा और मजबूत होना होगा। उन्होंने सरकारी बजट बढ़ाने, प्रत्येक दूतावासों में हिंदी अधिकारी की अनिवार्यता , त्रिभाषा फार्मूले के सुचारु क्रियान्वयन, सस्ता साहित्य निर्माण, सभी भारतीय भाषाओं के साझा मंच और देश-विदेश के पाठयक्रम व सूची निर्माण में एकरुपता की बात कही । इस अवसर पर त्रिनिडाड व टोबेगो में भारत के पूर्व उच्चायुक्त रहे वीरेन्द्र गुप्त ने कहा कि हिंदी भाषा का विदेशों में प्रचार-प्रसार हिंदी फिल्मों ने किया। उन्होंने इस संबंध में अपने समय के फिल्मी गीतों 'मेरा जूता है जापानी.....' और 'ईचक दाना-बीचक दाना.....' का विशेष रुप से जिक्र किया। जापान में हिंदी के प्रो 0 सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि विदेशों में हिन्दी शिक्षण की समुचित व्यवस्था की महती आवश्यकता है। उन्होंने विश्व फलक पर हिंदी की स्थिति को संतोषजनक बताया। भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे उन्होंने अमेरिकी शिक्षण संस्थानों , सामाजिक क्षेत्रों में भारतीय सांस्कृतिक योगदान की आवश्यकता महसूस करने की बात कही। कार्यक्रम का कुशल संचालन विदेश मंत्रालय की उपसचिव (हिंदी) मधु गोस्वामी ने किया। इस सत्र का संयोजन हिन्दी सेवी नारायण कुमार ने किया। वैश्वीकरण और हिन्दी मीडिया 12 जनवरी के दूसरे अकादमिक सत्र में 'वैश्वीकरण और हिन्दी मीडिया' पर विमर्श हुआ। सत्र की अध्यक्षता आउटलुक (हिन्दी) के संपादक व चर्चित पत्रकार आलोक मेहता ने की। उनका कहना था कि हिन्दी मीडिया को आत्मालोचन की जरुरत है। उन्होंने पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें खरीदकर पढ़ने की प्रवृत्ति पर जोर दिया। इसी सत्र में डॉ 0 अशोक चक्रधर ने हिन्दी मीडिया में 'स' के जिन सात पुटों के प्रयोग का आह्वान किया, वे हैं - सम्पर्क, संवाद, सम्प्रेषण, संबंध, संवेदना, समानता और सम्मान। इसी सत्र में वॉयस ऑफ अमेरिका के पत्रकार रहे उमेश अग्निहोत्री ने विश्व में हिंदी मीडिया की स्थिति पर अपना आलेख पढ़ा। प्रसिध्द पत्रकार मनोज रघुवंशी ने हिंदी को मीडिया की सशक्त भाषा कहा । पंकज दूबे ने हिंदी की लोकप्रियता पर अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का संचालन चैतन्य प्रकाश ने किया। पत्रकार चंडीदत्त शुक्ल इस सत्र के संयोजक थे। अनीता वर्मा और संगीता राय ने सह-संयोजक की भूमिका संभाली। कॉरपोरेट जगत और हिन्दी 12 जनवरी का तीसरा अकादमिक सत्र था - 'कॉरपोरेट जगत और हिन्दी' जिसकी अध्यक्षता हीरो सोवा कम्पनी के अध्यक्ष योगेश मुंजाल ने की। इस विषय पर बोलते हुए सत्र के मुख्य अतिथि और मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी ने कहा कि हिंदी एक बड़ी जनसंख्या की भाषा है , इसका अपना बाजार है। इसीलिए हिंदी कॉरपोरेट जगत की जरुरत है। योगेश मुंजाल ने हिंदी के लिए प्रतिबध्दता पर जोर दिया। इकोनोमिक टाइम्स (ऑन लाईन) के संपादक के.ए.बद्रीनाथ ने हिंदी सीखने और जानने की आवश्यकता पर बल दिया। उक्त विषय से जुड़े विशेषज्ञों - गोपाल अग्रवाल , कैलाश गोदुका व डॉ0 जवाहर कर्नावट ने भी अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन ऋतु गोयल ने किया और सहयोगी भूमिका डॉ0 रामप्रकाश द्विवेदी और अनिल पाण्डेय ने निभाई। प्रेमचन्द के प्रसिध्द उपन्यास - 'रंगभूमि' पर आधारित नाटक की प्रस्तुति 12 जनवरी के सायंकालीन सत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन सभागार में विश्व के जाने-माने हिंदी उपन्यासकार प्रेमचन्द के प्रसिध्द उपन्यास 'रंगभूमि ' पर आधारित एक नाटक की भव्य-प्रस्तुति की गई। सुरेन्द्र शर्मा के असाधारण निर्देशन और सूरदास की भूमिका में एन. के. पन्त के अभिनय की बदौलत यह नाटक अविस्मरणीय बन चुका है। हांलांकि इस नाटक की प्रस्तुति दिल्ली में कुछ दिनों पूर्व भी हो चुकी थी , फिर भी इस नाटक को देखने अपार संख्या में दर्शक पधारे। नाटक के दृश्यों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि यह सरासर झूठ है कि दर्शक नाटक से दूर होता जा रहा है , बल्कि नाटक में दम हो तो दर्शक खुद-ब-खुद खिंचा चला आएगा। नाटय-समीक्षकों को ऐसी प्रस्तुतियों पर ध्यान देना चाहिए। वे पता नहीं किन नाटकों की चर्चा में खोए रहते हैं। इस सत्र की अध्यक्षता करने पूर्व सांसद डॉ 0 महेशचन्द शर्मा पधारे। मुख्य अतिथि के रुप में एम.एस.सी. ग्रुप के चेयरमैन सुभाष अग्रवाल उपस्थित थे। नाटक से पहले आयोजित इस संक्षिप्त कार्यक्रम का संचालन कवि-गजलकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने किया। इस कार्यक्रम के संयोजक रामबीर शर्मा थे।
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हिन्दी अध्ययन और अनुसंधान : स्थिति और सम्भावनाएं 13 जनवरी को सभी अकादमिक सत्र नई दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में आयोजित किए गए। इस दिन के प्रात:कालीन सत्र में 'हिंदी अध्ययन और अनुसंधान : स्थिति और सम्भावनाएं' विषय पर विचार-विमर्श किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक डॉ0 शंभूनाथ ने की। इस अवसर पर उन्होंने हिंदी के क्षेत्र में शोध की स्थिति पर टिप्पणी करते हुंए कहा कि हिंदी में शोध की स्थिति सूखी घास के ढेर की तरह है। इस स्थिति में सुधार की नितांत आवश्यकता है। केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो की निदेषक कुसुमवीर ने सरकारी कर्मचारियों के लिए देश भर में चलाए जा रहे हिंदी शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी। इसी सत्र में बोलते हुए इटली के मार्क जौली ने कहा कि अगर भारत में हिंदी खत्म हुई तो भारत सारे जहां से अच्छा नहीं रहेगा। पौलैण्ड की प्रो 0 मोनिका ब्रोवारचिक ने यूरोपीय देशों में बढते हिंदी रुझान की बात की। यू.एस.ए. से पधारी प्रो0 सुषम बेदी ने ज्ञान को जीवन पटल के सभी स्तरों पर उतारने की बात की। केन्द्रीय हिंदी संस्थान , आगरा की  प्रो0 वशिनी शर्मा और दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ0 विमलेश कान्ति वर्मा ने उक्त विषय पर अपने विचार रखते हुए हिंदी की अध्ययन पध्दतियों और अनुसंधान की दशा-दिशा का विशद विश्लेषण किया तथा हिंदी की वर्तमान अवस्था के मूल्यांकन की बात की। दिल्ली विश्वविद्यालय के चैतन्य प्रकाश ने भाषा कक्षा के संदर्भ में नई संकल्पनाओं की जरुरत पर बल दिया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय , गुवाहाटी के संयुक्त निदेशक डॉ0 राजेश कुमार ने और संयोजन श्री अरविन्द महाविद्यालय (सायं) की रीडर डॉ0 ऋतु जैन ने किया। विविध क्षेत्रों में हिंदी 13 जनवरी को सम्पन्न हुए दूसरे सत्र में 'विविध क्षेत्रों में हिंदी' विषय पर विचार हुआ। सत्र की अध्यक्षता कर रहे विज्ञान एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष डॉ 0 विजय कुमार ने हिंदी में कार्य कर रही संस्थाओं के समन्वय पर बल दिया और हिंदी की अदम्य शक्ति की विशेषता बताते हुए इसे अधिक से अधिक प्रयोजनमूलक बनाने की बात कही। इस सत्र के मुख्य अतिथि पूर्व सांसद एवं हिंदी के प्रख्यात विद्वान डॉ 0 रत्नाकर पांडेय ने कहा कि हिन्दी को मात्र अनुवाद की नहीं बल्कि मौलिक भाषा बनने की जरुरत है। सत्र में 'हिंदी में रोजगार' विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ रीडर डॉ 0 पूरनचन्द टंडन, 'उत्तर पूर्व में हिंदी' विषय पर डॉ0 बृज बिहारी कुमार, 'जनसंपर्क में हिन्दी ' विषय पर अजीत पाठक, 'विज्ञान में हिंदी' विषय पर सेवानिवृत्त एयर वाईस मार्शल विश्वमोहन तिवारी ने भाषायी अस्मिता और जातीय अस्मिता के अन्योन्याश्रय संबंध की चर्चा की। हिंदी के अन्यान्य क्षेत्रों पर डॉ 0 परमानन्द पांचाल ने हिंदी माध्यम को हिंदी की सबसे बड़ी जरुरत बताया वहीं प्रो0 भूदेव षर्मा ने हिंदी के विश्वव्यापी स्वरुप की चर्चा की । डॉ0 कुसुम अग्रवाल ने हिंदी की विकास यात्रा में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की। मॉरीशस की अलका धनपत ने 'आवश्यकता आविष्कार की जननी है' इस तर्ज पर हिंदी के विकसित होने की बात कही। सत्र का संचालन हिन्दी सेवी नारायण कुमार ने और संयोजन केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के उपनिदेशक विनोद संदलेश ने किया।
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समकालीन साहित्य का परिदृश्य 13 जनवरी के तीसरे सत्र में 'समकालीन साहित्य का परिदृश्य' विषय पर गहनता से विचार-विमर्श किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक व प्रख्यात आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय ने कहा कि साहित्य का मूल धर्म 'सहित भाव' में है साथ ही उन्होंने बताया कि बाजार और साहित्य की हिंदी की दिशाएं अलग-अलग हो गई हैं। हिंदी भाषा को लगातार अपदस्थ किया जा रहा है। साहित्यक परिदृश्य की तीन महत्वपूर्ण कड़ियां - लेखक , प्रकाशक और पाठक हैं, इनके बीच समन्वयात्मक संबंध होने चाहिएं । उन्होंने कहा कि आज के लेखक की सबसे बड़ी चुनौती सूचना या घटना की तीव्रता है । इस अवसर पर साहित्यकार गंगाप्रसाद विमल ने हिंदी को विश्व की किसी भी भाषा से सुदृढ़ और सशक्त बताते हुए राष्ट्रीय और अन्तररराष्ट्रीय परिदृश्य में समकालीन हिंदी लेखन के बहुआयामी व्यक्तित्व की प्रशंसा की।  राजी सेठ ने वर्तमान साहित्य के स्वरुपगत ढांचे की चर्चा की। डॉ0 दिविक रमेश ने रचनाकारों की तीन कोटियां जाने, माने और जाने और माने जाने वाले बतायी और इन पर गुटबंदी और पक्षधरता का आरोप लगाया। डॉ 0 रमणिका गुप्ता ने कहा दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य को साहित्य की मुख्यधारा में जगह मिलनी चाहिए।  डॉ0 नवीनचंद लोहानी ने भी अपने विचार रखे। सभी वक्ताओं ने विस्तार से साहित्य की विभिन्न विधाओं पर प्रकाश डाला। सत्र का संचालन डॉ0 प्रेम जनमेजय ने किया। संयोजिका मिनी गिल और सह-संयोजक रमेश तिवारी थे। प्रौद्योगिकी और हिन्दी 13 जनवरी के चौथे सत्र के दौरान 'प्रौद्योगिकी और हिन्दी' विषय पर विचार हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता इस विषय के विशेषज्ञ और प्रख्यात कवि डॉ0 अशोक चक्रधर ने की । उन्होंने कहा कम्पयूटर केवल अंकों की भाषा पहचानता है, उसकी नजर में दुनियां की हर भाषा महज अंकों का समुच्चय है। बालेन्दु दाधीच (प्रभा साक्षी) ने हिंदी कोड व यूनीकोड के विषय में बताया। विशाल डाकोलिया (माइक्रोसॉफ्ट) ने हिंदी सॉफ्टवेयर पर अत्यन्त प्रभावषाली वक्तव्य दिया और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ विजय कुमार मल्होत्रा ने हिंदी को कम्पयूटर से जोड़ने की बात कही। सत्र का संचालन डॉ 0 संजय सिंह बघेल ने किया। सत्र-संयोजन में रघुवीर शर्मा ने महत्पवूर्ण भूमिका निभाई।
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समकालीन साहित्य प्रस्तुति 13 जनवरी को आयोजित यह पांचवां सत्र था। इस सत्र की अध्यक्षता हिंदी के जाने-माने कथाकार हिमांशु जोशी ने की। साहित्य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन साहित्य' के संपादक अरुण प्रकाश ने अपनी कहानी और प्रख्यात व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्य लेख का पाठ किया। साहित्य के इस गरिमामय सत्र का संचालन कवयित्री , कथाकार अलका सिन्हा ने किया। इस सत्र का संयोजन डॉ0 हरजेन्द्र चौधरी और प्रगति सक्सेना ने किया। विदेशी प्रतिनिधियों से संवाद 13 जनवरी के इस रात्रिकालीन सत्र में उत्सव में पधारे लगभग सभी प्रवासी प्रतिनिधि उपस्थित थे। यह कार्यक्रम एक पारस्परिक स्नेह मिलन जैसा था। इस सत्र की अध्यक्षता भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की पत्रिका 'गगनांचल' के संपादक अजय गुप्ता ने की। मुख्य अतिथि के रुप में सांसद डॉ0 प्रभा ठाकुर और प्रख्यात हिंदी विद्वान डॉ0 दाउ जी गुप्त उपस्थित थे। भारतीय उच्चायुक्त लंदन के हिंदी और संस्कृति अधिकारी राकेश दूबे इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के नाते पधारे। इस अवसर पर भावना कुंवर के गजलों पर लिखे गए शोध प्रबन्ध और उषा राजे सक्सेना (यू.के.) के मिथलेश तिवारी द्वारा गाई गई गजलों की  सी.डी. का लोकार्पण भी हुआ। सत्र के प्रारम्भ में डॉ0 मृदुल कीर्ति ने प्रवासियों के स्वागतार्थ एक कविता प्रस्तुत की। विदेशी प्रतिनिधियों में मदनलाल ' मधु' (रुस) डॉ0 सत्येन्द्र श्रीवास्तव (यू.के.), रेणु राजवंशी गुप्ता (यू.एस.ए.), श्याम त्रिपाठी (कनाडा), अमित जोशी (नॉर्वे), स्वर्ण तलवाड़ (यू.के.), जैन्सी सम्पत (त्रिनिडाड एवं टोबेगो) व जय वर्मा (यू.के.), लुडमिला एवं तात्याना (रुस), दिव्या माथुर (यू.के.) आदि प्रमुख थे। इस सत्र का संचालन यू.के. हिन्दी समिति के अध्यक्ष और 'प्रवासी टुडे' पत्रिका के संपादक डॉ0 पदमेश गुप्त ने किया। समकालीन प्रवासी साहित्य अन्तरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव के तीसरे दिन 14 जनवरी को दो प्रात:कालीन अकादमिक सत्रों का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सैन्टर , नई दिल्ली में हुआ। पहले सत्र में 'समकालीन प्रवासी साहित्य' विषय पर विमर्श हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता हिंदी के प्रख्यात उपन्यासकार डॉ0 नरेन्द्र कोहली ने की। वरिष्ठ कवि मदनलाल 'मधु' ने कहा कि सोवियत संघ के विघटन के कारण अब वहां हिंदी प्रचार-प्रसार पर प्रतिकूल असर पड़ा है। श्याम त्रिपाठी ने कहा कि विषम परिस्थिति में भी हिंदी के लिए प्रवासी लेखक सक्रिय हैं। अपने अध्यक्षीय व्यक्तव्य में डॉ 0 नरेन्द्र कोहली ने कहा कि प्रवासी भारतीय साहित्य वह है जिसमें भारतीय मूल्य विद्यमान हों। कवयित्री शैल अग्रवाल ने हिंदी साहित्य को दलित साहित्य, स्त्री साहित्य, प्रवासी साहित्य इत्यादि के सांचों में बांटने को सर्वथा अनुचित बताया। सत्र का संचालन प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ0 हरीश नवल ने किया और संयोजन नरेश शांडिल्य, शशिकांत और केदार कुमार मण्डल ने किया। बदलते परिप्रेक्ष्य में अकादमियों और हिंदी की स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका 14 जनवरी के उपरोक्त विषयक इस दूसरे सत्र की अध्यक्षता उत्तरप्रदेश हिंदी भाषा संस्थान के उपाध्यक्ष और कविता मंचों के प्रख्यात कवि सोम ठाकुर ने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा कि देश की चारों दिशाओं उत्तर , दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में हिंदी पीठों की स्थापना होनी चाहिए। हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक राधेश्याम शर्मा ने कहा कि अकादमियां तभी सफल हो सकती हैं जब राज्य की एक सुस्पष्ट भाषा नीति हो। इस विमर्श में हिंदी यू.एस.ए. संस्था के संयोजक देवेन्द्र सिंह ने अमेरिका में हिन्दी संस्थाओं की भूमिका की चर्चा की। यू.के. हिंदी समिति के अध्यक्ष डॉ 0 पदमेश गुप्त ने हिंदी के लिए ग्लोबल नेटवर्किन्ग की आवश्यकता जताई। मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री संचालक कैलाश पन्त ने इस अवसर पर भाषा को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ने की बात कही। इस सत्र का संचालन डॉ 0 जवाहर कर्नावट ने किया। सत्र के संयोजन में साहित्य अकादमी के देवेश की सराहनीय भूमिका रही। ब्रिटेन में रह रहे प्रवासी फिल्मकार डॉ0 निखिल कौशिक की फिल्म - ' भविष्य - द फ्यूचर' की प्रस्तुति 14 जनवरी को नई दिल्ली के मण्डी हाउस स्थित 'फिक्की सभागार' में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला के अन्तर्गत जब ब्रिटेन में रहे रहे प्रवासी भारतीय फिल्मकार डॉ 0 निखिल कौशिक की फिल्म 'भविष्य द फ्यूचर' प्रदर्शित करने की तैयारी चल रही थी तो लगा कि हिंदी के अकादमिक सत्रों की गंभीरता और थकावट से जूझने के बाद कुछ राहत के क्षण हाथ लगे हैं। लगा कि हां , अब वास्तव में उत्सव का रुप सामने आ रहा है। पहले फिल्म दिखाई जाएगी, फिर नृत्य की रंगारंग प्रस्तुति होगी और फिर भाव-विभोर करने के लिए कविता-उत्सव का माहौल होगा। फिक्की सभागार में दर्शक बड़ी मात्रा में उपस्थित थे...एक उत्सवी चहल-पहल हर तरफ व्याप्त थी। डॉ 0 निखिल कौशिक फिल्म के लेखक-निर्माता-निर्देशक तो थे ही, वे एक कुशल अभिनेता के रुप में भी फिल्म में दिखाई दिए। फिल्म प्रतिभा पलायन को रोकने का संदेश लिए थी और रोचकता से भरपूर थी । दिखाया गया कि कैसे एक प्रवासी भारतीय डॉक्टर का पुत्र जब प्रतिभाशाली नेत्र-चिकित्सक बनता है और भारत से लंदन में नेत्र-चिकित्सक लड़की के प्रेमपाश में बंधता है तो वे दोनों शादी करके इंग्लैण्ड नहीं बल्कि भारत में रहकर डॉक्टरी सेवा देने का फैसला करते हैं। फिल्म में प्रसिध्द गजलकार , गीतकार कुंवर बैचेन और माया गोविन्द के गीतों को भी शामिल किया गया है। फिल्म प्रस्तुति के बाद एक संक्षिप्त सा कार्यक्रम हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ0 कुंवर बेचैन ने की। विशिष्ट अतिथि के नाते पधारी जनमत टी.वी. की एक्जिक्यूटिव प्रोडयूसर सुश्री श्वेता रंजन ने इस अवसर पर कहा कि इस फिल्म को देखने के बाद लगता है कि मुझे अपने विदेश जाकर काम करने की योजना पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। कार्यक्रम में डॉ 0 निखिल कौशिक, डॉ0 विक्रम सिंह, इस फिल्म के अभिनेता हरीश भल्ला और अक्षरम् के अध्यक्ष अनिल जोशी ने भी अपने संक्षिप्त विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन नरेश शांडिल्य ने किया। संयोजन का दायित्व बी. संजय ने संभाला। नृत्य प्रस्तुति नलिनी-कमलिनी फिल्म प्रस्तुति कार्यक्रम के तुरन्त बाद प्रसिध्द नृत्यांगना बहनों - नलिनी और कमलिनी की नृत्य प्रस्तुति हुई। सारा सभागार मंत्र-मुग्ध सा घंटों चली इस शानदार प्रस्तुति का रसास्वादन करता रहा। इस अवसर पर पद्मश्री  पं0 सुरिन्दर सिंह (सिंह बंधु) की अध्यक्षता और आर्ट ऑफ लिविंग के डॉ 0 जे. पी. गुप्ता, महाराजा अग्रसेन इंस्ट्टीयूट के नन्द किशोर गर्ग, महाराजा अग्रसेन कॉलेज अग्रोहा के जगदीश मित्तल, आइडियल इंस्ट्टीयूट ऑफ टैक्नोलोजी गाजियाबाद के अतुल जैन के सान्निध्य में एक संक्षिप्त कार्यक्रम हुआ जिसका संचालन अलका सिन्हा ने और संयोजन विनीता गुप्ता ने किया। सम्मान अर्पण समारोह  14 जनवरी को फिक्की सभागार में अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में सम्मान अर्पण समारोह और भव्य कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ। अक्षरम् के मुख्य संरक्षक डॉ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी जब अस्वस्थता के बावजूद व्हील चेयर पर समारोह की अध्यक्षता के लिए सभागार में पधारे तो वातावरण तालियों से गूंज उठा। उनके साहस और उत्साह की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। भारत सरकार के विदेश राज्य मंत्री आनंद शर्मा की मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थिति कार्यक्रम को विशेष गरिमा प्रदान कर रही थी। इस अवसर पर बोलते हुए जब उन्होंने यह उद्धोषणा की कि विदेशों में हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए संसाधनों की कमी को आड़े  नहीं आने दिया जायेगा, तो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सभागार में उपस्थित हर हिन्दी प्रेमी के चेहरे पर एक खास चमक के दर्शन हुए। आशा की जानी चाहिए कि उनका यह कथन एक स्थाई रुप लेगा। मंत्री महोदय ने देश-विदेश के साहित्यकारों , हिंदी सेवियों को अक्षरम् सम्मान प्रदान किए। इस वर्ष का सबसे बड़ा 'अक्षरम् शिखर सम्मान' समकालीन हिन्दी साहित्य के शलाका-पुरुष और साहित्य की लगभग हर विधा में निरन्तर स्तरीय लेखन करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ 0 रामदरश मिश्र को दिया गया। अन्य सम्मानित व्यक्तित्वों में उमेश अग्निहोत्री, यू.एस.ए. (अक्षरम् प्रवासी साहित्य सम्मान), डॉ0 सीतेश आलोक , भारत (अक्षरम् साहित्य सम्मान), श्याम त्रिपाठी, कनाडा, (अक्षरम् प्रवासी हिन्दी सम्मान), डॉ0 बृज बिहारी कुमार, भारत (अक्षरम् हिन्दी सेवा सम्मान), डॉ0 निखिल कौशिक, यू.के. (अक्षरम् प्रवासी फिल्मकार सम्मान), पद्म श्री  डॉ0 मदनलाल 'मधु' रूस (लक्ष्मीमल्ल सिंघवी सम्मान) जैसे वरिष्ठ साहित्यकार व हिंदी प्रेमी शामिल थे। कार्यक्रम के दौरान डॉ 0 विमलेश कांति वर्मा व डॉ0 अषोक चक्रधर ने सम्मेलन के निष्कर्षों को बिन्दु रुप में प्रस्तुत किया। इस उत्सव के प्रमुख प्रायोजक प्रवेक कल्प हर्बल प्रोडक्ट (प्रा.) लि. के संजय गुप्ता कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप में मौजूद थे। अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन 14 जनवरी की रात्रि फिक्की के भव्य सभागार में अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव-2007 का आखिरी कार्यक्रम अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन के रुप में सम्पन्न हुआ। इस गरिमामयी कवि सम्मेलन की अध्यक्षता अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी के वरिष्ठ कवि डॉ 0 कैलाश वाजपेयी ने की। वरिष्ठ गीतकार व गजलकार बालस्वरुप राही और प्रख्यात कवि डॉ0 अशोक चक्रधर विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित रहे। कवि सम्मेलन प्रारम्भ होने से पूर्व ब्रिटेन की प्रसिध्द कवयित्री दिव्या माथुर के सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह 'चंदन पानी' का लोकार्पण विदेश राज्यमंत्री जी के हाथों से भी सम्पन्न हुआ। यह संग्रह डायमण्ड बुक्स ने प्रकाशित किया है। कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करने वाले कवि-कवयित्रियों में विदेश से डॉ 0 सत्येन्द्र श्रीवास्तव (यू.के.), पद्मश्री मदनलाल 'मधु' (रुस), डॉ0 श्याम त्रिपाठी (कनाडा) , दिव्या माथुर (यू.के.), डॉ0 पदमेश गुप्त (यू.के.), देवेन्द्र सिंह (यू.एस.ए.), रेणु राजवंशी गुप्ता (यू.एस.ए.) ,  डॉ0 निखिल कौशिक (यू.के.), शैल अग्रवाल (यू.के.), जया वर्मा (यू.के.), अनुज अग्रवाल (यू.के.) और भारत से डॉ0 रामदरश मिश्र (दिल्ली), बालस्वरुप राही (दिल्ली), डॉ0 अशोक चक्रधर (दिल्ली), डॉ0 कुंवर बेचैन (गाजियाबाद), सोम ठाकुर (लखनऊ), बुध्दिसेन शर्मा (इलाहाबाद), मुनव्वर राना (कोलकाता), डॉ 0 सरिता शर्मा (दिल्ली), डॉ0 बलदेव वंशी (दिल्ली), ब्रजेन्द्र त्रिपाठी (दिल्ली), लक्ष्मीशंकर वाजपेयी (दिल्ली) , नरेश शांडिल्य (दिल्ली), अनिल जोशी (दिल्ली), गजेन्द्र सोलंकी (दिल्ली), राजेश चेतन (दिल्ली), शशिकान्त (दिल्ली) , आलोक श्रीवास्तव (दिल्ली), संदेश त्यागी (श्रीगंगानगर) शामिल थे। कवि सम्मेलन मे श्रोताओं ने 'गीत-गजल, दोहा-कविता हर विधा का भरपूर आनंद लिया । देर रात तक चले इस कवि सम्मेलन का कुशल संचालन अनिल जोशी ने किया। बाद में सभी कवियों को कवि सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ 0 कैलाश वाजपेयी ने प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया । तीन दिनों तक चले हिंदी उत्सव के इस अंतिम कार्यक्रम के अन्त में अक्षरम् के अध्यक्ष अनिल जोशी ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए इस त्रिदिवसीय उत्सव के अकादमिक सत्रों के संयोजन में डॉ0  विमलेश कान्ति वर्मा और डॉ0 प्रेम जनमेजय की महती भूमिका रही। अक्षरम् के गजेन्द्र सोलंकी, राजेश चेतन, डॉ0 जवाहर कर्नावट, डॉ0 राजेश कुमार, चैतन्य प्रकाश, शशिकांत, अलका सिन्हा, ऋतु गोयल आदि ने कार्यक्रम के संयोजन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया। सुश्री पायल शर्मा ने तीनों दिन के कार्यक्रमों की वीडियो और फोटोग्राफी कवरेज के लिए अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दीं। प्रवेक कल्प हर्बल प्रोडक्ट (प्रा.) लि. के चेयरमैन अजय गुप्ता इस उत्सव के मुख्य प्रायोजकों में से थे। अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 2007 में व्यक्त मुख्य विचार ' विदेशों में हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए संसाधनों की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा'  विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा
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' हमारे यहां लेखकों का तो स्वागत होता है, उनकी किताबों का नहीं' प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर
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' हिंदी का सूरज अस्त न हो इसके लिए प्रवासी और निवासी भारतवंशियों को एक मंच पर आना होगा'  ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त डॉ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी
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' विदेशों में हिन्दी भाषा का प्रचार हिंदी फिल्मों ने किया' त्रिनिदाद व टोबेगो में भारत के पूर्व उच्चायुक्त वीरेन्द्र गुप्त
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' हिंदी मीडिया को आत्मालोचन की जरुरत है' हिंदी आउटलुक के संपादक आलोक मेहता
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' हिंदी एक बड़ी जनसंख्या की भाषा है, इसलिए हिंदी कॉरपोरेट जगत की जरुरत है' मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी
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' हिंदी के लिए प्रतिबध्दता की बहुत जरुरत है' -हीरो सोवा के अध्यक्ष योगेश मुंजाल
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' हिंदी सीखना और जानना अब जरुरी हो गया है' -इकोनोमिक टाइम्स के संपादक के.ए.बद्रीनाथ
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' अगर भारत से हिंदी खत्म हुई तो वह सारे जहां से अच्छा नहीं रहेगा' इटली के मार्क जौली
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यूरोप में भारतीय भाषाओं के अध्ययन व अध्यापन की एक लम्बी परंपरा रही है पौलेंड की मोनिका ब्रोवारचिक
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' हिंदी विश्व की किसी भी भाषा से कमतर नहीं' पूर्व सांसद रत्नाकर पांडेय
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' हिंदी भाषा को लगातार अपदस्थ किया जा रहा है' भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक एवं आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय
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' प्रवासी भारतीय साहित्य वह है जिसमें भारतीय मूल्यों का समावेश  प्रख्यात उपन्यासकार डॉ0 नरेन्द्र कोहली
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हिंदी में शोध की स्थिति सूखी घास के ढेर की तरह है' केन्द्रीय हिंदी संस्थान , आगरा के निदेशक शंभूनाथ
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' देश की चारों दिशाओं उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में हिंदी पीठ की स्थापना होनी चाहिए उत्तरप्रदेश हिंदी भाषा संस्थान के उपाध्यक्ष सोम ठाकुर
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' भाषाई अकादमियां तभी सफल हो सकती हैं, जब राज्य की एक स्पष्ट भाषा नीति हो' हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक राधेश्याम शर्मा
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' हिंदी में ग्लोबल-नेटवर्किन्ग की महती आवश्यकता है यू.के.हिंदी समिति के अध्यक्ष डॉ0 पदमेश गुप्त
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' साहित्य को प्रवासी साहित्य, स्त्री साहित्य, दलित साहित्य इत्यादि सांचों में बांटना उचित नहीं है' यू.के. की कवयित्री-कथाकार शैल अग्रवाल ।
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दुनिया में सबसे अधिक चर्चित एवं आकार की दृष्टि से सर्वाधिक छोटी मात्र १७ अक्षर की कविता '[[हाइकु]]' पर केन्द्रित 'हाइकु दिवस` का आयोजन साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सभागार में ०४ दिसम्बर को किया गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर और उनके बाद अज्ञेय जी ने अपनी जापान यात्राओं से वापस आते समय जापानी हाइकु कविताओं से प्रभावित होकर उनके अनुवाद किए जिनके माध्यम से भारतीय हिन्दी पाठक 'हाइकु` के नाम से परिचित हुए। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर डॉ० सत्यभूषण वर्मा(०४-१२-१९३२ ....... १३-01-२००५) ने जापानी हाइकु कविताओं का सीधा हिन्दी में अनुवाद करके भारत में उनका प्रचार-प्रसार किया। इससे पूर्व हाइकु कविताओं के जो अनुवाद आ रहे थे वे अंगे्रजी के माध्यम से हिन्दी में आ रहे थे प्रो० वर्मा ने जापानी हाइकु से सीधा हिन्दी अनुवाद करके भारत मे उसका प्रचार-प्रसार किया। परिणामत: आज भारत में हिन्दी हाइकु कविता लोकप्रिय होती जा रही है। अब तक लगभग ४०० से अधिक हिन्दी हाइकु कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और निरन्तर प्रकाशित हो है। प्रो० सत्यभूषण वर्मा के जन्म दिन ४ दिसम्बर कैं हाइकु दिवस के रूप मे मनाने का प्रारम्भ हाइकु कविता की पत्रिका `हाइकु दर्पण' ने २००६ से गाजियाबाद से किया। हाइकु दर्पण के संपादक डॉ० जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल एवं डॉ० अंजली देवधर द्वारा हिन्दी हाइकु कविता की गुणवत्ता में सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे है। इसी श्रृंखला में यह आयोजन किया गया।
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हाइकु दिवस समारोह के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० प्रभाकर श्रोत्रिय ने दीप प्रज्ज्वलन कर समारोह का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि श्री विजय किशोर मानव (संपादक कादम्बिनी) ने कहा कि हाइकु कविता मन की अतल गहराईयों कैं प्रभावित कर सके ऐसा प्रयास करना चाहिए। विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेई ने कहा कि हाइकु मन की अनुभूति की कम शब्दों में व्यक्त करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपनी आकाशवाणी की गोष्ठियों में हाइकु पाठ के लिए भी हाइकुकारों कैं आमंत्रित किए जाने की योजना विषयक जानकारी दी तथा डोगंरी भाषा मे लिखी जा रही हाइकु कविताओं की चर्चा की। विशिष्ट अतिथि डॉ० अंजली देवधर ने अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में लिखे जाने वाली हाइकु कविताओं की चर्चा करते हुए दुनिया के तमाम देशों में आयोजित हाइकु संगोष्ठियों में भारतीय हाइकु व हिन्दी हाइकु की उपस्थिति व मान्यता विषयक जानकारी देते हुए बताया कि बंगलोर में आयोजित अंग्रेजी भाषा के विश्व हाइकु सम्मेलन में पहली बार हाइकु दर्पण के संपादक को हिन्दी में हाइकु की स्थिति पर शोधपत्र प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शब्द जैसे-जैसे कम होते जाते है कविता सघन होकर और प्रभावशाली होती जाती है। हाइकु में कम शब्द होते है वहाँ किसी निरर्थक शब्द या अक्षर की गुंजाइश नहीं है इसीलिए एक अच्छा हाइकु बहुत प्रभावशाली होता है।
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हाइकु दर्पण पत्रिका के संपादक एवं हाइकु दिवस समारोह के संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने विश्व स्तर पर हिन्दी हाइकु की स्थिति की जानकारी दी। इण्टरनेट पर हिन्दी हाइकु के विषय में बताते हुए डा० व्योम ने कहा कि हिन्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइट- अनुभूति एवं अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन (यू.ए.ई.) ने हाइकु माह जैसे आयोजन किया तथा हाइकु की कार्यशाला आयोजित की और प्रतिदिन एक चुनिन्दा हाइकु चित्र सहित वेबसाइट पर प्रकाशित किया जिन्हें हजारों वेब पाठकों ने प्रतिदिन पढ़ा और सराहा। हिन्दी की अनेक वेबसाइट्स हैं जिन पर हाइकु कविताएँ निरंतर प्रकाशित की जा रही है? कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रसिद्ध हाइकुकार एवं साहित्यकार कमलेशभट्ट कमल ने हाइकु लेखन पर समग्र दृष्टि डालते हुए बताया कि आज के व्यस्ततम समय में मन के अनुभावों को व्यक्त करने के लिए अधिक समय किसी के पास नहीं है ऐसे में हाइकु कविता सर्वाधिक उपयोगी तथा समसामयिक है। प्रो० वर्मा के साथ हमेशा से जुड़े रहे कमलेश भट्ट कमल ने हिन्दी हाइकु यात्रा विषयक विस्तृत जानकारी दी तथा हाइकु १९८९, हाइकु १९९९ जैसे ऐतिहासिक संकलनों के संपादन के बाद प्रस्तावित हाइकु २००९ के संपादन विषयक जानकारी देते हुए हाइकुकारों से हाइकु भेजने हेतु कहा। ओमप्रकाश चतुर्वेदी पराग ने हाइकु कविता को ५-७-५ अक्षरक्रम में मात्र १७ अक्षर तक सीमित रखने विषयक अनुशासन पर प्रश्न उठाया।
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इस अवसर पर प्रो० सत्यभूण वर्मा की जीवन संगिनी श्रीमती सुरक्षा वर्मा की गरिमामय उपस्थित समारोह का आकर्षण रही। डा० अंजली देवधर को विभिन्न देशों व भाषाओं में हिन्दी हाइकु का प्रचार-प्रसार करने तथा श्रीमती सुरक्षा वर्मा को प्रो० सत्यभूषण वर्मा द्वारा छोडी गई हाइकु यात्रा को निरन्तर आगे बढाने की दिशा में सतत सहयोग देने के लिए समारोह के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय तथा मुख्यअतिथि कादम्बिनी के संपादक विजय किशोर मानव द्वारा शाल उढाकर सम्मानित किया गया।
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समारोह  में हाइकुकारों ने हाइकु कविताओं का पाठ कर जनसमूह को प्रभावित किया। हाइकु पाठ करने वालों में सर्वश्री- डॉ० कुअँर बेचैन, डॉ० सरिता शर्मा, पवन जैन(लखनऊ), अरविन्द कुमार, लक्ष्मीशंकर वाजपेई, ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग, कमलेश भट्ट कमल, डॉ० जगदीश व्योम, सुजाता शिवेन(उड़िया कवयित्री), ममता किरण वाजपेई, प्रदीप गर्ग आदि प्रमुख थे।
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हाइकु दिवस समारोह में सुप्रसिद्ध साहित्यकार से.रा.यात्री, सुप्रसिद्ध गजलकार ज्ञान प्रकाश विवेक, इंडिया न्यूज पत्रिका के सहायक संपादक अशोक मिश्र, बी. एल. गौड़, साहित्यकार डॉ० अरुण प्रकाश ढौंढ़ियाल, हरेराम समीप, अमरनाथ अमर, डॉ० तारा गुप्ता, श्रीमती ज्योति श्रोत्रिय, ब्रजमोहन मुदगल, एस.एस.मावई, श्रीमती मावई, श्रीमती अलका यादव, शिवशंकर सिंह, सुधीर, प्रत्यूष, ममता किरन, मृत्युंजय साधक, नीरजा चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने किया।
  
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== अमेरिका में हिन्दी महोत्सव की धूम ==
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न्यू जर्सी (यू. एस. ए.)
  
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हिन्दी यू.एस.ए. द्वारा अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के सोमरसेट नगर में फ्रेंक्लिन हाई स्कूल के सभागार में दो दिवसीय सप्तम हिन्दी महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। आयोजन के पहले दिन लगभग 650 बालकों ने हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। 1200 क्षमता का फ्रेंक्लिन हाई स्कूल का सभागार जन समुदाय से भरा हुआ था। नृत्य, संगीत, अंताक्षरी, कविता पाठ, वाक्य में प्रयोग, हनुमान चालीसा तथा रामायण चोपाई गायन इस प्रकार की अन्य-अन्य प्रतियोगिताएँ देखकर दर्शक दाँतों तले उंगली दबाने को विवश थे। [[चित्र:BachchoPhoto1.jpeg|right]] हिन्दी यू.एस.ए. संस्था अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के अलावा अमेरिका के अन्य प्रांतों तथा कनाडा में भी हिन्दी के लगभग 25 विद्यालय चला रही है। इन विद्यालयों में लगभग 1200 बालक – बालिकाएँ साप्ताहिक कक्षा में आकर हिन्दी सीखते हैं और वर्ष में एक बार आयोजित हिन्दी महोत्सव में आकर अपनी प्रतिभा का मंचन करते हैं। इन कक्षाओं की एक और विशेषता का उल्लेख करना ज़रूरी है कि इन कक्षाओं में दक्षिण भारतीय राज्यों के बालक-बालिका भी उत्साह से भाग लेते हैं। अभी तक समपन्न 6 हिन्दी महोत्सवों में भारत से बाबा रामदेव, श्रीमती किरण बेदी, श्री वेद प्रताप वैदिक, साध्वी ऋतम्भरा, श्री नितिश भारद्वाज और लाफ्टर चैम्पियन राजू श्रीवस्तव अतिथि के रूप में आ चुके हैं। इसी प्रकार भारत के हिन्दी लोकप्रिय कवि श्री अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबाद, माणिक वर्मा, ओम व्यास, गजेन्द्र सोलंकी काव्य पाठ कर चुके हैं।
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लगभग 7 वर्ष पूर्व एक युवा दमपति देवेन्द्र- रचिता सिंह द्वारा आरंभ किया गया यह हिन्दी अभियान एक आन्दोलन का रूप लेता जा रहा है। हिन्दी महोत्सव में इस जन आन्दोलन का भव्य रूप का दर्शन किया जा सकता है। हिन्दी साहित्य के लगभग 15 स्टॉल लगाए गए थे। भारतीय व्यंजन उपलब्ध थे तथा दर्शक भी भारतीय वेशभूषा में समारोह में उपस्थित हुए थे। कुल मिलाकर एक रंग बिरंगे मेले का रूप इस हिन्दी के उत्सव ने ले लिया था। जितने लोग सभागार में उपस्थित थे उतने ही लोग बाहर मेले का आनन्द ले रहे थे।
  
== Koreans invade DU Hindi class ==
 
[[चित्र:Hindustan.jpg|left|thumb|Hindustan Times 05/01/2007]]
 
[http://http://epaper.hindustantimes.com/Default.aspx?selpg=1559 HINDUSTAN TIMES]
 
  
SOUTH KOREANS it seems are the foreigners most eager to pick up Hindi — and they want to do it fast. The majority of students enrolled for the short-term Hindi courses at Delhi University are South Koreans. Reason? Great job prospects in India with Korean majors Samsung, LG and Hyundai.
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मेले का दूसरा दिन विजेता बालकों को प्रवासी उद्योगपति श्री ब्रह्मरत्तन अग्रवाल और पूर्व एम्बेसेडर एट-लार्ज श्री भीष्म अग्निहोत्री द्वारा पुरस्कार वितरण से आरंभ हुआ। इस अनुष्ठान में लगभग 120 से अधिक हिन्दी के अध्यापक-अध्यापिकाएँ जुड़े हैं। इन सब का सम्मान किया गया। प्रसन्नता की बात है कि इन में से बहुत से अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारतीय राज्यों से भी आते हैं। हिन्दी यू.एस.. संस्था की एक और विशेषता का उल्लेख करना जरूरी है कि इस संस्था में कोई पद नहीं है, सभी स्वयंसेवक के रूप में ही कार्य करते हैं। लगभग 50 स्वयंसेवक दिन-रात मेहनत कर के इस आयोजन को सफल करते हैं। स्वयंसेवकों की मेहनत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सम्मान हेतु उनका नाम मंच से पुकारा गया, तो व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण, कोई भी स्वयंसेवक मंच पर उपस्थित ना हो पाया। इस अवसर पर श्री भूपेन्द्र मौर्य द्वारा सम्पादित “कर्मभूमि” नामक त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया। हिन्दी यू. एस. . की यह ई-पत्रिका हिन्दी जगत में लोकप्रिय होती जा रही है।
M.J. Park, director, Korea Trade Investment Promotion Agency, says that with 200 Korean companies already here and many more showing interest, India has emerged as the land of oppor tunity. “Earlier, Korea’s attention was on China. But now the scope for growth is greater in India,” says Park.Over 3,000 South Koreans are working and studying in India. Of the 28 foreign students enrolled in the certificate, diploma and advanced courses in Hindi, 14 are from South Korea.
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DU student Park Soon Ki is a graduate in global marketing and advertising from Busan. He and his friend Huo Jong Cheol, a computer scientist from Seoul, are in India studying, travelling, and job-hunting.
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“Many Koreans working in India speak good English, but the workers in the factory speak Hindi,” says Ruchika Batra, GM (corporate communication) at Samsung. “We had a programme under which executives from Korea would spend a year in India learning the language and knowing the local culture.” Koreans at LG too are busy learning Hindi. “They make a lot of effort to localise themselves,” says Y.V. Verma, director (human resources), LG.
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SOUTH KOREANS it seems are the for- eigners most eager to pick up Hindi — and they want to do it fast. The majority of students enrolled for the short-term Hindi courses at Delhi University are South Koreans. Reason? Great job prospects in India with Korean majors Samsung, LG and Hyundai. M.J. Park, director, Korea Trade In- vestment Promotion Agency, says that with 200 Korean companies already here and many more showing interest, India has emerged as the land of oppor- tunity. “Earlier, Korea’s attention was on China. But now the scope for growth is greater in India,” says Park. Over 3,000 South Koreans are work- ing and studying in India. Of the 28 for- eign students enrolled in the certificate, diploma and advanced courses in Hindi, 14 are from South Korea. DU student Park Soon Ki is a gradu- ate in global marketing and advertising from Busan. He and his friend Huo Jong Cheol, a computer scientist from Seoul, are in India studying, travelling, and job-hunting. “Many Koreans working in India speak good English, but the workers in the factory speak Hindi,” says Ruchika Batra, GM (corporate communication) at Samsung. “We had a programme un- der which executives from Korea would spend a year in India learning the lan- guage and knowing the local culture.” Koreans at LG too are busy learning Hindi. “They make a lot of effort to lo- calise themselves,” says Y.V. Verma, di- rector (human resources), LG.
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== १८वां अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव सम्पन्न ==
 
[[चित्र:18.-internasjonale-kulturfe.jpg|left|thumb|चित्र में बायें से ऊला अनुपम,आरिल स्योरूम, भारतीय राजदूत महेश सचदेव, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक,' नार्वेजीय सांसद हाइकी होलमोस और यू क़े क़े लेखक डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ]]
 
भारत-नार्वे सूचना और सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में २ सितम्बर २००६ को यूथ सेन्टर, ओसलो में १८वां अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव कविता, संगीत, नृत्य, व्याख्यान और पुरस्कार वितरण सहित धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ।<br>
 
'''संस्कृति, साहित्य, सेतु और कला पुरस्कार'''
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे नार्वे और आइसलैण्ड में भारतीय राजदूत महेश सचदेव, विशेष अतिथि थे सांसद और वित्त मन्त्रालय के सदस्य हाइकी होलमोस और अध्यक्षता की फोरम के अथ्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल ने। कार्यक्रम का संचालन किया ऊला अनुपम, मंच सज्जाा और ध्वनि आरिल सोरूम, व्यवस्था संचालन संगीता सीमोनसेन शुक्ला और स्वागत माया भारती, धनीराम और सिगरीद मारिये रेफसुम ने किया। भारत-नार्वे सूचना और सांस्कृतिक फोरम ने इस वर्ष चार पुरस्कार वितरित किये। सेतु सम्मान पुरस्कार भारतीय राजदूत महेश सचदेव को, संस्कृति पुरस्कार
 
नार्वेजीय कवियित्री और कलाकार इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन को, साहित्य पुरस्कार यू के में कवि और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव को और कला पुरस्कार भारत से आये कलाकार (चित्रकार) और कलाविद्यालय के प्रधानाचार्य गोविन्दर सोहल को ससम्मान प्रदान किया गया।<br>
 
'''इब्सेन, टैगोर और शेक्सपियर एक मंच पर'''
 
नार्वे के विश्व प्रसिद्ध नाटककार हेनरिक इब्सेन, भारत के साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और यू क़े के सर्वमान्य विलियम शेक्सपियर पहली बार एक साथ प्रस्तुत किये गये। हेनरिक इब्सेन के नाटक च्च्गुड़िया का घरच्च् का अंश सुरेशचन्द्र शुक्ल च्च्शरद आलोकच्च् ने पढ़ा, गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता का सत्स्वर पाठ बंगला और अंग्रेजी में किया प्रो असीमदत्त राय ने और शेक्सपियर के नाटकों की इंग्लैण्ड में लोकप्रियता पर प्रकाश डाला डा सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने।
 
सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय संगीत, भांगड़ा नृत्य, नार्वेजीय संगीत व नृत्य, कवितापाठ आदि मुख्य आकर्षण थे जिसमें नार्वेजीय, भारतीय, श्रीलंकाई, लेटिन अमरीकी, वियतनामी, बंगलादेशी और पाकिस्तानी कलाकारों नें भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ अनुराग सैम शाह ने गांधी जी के प्रिय भजन से किया। फोरम अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह अथवा नवम्बर में ओस्लो में च्च्स्कैन्डि -नेविया में हिन्दीच्च्पर एक सेमिनार और कविसम्मेलन आयोजित कर रही है। कार्यक्रम निश्चित होते ही शीघ्र ही तिथि की जानकारी दी जायेगी। '''::माया भारती::'''
 
  
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इसके बाद आरंभ हुआ भारत से पधारे कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य, राजेश चेतन, और बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा कवि सम्मेलन। राजेश चेतन के संचालन में लगभग 4 घण्टे तक यह कवि सम्मेलन चला। आदित्य जी की हास्य कविताओं को सुनकर सभागार ठहाकों से गूंज रहा था। हास्य के छन्द, बालक और परीक्षा तथा नोट देवता की आरती सुनाकर, आदित्य जी ने जनता को लोट-पोट कर दिया। हास्य व्यंग के साथ, ओज कविता के तेवर रखने वाले राजेश चेतन ने अपने लगभग 1 घंटे के काव्य पाठ में ‘राम बना रोम’ तथा ‘भारत और आतंकवाद’ जैसी कविताएँ सुनाकर, जनता की खूब वाह-वाह लूटी। विश्व प्रसिद्ध कवि कलाकर बाबा सत्यनारायण मौर्य ने हिन्दी महोत्सव की गरिमा अनुसार सबसे पहले राजेश चेतन की वनवासी राम कविता के साथ भगवान राम का चित्र बनाया। विश्व में सर्वाधिक तेज गति से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध बाबा ने अपनी कविताओं के साथ-साथ चित्रकारी की भी गहरी छाप जनता पर छोड़ी। समस्त जनता ने खड़े होकर, बाबा मौर्य का आरती में सहयोग किया तथा हिन्दी को एक जन-आन्दोलन बनाने के संकल्प के साथ सातवां हिन्दी महोत्सव समपन्न हुआ। इस आयोजन में प्रूडेंशल बीमा कम्पनी के श्री जय पुरोहित, महावीर चुड़ासमा, और श्री सतीष करनधिकर का आर्थिक सहयोग रहा, उनके प्रति भी संस्था आभार प्रकट करती है।
  
== सिएटल में काव्य गोष्ठी का आयोजन ==
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==उषा राजे सक्सेना के नए कहानी संग्रह का लोकार्पण==  
[[चित्र:DSCN0263.JPG|left|thumb|गोष्ठी के संचालक कवि अभिनव शुक्ला]]
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३० दिसम्बर २००६, सिएटल, संयुक्त राज्य अमेरिका,  नव वर्ष की पूर्व संध्या पर सिएटल में निवास कर रहे कवि अभिनव शुक्ल के घर पर एक हिंदी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप्ति एवं मंजू नें माँ सरस्वती की वंदना से किया। अभिनव शुक्ल के संचालन में गोष्ठी की अध्यक्षता पटना से पधारे कवि श्री स्वर्ण कुमार राजू नें करी।  गोष्ठी में अगस्त्य कोहली, राहुल उपाध्याय, संतोष कुमार पाल, शिवम् कुमार, स्वर्ण कुमार राजू तथा अभिनव शुक्ल नें अपनी रचनाओं का पाठ किया। ज्ञातव्य है कि पिछले कई वर्षों से सिएटल हिंदी समिति द्वारा नगर में एक वार्षिक कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता रहा है, पर मासिक काव्य गोष्ठियाँ नियमित रूप से नहीं होती हैं। गोष्ठी के अंत में इस विषय पर व्यापक चर्चा हुई तथा अगले माह होने वाली गोष्ठी का स्थान तथा समय निश्चित किया गया।
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== इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा साहित्य कृति सम्मान ==
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चर्चित कहानीकार उषा राजे सक्सेना के कहानी संग्रह 'वह रात और अन्य कहानियाँ' का लोकार्पण' लंदन स्थित नेहरू केंद्र में दिनांक शुक्रवार 30 मई 2008 को संपन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता, अचला शर्मा लेखिका, निदेशक बी.बी.सी वर्ल्ड सर्विस हिंदी लंदन ने किया। नेहरू केंद्र की निदेशक सुश्री मोनिका मोहता,आलोचक-समीक्षक गज़लकार श्री प्राण शर्मा, लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन, तथा भारत से आए पुस्तक के प्रकाशक श्री महेश भारद्वाज (सामायिक प्रकाशन) विशिष्ट अतिथि थे।
[[चित्र:Wikipedia.jpg|left|thumb|200px| श्री महेश चन्द्र शर्मा को सम्मानित करते हुए।]]इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा साहित्य कृति सम्मान समारोह का आयोजन हिंदी भवन में किया गया। मुख्य अतिथि पूर्व केंद्रीय मंत्री डा॰ सुब्रहाण्यम स्वामी थे। विशिष्ट अतिथि भारत भवन भोपाल के अध्यक्ष दया प्रकाश सिन्हा थे। वरिष्ठ साहित्यकार रामशरण गौड़ (साहित्य भारती सम्मान),साहित्य एवं हिन्दी के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पूर्व महापौर महेश चंद्र शर्मा (हिंदी सेवी सम्मान) जगमोहन सिंह राजपूत (डा॰नगेंद्र सम्मान),परमानंद पांचाल (जैनेन्द्र कुमार सम्मान),रमा सिंह(भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान)
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बलराम मिश्र (नरेंद्र मोहन सम्मान ) अमर गोस्वामी (डा॰रामलाल वर्मा सम्मान),पूरन चंद्र टंडन(विजयेन्द्र स्नातक सम्मान ) जयदेव डबास (कमला रत्नम सम्मान) कीर्ति काले (सत्यपाल चुग सम्मान),हरगुलाल (आचार्य चतुर सेन सम्मान), राजेंद्र त्यागी (यशपाल जैन सम्मान), मनोहरपुरी (गुरुदेव सम्मान),मनोहर लाल रत्नम(प्रशांत वेदालंकार सम्मान) और राजवीर सिंह क्रांतिकारी को (घनानंद सम्मान) दिया गया । समारोह के मुख्य अतिथि पुर्व केंद्रीय मंत्री डा॰ सुब्रह्मण्यम स्वामी थे । उन्होनें समाज रचना में साहित्यकारों की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।
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श्री स्वामी ने कहा कि संकट के इस दौर में साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका  है । समारोह के विशिष्ट अतिथि भारत भवन, भोपाल के अध्यक्ष डा॰ दया प्रकाश सिन्हा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में धर्म एक सेकुलर अवधारणा है।
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समारोह को संबोधित करने वालों ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुर्यकृष्ण, कैलाश हाँस्पिटल, नोयडा के अध्यक्ष डा॰ महेश शर्मा,साधना चैनल के अध्यक्ष राकेश गुप्ता आदि नाम उल्लेखनीय हैं ।
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== नरेश शांडिल्य की किताब का लोकार्पण ==
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[[चित्र:Main_Sadiyon_ki_Pyas.jpg|left|thumb|200px|नरेश शांडिल्य की किताब का लोकार्पण करते हुए।]]नरेश शांडिल्य के संग्रह में अनेक मुकम्मल ग़ज़लें हैं। रचना का सबसे बड़ा कार्य यही है कि वह जिस शिद्दत से कही गई है, उससे भी अध्कि शिद्दत से पाठकों तक पहुंचे। ये विचार सुप्रसिद्ध साहित्यकार-आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय ने हिन्दी भवन में २६ नवम्बर, २००६ को अन्तरराष्ट्रीय संस्था 'अक्षरम्‌' द्वारा आयोजित नरेश शांडिल्य के ग़ज़ल संग्रह 'मैं सदियों की प्यास' के लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किये। ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण सुप्रसि( ग़ज़लकार बालस्वरूप राही ने किया। प्रभाकर श्रोत्रिय ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। लोकार्पण के अवसर पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नरेश की ग़ज़लों में जीवन के विभिन्न पक्ष उजागर हुए हैं तथा इनमें सादगी के साथ-साथ प्रतिरोध् और व्यंग्य भी है। अन्य वक्ताओं में प्रो. सादिक, डॉ. सीतेश आलोक, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, अम्बर खरबन्दा, अमरनाथ अमर, विज्ञान व्रत, अनिल जोशी और शशिकान्त प्रमुख थे।
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यू.के. समिति लन्दन के अध्यक्ष तथा प्रवासी टुडे के सम्पादक डॉ. पद्मेश गुप्त भी इस अवसर पर विशेष रूप से पधरे। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध गायिका मधुमिता बोस ने संग्रह की कुछ ग़ज़लों का गायन भी किया। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवयित्री-कथाकार अल्का सिन्हा ने किया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य साहित्यकार व ग़ज़लकार उपस्थित थे। कार्यक्रम के अन्त में अक्षरम्‌ के अध्यक्ष अनिल जोशी ने सभी आगन्तुकों को ध्न्यवाद ज्ञापित किया।
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==कैलाश गौतम नहीं रहे==
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[[चित्र:Kailash_gautams.jpg|left|thumb|100px|कैलाश गौतम ]]हिंदी के लोकप्रिय गीतकार व हिंदुस्तानी अकादमी¸ इलाहाबाद के अध्यक्ष कैलाश गौतम नहीं रहे। शनिवार ९ दिसंबर २००६ को सुबह १० बजे हृदयगति रुक जाने से उनका देहांत हो गया। वे ६२ वर्ष के थे।
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हिंदी को लोक शब्दावली से संपन्न करने वाले कवियों में उनका नाम सबसे ऊपर आता है। आम आदमी के दैनिक जीवन की कठिनाइयों को मधुर गीतों में सादगी से व्यक्त करने के कारण उन्हें जनकवि भी कहा गया। कवि गौतम को उत्तर प्रदेश सरकार के सारस्वत सम्मान¸ हिंदी संस्थान लखनऊ के राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, निराला सम्मान, ऋतुराज सम्मान, परिवार सम्मान और समुच्चय सम्मान जैसे अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया। सीली माचिस की तीलियां तथा सिर पर आग उनके बहुचर्चित संग्रहों में से हैं।
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== अखिल अमेरिकन कवि सम्मेलन – “आखों देखा हाल” ==
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कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए नेहरू केंद्र की निदेशक, मोनिका मोहता ने सभी आगंतुक साहित्यकारों और श्रोताओ का स्वागत करते हुए बताया कि उषा राजे सक्सेना ब्रिटेन की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं उनके कहानी संग्रह 'वह
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रात ओर अन्य कहानियाँ' पुस्तक का लोकार्पण समाहरोह आयोजित कर नेहरू सेन्टर गौरवान्वित है। कार्यक्रम की अध्यक्षा अचला शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि उषा राजे उन तमाम विषयों पर क़लम चलाने का माद्दा रखती हैं जिन पर आमतौर पर अंग्रेज़ी के लेखक अपना अधिकार मानते है। ऐसे पात्रों के मन को समझना और उनकी कहानी लिखना जोखिम का काम है, उषा राजे यह जोखिम बखूबी उठाती हैं। अचला शर्मा ने आगे कहा कि उषा राजे की एक विशेषता यह कि वह चुपचाप अपने लेखन कार्य में लगी रहती हैं ये कहनियाँ इस बात का सुबूत हैं कि उषा अपने
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परिवेश के प्रति सजग हैं. क्योंकि ये कहानियाँ कई खबरों की सुर्खियों की याद दिलाती हैं।
  
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मुख्य वक्ता प्राण शर्मा ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा, उषा राजे की कहानियाँ' उनके ब्रिटेन के साक्षात अनुभवों को अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ हिंदी साहित्य में तो शीर्ष स्थान बनाती ही हैं साथ अँग्रेज़ी कहानियों के समानांतर भी हैं। 'वह रात और अन्य कहानियाँ' में दुनिया के अनेक देशों के आप्रवासी पात्र अपनी-अपनी व्यक्तिगत एवं स्थानीय समस्याओं और मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ हमारे समक्ष आते हैं।
  
रविवार 19 नवंबर को हिन्दी यू.एस.ए. नामक हिन्दी की स्वंयसेवी संस्था द्वारा न्यू जर्सी के रट्गर्स विश्वविद्यालय के डगलस कैम्पस में अपरान्ह 1 बजे कवि सम्मेलन का विधिवत रूप से शुभारंभ हुआ।  कार्यक्रम का शुभारंभ वॉशिंग्टन डी.सी के भारतीय राजदूतावास का प्रतिनिधित्व कर रहे श्री अनिल कुमार गुप्ता जी के कर कमलों द्वारा दीप-प्रज्जवलन से हुआ। तत्पश्चात बच्चों द्वारा गणेश एवं सरस्वती वंदना की सात्विक संगीतमय [[चित्र:IMG_0354.jpg|left|thumb|200px|कवि सम्मेलन का एक दृश्य]]प्रस्तुती की गई।
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लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन ने उषा राजे की कहानियों को गहन अनुभूतियोंवाली वाली कहानियाँ बताया। उन्होंने कहा ये कहानियाँ मात्र भारतीय या पाश्चात्य ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों से आए प्रवासियों की कहानियाँ है। युट्टा ने बताया कि उन्होंने इन कहानियों का अंग्रेजी अनुबाद कर इन्हें विश्वव्यापी बनाने का प्रयास किया है।
  
सभागार की सज्जा देखने योग्य थी। मंच पर 3 मेजों तथा 9 कुर्सियाँ आमंत्रित कवि गणों के लिए सजी हुईं थीं। सुंदर फूलदान सफेद मेजपोशों पर शोभा पा रहे थे। मंच के दाहिनी ओर प्रथमपूज्य विध्नहर्ता श्री गणपति जी महाराज की प्रतिमा शोभायमान हो रही थी। प्रतिमा के समक्ष दीप्तवान दीपकों की ज्योति मानो सभी श्रोताओं और दर्शकों को अन्धकार से प्रकाश की ओर चलने का आमंत्रण दे रही थी।
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प्रकाशक महेश भारद्वाज ने 'वह रात और अन्य कहानियाँ' को वैश्विक, यथार्थ पर आधारित पठनीय कहानियाँ बताया।
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उषा राजे ने अपने वक्तव्य में कहा वे अपनी लेखनी के माध्यम से मातृ भाषा के उन पाठकों तक पहुँचना चाहती हैं जिनकी पहुँच अँग्रेज़ी भाषा साहित्य तक नहीं है परंतु वे पाश्चात्य जीवन-पद्धति, जीवन-मूल्य, कार्य-संस्कृति,
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मानसिकता और प्रवासी जीवन आदि का फर्स्टहैंड पड़ताल चाहते हैं।
  
मंच के बीचों-बीच पीछे की ओर मध्य में कवि सम्मेलन का बैनर लगा हुआ था। इस बैनर के दोनों ओर भारत का राष्ट्रीय पक्षी स्वागत की मुद्रा में श्रोताओं को आकर्षित कर रहा था।  
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कार्यक्रम का संचालन राकेश दुबे, अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) भारतीय उच्चायोग लंदन ने किया। कहानी-पाठ किशोरी प्रज्ञा 'सुरभि' सक्सेना ने बड़े ही प्रभावशाली और सरस ढंग से किया। नेहरूकेंद्र लंदन के तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के लगभग सभी गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे और सभागार श्रोताओं और अतिथियों से भरा हुआ था।
  
इस सुन्दर सजावट में सबसे अधिक यदि कोई वस्तु आकर्षित कर रही थी तो वह थी तिरंगे पोस्टरों पर लिखी श्री भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी की प्रसिद्ध हिन्दी कविता की पंक्तियाँ साथ ही अमेरिका में जन्मी भारतीय पीढी को हिन्दी ज्ञान देने का सपना। यही सपना तो हिन्दी यू.एस.ए. का उद्देश्य भी है।
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== परिवेश सम्मान - 2007 ==
श्री देवेन्द्र सिंह जी ने, जो इस संस्था के संस्थापक तथा एक सक्रिय कार्यकर्ता हैं, ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए बताया कि इस कवि सम्मेलन का उद्देश्य लोगों को हिन्दी भाषा के प्रति जागरुक करना तथा अमेरिका में हिन्दी यू.एस.ए. द्वारा जो हिन्दी का अभियान चलाया जा रह है उससे लोगों को अवगत कराना तथा जोड़ना है। उन्होंने लोगों से हिन्दी का स्वयंसेवक बनने की विनती भी की। इसके बाद उन्होंने सियाटल से पधारे मुख्य कवि श्री अभिनव शुक्ल का संक्षिप्त परिचय दिया तथा कवि सम्मेलन का संचालन उन्हें सौंप दिया।
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श्री अभिनव शुक्ल ने सर्वप्रथम सभी अतिथि कवियों को बारी-बारी से मंच पर आमंत्रित कर मंच को पूरी तरह से कवि-सम्मेलन के लिए सजा लिया। आमंत्रित कवि एवं कवियत्रियों के नाम इस प्रकार हैं – श्री भैरू सिंह राजपुरोहित जी, श्रीमती रेखा रस्तोगी जी, श्रीमती शोभा वर्मा जी, श्री पंकज जैन जी, श्रीमती बिन्देश्वरी अग्रवाल जी, श्री हरभगवान शर्मा जी, श्री देवेन्द्र पाल सिंह जी, तथा अभिनव शुक्ल जी। इस प्रकार विभिन्न उम्र, रंगों, भावों, विचारों, पीढ़ियों, और मान्यताओं को अपने अंदर समेटे ये कवि जहाँ भरे हुए सभागार को देखकर गदगद हो रहे थे वहीं एक ओर बेचैनी के साथ अपने कविता पाठ की प्रतीक्षा भी कर रहे थे।
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अभिनव जी ने अपने अनुभव का उपयोग करते हुए अपनी अनुभवी हास्य रचनाओ द्वारा श्रोतओं को अभीभूत किया तथा बातों ही बातों में मंच पर श्री राजपुरोहित जी को बुला लिया। राजपुरोहित जी ने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजली देते हुए अपनी दो रचनाएँ सुनायी। सभागार अब तक खचाखच भर गया था और समय से कवि सम्मेलन प्रारंभ होने के कारण श्रोता और कवि दोनों ही प्रसन्न थे। इसके बाद अभिनव जी ने कुछ चटपटी यादें तथा चुटकुले सुनाए तथा एक गंभीर और वरिष्ट कवियित्री श्रीमती रेखा रस्तोगी को मंच पर आमंत्रित किया। रेखा जी ने एक कविता और गज़ल सुनाई। उसके बाद एक युवा कवियित्री श्रीमती शोभा वर्मा जी मंच पर आईं जिन्होने अपनी व्यंग रचनाओं से श्रोताओं को सोचने पर मजबूर किया। इसके बाद एक और युवा कवि जो पहली बार ही मंच पर आए थे, श्री पंकज जैन जी। आपने कविताओं द्वारा श्रोतओं को सन्देश दिया कि अमेरिका को अपनी कर्मभूमि बनाएँ तथा विदेश में रह कर भी अपनी धर्म, संस्कृति, और भाषा के लिए काम करें। इसके बाद हास्य का पिटारा लेकर आए एक हरियाणवी कवि श्री हरभगवान शर्मा जी जिनकी हास्य कवितओं में श्रोता दिल खोलकर हँसे और खूब तालियाँ बजायी।
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श्री हरभगवान जी की कविता पाठ के बाद मध्यांतर हुआ जिसमें श्री देवेन्द्र सिंह जी ने हिन्दी यू.एस.ए. के स्व्यंसेवी शिक्षकों, स्वयंसेवकों, तथा अन्य गण्यमान व्यक्तियों का परिचय करवाया।
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सबसे पहले उन्होंने ये बताया कि हिन्दी यू.एस.ए. का मुख्य उद्देश्य अमेरिका के स्कूलों के पाठ्यक्रम में हिन्दी को एक एच्छिक भाषा के रूप में स्थान दिलाना है। इसके लिए उन्होंने सभी भारतीयों से सहयोग की विनती की। श्री देवेन्द्र सिंह ने कहा कि हमें आपके धन की, समय की, सेवा की, विचारों की, तथा आपके साथ की पग-पग पर आवश्यकता है।
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इसके बाद उन्होंने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ‘श्री डॉ. सुधीर पारिख’ जी का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनसे दो शब्द बोलने का आग्रह किया। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि सुधीर भाई पारिख जी को पिछले वर्ष ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ में ‘सर्वश्रेष्ठ प्रवासी भारतीय’ के सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री पारिख जी ने हिन्दी यू.एस.ए के कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा भविष्य में हर प्रकार की सहायता देने का आश्वासन दिया। साथ ही उन्होंने हिन्दी यू.एस.ए. के सामने ‘हिन्दी चेयर’ (न्यू जर्सी) बनाने का भी प्रस्ताव रखा।
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श्री देवेन्द्र सिंह ने उत्तरीय पहना कर तथा श्री अनिल कुमार गुप्ता जी ने सम्मान पत्र देकर श्री पारिख जी का सम्मान किया। उसके बाद, श्री पारिख ने हिन्दी यू.एस.ए. के लगभग 20 शिक्षकों को उनकी अनवरत सेवा के लिए प्रमाण पत्र तथा उपहार प्रदान किए। यह ज्ञात हो कि हिन्दी यू.एस.ए लगभग 25 पाठशालाएँ पूरे अमेरिका में चला रहा है।
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इसके बाद, श्री अनिल कुमर गुप्ता जी जो वॉशिंग्टन डी.सी. के भारतीय राजदूतवास से इस कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए विशेष रूप से पधारे थे तथा जो कम्यूनिटी अफेयर मिनिस्टर के पद पर कार्यरत हैं को मंच पर आमंत्रित किया गया तथा श्री नवीन गुप्ता जी जो न्यू जर्सी के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं के द्वारा सम्मान पत्र प्रेक्षित किया गया। श्री गुप्ता जी ने अपने सम्बोधन में हिन्दी के कार्यक्रमों तथा शिक्षा हेतु हर सम्भव सहायता देने का आश्वासन दिया। साथ ही उन्होंने कवि सम्मेलन की भी सराहना की और भविष्य में इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने की बात कही। अंत में उन्होंने हिन्दी यू.एस.ए. के सभी स्वयंसेवकों को प्रमाण पत्र तथा उपहार भेंट किए। वे हिन्दी यू.एस.ए. की एकसार वेशभूषा से विशेष प्रभावित दिखे। उन्होंने कुछ ऐसे विश्वविद्यालय और विद्यालय के छात्र- छात्राओं को भी मंच पर सम्मानित किया जिन्होंने अमेरिका में जन्म लेने के बाद भी अपने हिन्दी प्रेम को बनाए रखा तथा पंचम हिन्दी महोत्सव में अपना समय व सेवाएँ हिन्दी यू.एस.ए. को दीं। इसमे 13 साल से 18 साल के बच्चे शामिल थे।
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इसके बाद ‘चौपाटी’ के मालिक श्री चन्द्रकान्त पटेल को प्रथम हिन्दी नाम पट्टिका लगाने के लिए सम्मानित किया गया। हिन्दी यू.एस.ए. का प्रयास है कि ‘चाइना टाउन’ की तरह ‘इंडिया बाजार’ भी अपनी स्वयं की भाषा से सजे। इस प्रयास का यह पहला कदम है जो श्री पटेल ने उठाया है; वे निश्चय ही सम्मान के पात्र हैं। आशा है अन्य व्यापारीगण भी उनका अनुसरण करेंगे।
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मध्यांतर के उपरांत अभिनव शुक्ल जी ने सहज ही अपनी तथा अन्य कवियों की कविताओं से तथा चुटकुलों द्वारा पुनः कवि सम्मेलन का वातावरण बना दिया और हिन्दी व्याख्याता तथा वरिष्ट कवियत्री श्रीमती बिंदेश्वरी अग्रवाल को मंच पर कविता-पाठ के लिए आमंत्रित किया। अपनी हास्य व्यंग की कविताओं से बिन्दु जी ने न केवल जन मानस को गुदगुदाया बल्कि उन्हें स्वदेश की याद से भिगो भी दिया।
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उसके बाद कार्यक्रम के आयोजक तथा हिन्दी सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले श्री देवेन्द्र सिंह जी मंच पर आए जिनका कविताएँ लिखने का उद्देश्य सोए हुए समाज को जगाना तथा लोगों को कर्मठ बनाकर अपना जीवन सफल बनाने के साथ-साथ माँ भारती की सेवा करना सिखाना है। काव्य-पाठ प्रारंभ करने के पहले ही उन्होंने घोषणा की कि उनकी कविता सुनकर यदि आज 500 लोगों मे. से यदि 10 स्वयंसेवी भी हिन्दी की सेवा के लिए आगे नहीं आते हैं, तो उनका कविता सुनाना व्यर्थ है। उनकी दोनों कविताओं में जनता ने तालियों के साथ सुर में सुर मिलाया। बहुत सारे श्रोता उनकी ‘हिन्दू जागो, हिन्दी सीखो, हिन्दुस्तान बचाना है’ पंक्ति साथ-साथ तथा बाद में गुनगुनाते नज़र आए।
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अंत में, मंच संभाला श्री शुक्ल जी ने जो हास्य और व्यंग के अतिरिक्त अन्य कई रसों में अपनी कविताएँ करते हैं। एक ओर तो भारतीय संस्कृति का अंग बनती जा रही एक बिन-सिर-पैर की परम्परा ‘वेलेंटाइन डे’ पर उनकी हास्य रचना तथा दूसरी ओर आतंकवाद के अंत की विनती, राम बनने का आव्हन उनके वीर रस तथा देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित करते हैं। लखनऊ का वर्णन समेटे उनकी यादों की गठरी जब खुली तो पहुँच तो लोग मंत्र-मुघ्ध हों, बिना वायुयान, ही लखनऊ पहुँच गए और रबड़ी, कचौड़ी का स्वाद लेकर तभी लौटे जब कविता समाप्त हुई। इस प्रकार दोपहर एक बजे प्रारम्भ हुआ यह कार्यक्रम संध्या ठीक 5 बजे समाप्त हुआ। श्री महावीर भाई चूड़ास्मा जो हिन्दी महोत्सव के ग्रांड-स्पॉंन्सर भी हैं ने सभी कवियों को माँ शारदा की प्रतिमा हिन्दी सेवा के लिए धन्यवाद के साथ, प्रतीकात्मक रूप में भेंट की। सभी श्रोताओं ने कार्यक्रम के बाद कवियों से भेट कर, अपनी भावनाएँ व्यक्त की।
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सन्दीप अग्रवाल जी ने अंत में सभी श्रोताओं को धन्यवाद दिया एवं हिंदी यू.एस.ए. से जुड़ने का आव्हान किया।
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कुछ श्रोताओं ने हिन्दी की पुस्तकें, कवियों के सी.डी. व डी.वी.डी. भी खरीदे। पुस्त्कों के साथ-साथ भारतीय-कला तथा संस्कृति को दर्शाती हुई चित्रकला तथा पेंटिंग की प्रदर्शनी को भी दर्शकों ने सराहा। श्रोताओं ने खुले ह्रदय से अनुदान् दिया तथा भविष्य में हिन्दी यू.एस.ए. के कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा भी जाहिर की। यदि आप भी हिन्दी यू.एस.ए. के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप हमारी website [http://www.hindiusa.org http://www.hindiusa.org]देख सकते हैं या 856-582-5035 पर फोन कर सकते हैं।
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==  'प्रवासिनी के बोल' का विमोचन==  
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[[चित्र:Pravasinikebol.jpg|left|thumb|139px|'प्रवासिनी के बोल']] डा अंजना संधीर द्वारा संपादित अमेरिका की प्रवासी कवयित्रियों की कविताओं का पहला संकलन 'प्रवासिनी के बोल' का विमोचन शनिवार ९ दिसंबर को दोपहर ३ बजे 'क्वीन्स लाइब्रेरी' में होना निश्चित हुआ है। इस अवसर पर काव्यपाठ का आयोजन भी रखा गया है। डा संधीर व संकलन में प्रकाशित अधिकतर कवयित्रियां इस अवसर पर क्वींस लाइब्रेरी में उपस्थित रहेंगी। इस आयोजन में प्रवेश निःशुल्क है।
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साहित्यिक पत्रिका परिवेश द्वारा प्रतिवर्ष किसी रचनाकार को दिया जाने वाला चौदहवाँ परिवेश सम्मान वर्ष 2007 के लिए कवि-आलोचक शैलेंद्र चौहान को देने का निर्णय लिया गया है। परिवेश सम्मान की घोषणा करते हुए परिवेश के सम्पादक मूलचंद गौतम एवं महेश राही ने कहा कि हिन्दी में तमाम तरह के पुरस्कारों एवं सम्मानों के बीच इस सम्मान का अपना वैशिष्टय है। परिवेश के 53वें अंक में शैलेंद्र चौहान के साहित्यिक अवदान पर विशेष सामग्री केद्रिंत की जायेगी। 1957 में मध्यप्रदेश के खरगौन में जन्मे श्री शैलेंद्र चौहान को कविता विरासत के बजाय आत्मान्वेषण और आत्मभिव्यक्ति के संघर्ष के दौरान मिली है। निरन्तर सजग होते आत्मबोध ने उनकी रचनाशीलता को प्रखरता और सोद्देश्यता से संपन्न किया है। इसी कारण कविता उनके लिए संपूर्ण सामाजिकता और दायित्व की तलाश है। विचार, विवेक और बोध उनकी कविता के अतिरिक्त गुण हैं। जब कविता और कला आधुनिकता की होड़ में निरन्तर अमूर्त होती जा रही हो, ऐसे में शैलेंद्र चौहान समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के दु:ख तकलीफों को, उनके चेहरों पर पढ़ने की कोशिश करते हैं। शैलेन्द्र चौहान को दिया जाने वाला 2007 का परिवेश सम्मान इसी अनुभव और सजग मानवीय प्रतिबध्दता का सम्मान है।
 
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पुस्तक के प्रथम भाग में ८१ कवयित्रियों का सचित्र परिचय¸ कविताएँ व रचना प्रक्रिया दी गई है, दूसरे भाग में ३३ प्रतिभाशाली महिलाओं का सचित्र परिचय है तथा तृतीय भाग में भारतीय अमरीकी महिलाओं द्वारा अबतक प्रकाशित पुस्तकों की सूची दी गई है। 'प्रवासिनी के बोल' अमेरिका में हिंदी साहित्य का पहला प्रमाणिक दस्तावेज़ है।
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==  अमरीका मे हिन्दी के बढते कदम ==
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आज विश्व शक्ति का नाम ही अमरीका है । संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्यालय भी अमरीका में है, भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिन्दी  को अभी तक स्वीकार नहीं किया है परंतु विश्व शक्ति के आंगन में हिन्दी का छोटा पौधा फल-फूल रहा है । सबसे पहले स्वतंत्रता प्रतीक लिबर्टी प्रतिमा को प्रणाम करता हूँ जिसने यहाँ सभी धर्मो,जातियों और भाषाओं को विकसित होने का समान अवसर प्रदान किया है ।
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अमरीका यात्रा के प्रथम पडाव में न्यू जर्सी के प्लेंसबोरो विद्यालय के हिन्दी प्रेमियों से खचाखच भरे सभागार को देखकर मुझे लगा कि वह दिन दूर नहीं जब अमरीका के विद्यालयों में हिन्दी एक भाषा के रूप में पढाई जाएगी । आज हिन्दी-यू.एस.ए. संस्था द्वारा अमरीका में बीस से अधिक हिन्दी विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है । इन विद्यालयों में साप्ताहिक छुट्टियों में बालक अपने अभिभावकों के साथ घंटों का सफर तय करके हिन्दी सीखने आते हैं । वर्ष के अंत में यह सभी बालक हिन्दी महोत्सव के रुप में आकर अपनी हिन्दी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, इस बार यह पंचम हिन्दी महोत्सव का आयोजन हिन्दी यू.एस.ए. ने किया था । प्रातः से ही छोटे-छोटे बालक अपने माता-पिता के साथ सभागार में जुटने लगे थे, लगभग एक हजार क्षमता का हाल कुछ ही देर में खचाखच भर गया और फिर प्राथर्ना के साथ पंचम हिन्दी महोत्सव आरम्भ हुआ। गिनती बोलें , वेष प्रतियोगिता , नाटक व कविता पाठ प्रतियोगिता,  नृत्य, भाषण और भारत -दर्शन आदि दिन भर अनेक कार्यक्रम बालकों ने सफलतापूर्वक प्रस्तुत किए । लग रहा था कि सभागार में समस्त भारत उतर आया हो, प्राची और पार्थ ने कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन किया ।
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धीरे-धीरे दिन ढलता गया और अब मंच पर भारत से आये कवि-कलाकारों को आमंत्रित किया गया । हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव और विश्व प्रसिद्ध चित्रकार कवि बाबा सत्यनारायाण मौर्या के स्वागत में जन समूह उमड रहा था । राजू श्रीवास्तव की प्रस्तुति पर सभागार लगातार ठहाकों और तालियों से गूँज रहा था। राजू के अभिनय में बडी सहजता है, अमिताभ बच्चन को अपना आदर्श मानने वाले राजू जनता के दिलों पर अपनी अदाकारी के अमिट हस्ताक्षर करने में सफल रहे । बाबा  सत्यनारायाण मौर्य हिन्दी यू.एस.ए.के एक सक्रिय कार्यकर्ता  के रुप में वर्षों से जुडे हैं । अत: वे हिन्दी यू.एस.ए के स्वयंसेवकों में बहुत लोकप्रिय है । .राजू श्रीवास्तव और मेरे लम्बे काव्य पाठ के बाद रात्रि के लगभग साढे ग्यारह बजे का समय हो गया था लेकिन जनता अभी भी पूरे उत्साह से जमी हुई थी और फिर शुरू हुआ बाबा का लोकप्रिय कार्यक्रम भारत माता की आरती, कानवास पर बाबा के हाथ थिरक रहे थे, संगीत का आभाव था, मैं किसी तरह राजू के साथ मिलकर टूटे-फूटे स्वर में बाबा का सहयोग कर रहा था और देखते ही देखते सभागार में भारत मां की जय के नारे गूँजने लगे । हिन्दी को अमरीका में स्थापित करने के संक्लप के साथ पंचम् हिन्दी महोत्सव संपन्न हुआ । हिन्दी यू.एस.ए के संयोजक श्री देवेंद्र सिंह व उनकी धर्म पत्नी श्रीमती रचिता सिंह साधुवाद के पात्र हैं जिनके नेतृत्व में अनेक स्वयंसेवक जैसे श्रीमती और श्री संदीप अग्रवाल ,  श्री राज मित्तल , श्रीमती और श्री शैलेंद्र सिहं , श्री ब्रजेश सिहं , श्रीमती और श्री सचिन गर्ग , श्री दिग्विजय म्यूर , श्री त्रृषि गोर, श्रीमती और श्री दुर्गेश गुप्ता हिन्दी सेवा में जुटे हैं ।
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यहाँ ओलंपिक सिटी अटलांटा का उल्लेख करना भी मैं जरूरी समझता हूँ , चालीस लाख की आबादी का यह शहर मौसम में दिल्ली जैसा है । यहाँ बडी संख्या में कंप्यूटर इंजिनीयर हैं । श्री शिव अग्रवाल जी द्वारा निर्मित इंडियन ग्लोबल माँल अटलांटा में एक छोटे भारत के रूप में है । सेवा इंटरनेशनल ने यहाँ के सभागार में हास्य के फव्वारे नाम से एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया । लखनऊ के एक युवा कवि श्री अभिनव शुक्ला जो कि आजकल अमरीका में ही हैं, उनके काव्य पाठ से कवि सम्मेलन आरंभ हुआ । अभिनव के चुटीले व्यंग्य बाण और आरक्षण पर प्रहार करती कविता ने जनता को प्रभावित किया । कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुझे भी कुछ कविता प्रस्तुत करने का अवसर मिला और फिर आरंभ हुआ बाबा मौर्य द्वारा भारत माँ की आरती का कार्यक्रम । अटलांटा के कार्यकर्ताओं ने संगीत का प्रबंध कर लिया था, अतः बाबा मौर्य के गीतों व संगीत की धुनों के साथ पूरा सभागार भारत माँ की भक्ति में नाचने लगा । इस समारोह को सफल बनाने में श्रीमती और श्री गौरव सिहं एवम् श्रीमती और श्री श्रीकांत जी साधुवाद के पात्र हैं ।
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हिन्दी के इस पताका को फहराने में अंतराष्ट्रीय हिन्दी समिति का भी बडा योगदान है । व्यक्तिगत बातचीत में श्री हिमांशु पाठक ने मुझे बताया कि अमरीका के पुस्तकालयों में आजकल हिब्रू , चीनी के साथ-साथ हिन्दी साहित्य पर भी परिचर्चा आयोजित की जा रही है । अब यह अवसर आया है कि भारत सरकार हिन्दी के इन समर्पित कार्यकर्ताओं को साथ लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन अमरीका में आयोजित करने पर विचार करे। अगर अगला विश्व हिन्दी सम्मेलन अमरीका में किया गया तो हिन्दी के इन छोटे-छोटे प्रकलपों को ऊर्जा मिलेगी और संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वार पर हिन्दी की एक सश्कत आवाज भी पहुँच सकेगी ।
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अमरीका के हिन्दी सेवियों को शत-शत प्रणाम ।
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== कैम्ब्रिज के पाठयक्रम से हिन्दी को हटाना । ==
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23 अक्टूबर  सोमवार , नई दिल्ली
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अक्षरम द्वारा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पाठयक्रम से हिन्दी हटाये जाने के संदर्भ में “ विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी का भविष्य ” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन में किया गया जिसकी अध्यक्षता श्री हिमांशु जोशी ने की । डा॰ श्री एल एम सिंघवी और डा॰ सत्येन्द्र श्रीवास्तव कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे । डा अशोक चक्रधर, श्रीमती मधु गोस्वामी, डा रमेश गौतम, डा एम पी शर्मा, डा दिविक रमेश, डा प्रेम जनमेजय, डा हरीश नवल, डा विमलेश कांति वर्मा, श्री अनिल जनविजय, श्री विजय कुमार मल्होत्रा और डा राजेश कुमार गोष्ठी के प्रतिभागी थे । डायमंड पाकेट बुक्स वाले श्री नरेन्द्र वर्मा स्वागताध्य्क्ष थे । कार्यक्रम का संचालन श्री अनिल जोशी व श्री राजेश चेतन ने किया ।
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==  प्रख्यात गीतकार श्री मधुर शास्त्री नहीं रहे ==
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हिन्दी के प्रख्यात गीतकार श्री मधुर शास्त्री जी का निधन दिनांक 4 अक्टूबर को अचानक हो गया। ७४ वर्षीय श्री शास्त्री हिन्दी मंच के बहुत ही लोकप्रिय गीतकार रहे । अपने जीवन में शास्त्री जी ने ८ काव्य संग्रह हिन्दी साहित्य को दिये । उनके दुखद निधन से हिन्दी साहित्य ने एक महान गीतकार खोया है । शास्त्री जी के चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि।
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== हरियाणा का सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मेलन ==
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[[चित्र:DSCN1056.JPG|left|thumb|200px]]
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कैथल,हरियाणा (24 सितंबर,2006) महाराजा अग्रसेन का दिव्य दरबार, भव्य, दिव्य मंच, मंच के एक ओर आगन्तुक अतिथि जिनमें दिल्ली सरकार के लोकप्रिय मंत्री श्री मंगत राम सिंघल व दूसरी ओर सरस्वती पुत्र कविगण, सामने हजारों की जो भीड जो मन्त्र मुग्ध होकर कविता सुनने आई है ।
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हर वर्ष की भाँति एक यादगार काव्य अनुष्ठान आरम्भ हुआ । डा सुनील जोगी, डा मंजु दीक्षित, श्री गजेंद्र सोलंकी, श्री सुनील साहिल, श्री जगबीर राठी व देवेश तिवारी के काव्य पाठ पर जन समुदाय झूम रहा था । दिल्ली के युवा कवि राजेश चेतन कुशलता पूर्वक मंच संचालन कर रहे थे । इस समारोह को सफ़ल बनाने में श्री प्रवीण चौधरी, श्री राजेन्द्र गुप्ता व श्री श्याम सुंदर बंसल का सहयोग रहा ।
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==            हिन्दी का एक लघु दीप - ओमान ==
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[[चित्र:DSCN0978.JPG|left|thumb|210px|आमंत्रित कविगण होटल अलबूस्तान में]]               
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मस्कट ( 8 अक्टूबर ), मस्कट ओमान की राजधानी, सुंदर, सुसज्जित, एक ओर समन्दर,दूसरी ओर पहाड़, शापिंग माल, होटल्स, 25 लाख की आबादी के ओमान देश की एक चौथाई जनसंख्या यहां निवास करती है । अगर आपको अंग्रेजी नही आती, ना ही अरबी आती तो घबराना नहीं ओमान मे हिन्दी से भी आपका काम बखूबी चलेगा । दिल्ली से अहमदाबाद होते जैसे ही मस्कट पहुँचे इंडियन सोशल क्लब के श्री सी एम सरदार, श्री गजेश धारीवाल , श्री वीर सिंह और श्री एन डी भाटिया ने सपरिवार पुष्पगुच्छों से कवियों  का गर्मजोशी से अभिनन्दन किया, ओमानी नागरिक विस्मय से इस समारोह को देख रहे थे । इस लघु समारोह के बाद  हास्य आचार्य श्री ओम प्रकाश आदित्य के नेतृत्व में युवा कवियों के दल ने अलग अलग गाडियों में शहर के प्रतिष्ठित होटल रामी की ओर प्रस्थान किया ।
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लूलू शापिंग माल में काउंटर संभाले ओमानी लडकियों की सक्रियता देख कर अच्छा लगा, सब तरफ भारतीय परिवेश, भारतीय लोग और हिन्दी, मानो ओमान में नहीं दिल्ली में ही घूम रहें हों । इंडियन स्कूल, मस्कट के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष श्री द्विवेदी ने बताया कि उनके विद्यालय में बालको में हिन्दी पढने का काफी उत्साह है लेकिन अभिभावक जन की हिन्दी उपेक्षा से वे परेशान दिखाई पडे । 
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ओमान के सुल्तान के निजी होटल अलबूस्तान का बडा हाल जिसकी क्षमता लगभग 1500 है समय से पूर्व ही खचाखच भर गया था कार्यक्रम के संयोजक सरदार साहब ने बडे चुटीले अंदाज में कवि सम्मेलन के स्वागत सत्र का संचालन करते हुये बताया कवि सम्मेलन को ले कर लोगों में सर्वाधिक उत्साह है, श्रोताओं में केवल भारतीय ही नहीं अपितु ओमानी, पाकिस्तानी व बंगलादेशी भी होते है  और फिर शुरु हुआ डा सुनील जोगी के सधे हुये संचालन में कवि सम्मेलन, एक ओर जहॉ लखनऊ के सर्वेश अस्थाना ने अपने सांसद व पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी पर तीखे व्यंग्य बाण छोडे दूसरी ओर राजस्थान के संजय झाला ने सोनिया जी को निशाना बनाया, राजेश चेतन की कविता अमरीका के व्हाईट हाऊस पे तिरंगा को भी लोगों ने पसन्द किया, प्रवीण शुक्ल की भूकम्प त्रासदी कविता के साथ ही हंसी ठहाकों के बीच पहले दौर का कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
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ठहाकों के बीच दूसरा दौर महेन्द्र अजनबी ने आरम्भ किया, जहां उन्होनें भूत वाली कविता के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं  पर तीखा प्रहार किया, वही शायर तह्सीन मुनवर ने शहनाई सम्राट बिसमिल्लाह को याद किया । सुनील जोगी की पत्नी सौन्दर्य कविता पर लोग झूम रहे थे और समापन में आदित्य जी की माडर्न शादी कविता का भी लोगों ने भरपूर आनन्द लिया ।
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== वर्ष 2007 का 'केदार सम्मान' अनामिका को==     
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'केदार शोध पीठ न्यास' बान्दा द्वारा सन् १९९६ से प्रति वर्ष प्रतिष्ठित प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में दिए जाने वाले साहित्यिक 'केदार-सम्मान' की घोषणा कर दी गई है। वर्ष २००७ का केदार सम्मान कवयित्री सुश्री अनामिका को उनके काव्य-संग्रह 'खुरदरी हथेलियाँ ' के लिए प्रदान किए जाने का निर्णय किया गया है। यह सम्मान प्रतिवर्ष ऐसी प्रतिभाओं  को दिया जाता है जिन्होंने केदार की काव्यधारा को आगे बढ़ाने में अपनी रचनाशीलता द्वारा कोई अवदान दिया हो।
  
इंडियन सोशल क्लब, इंडियन स्कूल, भारत के कवि, भारत सरकार और भारत के हिन्दी संगठन यदि मिलकर कार्य करें इस छोटे से देश में हिन्दी का बडा काम हो सकता है । ओमान के हिन्दी प्रेमियों को साधुवाद।
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==फिर खुलेगा 300 साल पुराना पुस्तकालय==   
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औरंगाबाद। औरंगाबाद में ऐतिहासिक वाटर मिल में 40 साल के अंतराल के बाद 300 साल पुराना प्राचीन पुस्तकालय फिर से खोला जा रहा है।
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इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों और दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा संग्रह है जिसमें मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर द्वारा लिखी गई पवित्र कुरान भी शामिल है। यह पुस्तकालय 18वीं शताब्दी का है जो एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है। महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के प्रयासों से यह फिर से खुलने जा रहा है।
  
-राजेश चेतन
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==हिन्दी में तैयार होंगे 25 विषयों पर विश्वकोष==     
9811048542
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==अय्यप्प पणिक्कर नहीं रहे==
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देश का इकलौता हिन्दी विश्वविद्यालय 25 विषयों के विश्वकोष हिन्दी में तैयार करेगा। इसमें से एक विषय तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोष तैयार किया जा चुका है और संपादन पूर्ण होते ही इसे जारी कर दिया जाएगा। विश्वविद्यालय प्रत्येक वर्ष कम से कम  तीन विश्वकोष तैयार करेगा।
[[चित्र:Ayappa_panikar.jpg|left|thumb|127px|अय्यप्प पणिक्कर [1930-2006]]]
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महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन के अनुसार सभी 25 विश्वकोष हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना के अंतर्गत तैयार होंगे। जिन्हे बाद में एकीकृत किया जाएगा। इनमें तुलनात्मक साहित्य विश्वकोष सहित विश्वभाषा हिन्दी विश्वकोष, हिन्दी अनुवाद, जीव विज्ञान, कृषि, अंतरिक्ष, प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, विधि एवं मानवाधिकार, भाषा विज्ञान, संचार-माध्यम, नाट्शास्त्र, ललितकला आदि पर विश्वकोष होंगे।
मलयालम के सुप्रसिद्ध कवि, समीक्षक और दार्शनिक डा अय्यप्प पणिक्कर का २३ अगस्त 2006 को त्रिवेंद्रम में निधन हो गया।  वे मलयालम कविता में आधुनिक चेतना के प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने अपनी उपस्थिति और रचनात्मक प्रतिभा से केवल साहित्य ही नहीं बल्कि केरल के समस्त बुद्धिजीवी समाज को प्रभावित किया। 
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इस परियोजना को राष्ट्रीय विश्वकोष संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। परियोजना से विभिन्न खानानुशासनों में अनेकानेक विषयों पर अधिकतम प्रामाणिक सूचनाओं का विश्वकोष तैयार किया जा सकेगा। गोपीनाथन के अनुसार हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना विश्वकोष नाम से एक शोध-पत्र का भी प्रकाशन करेगा। इसके अंतर्गत अंक-विशेष के लिए ख्यातनाम विद्वानों से शोध-पत्र लिए जाएंगे। विश्वकोष परियोजना के अलावा विश्व हिन्दी पोर्टल और विश्व हिन्दी संग्रहालय व अभिलेखागार की योजना भी लागू की जानी है। विश्व हिन्दी पोर्टल पर हिन्दी से जुड़ी विश्वभर की गतिविधियां शामिल की जाएगी।
  
१२ सितंबर १९३० को कावालम के एक गाँव में जन्मे इस महाकवि की कविताएं 'अय्यप्प पणिक्करुडे कृतिकल‍' शीर्षक से चार भागों में तथा निबंध 'अय्यप्प पणिक्करुडे लेखनङ्ल्' शीर्षक से पांच भागों में संग्रहित हैं।
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==विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद"==
  
उन्होंने अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद येल व हार्वर्ड विश्वविद्यालयों में उच्चतर शोध कार्य किया। १९६५ में वे केरल विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बन कर सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अनेक ग्रंथों का कुशल संपादन किया, जिनमें शेक्सपियर के संपूर्ण साहित्य का मलयालम अनुवाद और समस्त मध्ययुगीन भारतीय साहित्य का अंग्रेज़ी अनुवाद अत्यंत महत्वपूर्ण समझे जाते हैं। वे अपने जीवनकाल में अनेक साहित्यिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी भी रहे।
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विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद" जिसका हिन्दी अनुवाद कथाकार-उपन्यासकार रूपसिंह चंदेल ने किया है और जो संवाद प्रकाशन, मेरठ से पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है, का धारावाहिक प्रकाशन ब्लाग पत्रिका "साहित्य सृजन" के फरवरी 2008 अंक से प्रारंभ होने जा रहा है। "साहित्य सृजन" का फरवरी अंक 28 फरवरी को जारी होगा। हिन्दी के पाठक अब http://www.sahityasrijan.blogspot.com/ पर 28 फरवरी से इस उपन्यास का धारावाहिक आनन्द ले सकेंगे।
  
इन विशिष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें देश विदेश के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें एक से अधिक साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार का पद्मश्री [२००४], तथा सरस्वती सम्मान [2006] प्रमुख हैं।
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==अमरकांत समेत 24 लेखकों को अकादमी पुरस्कार==   
  
==राजेश चेतन काव्य पुरस्कार==
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नई दिल्ली। हिंदी के वयोवृद्ध लेखक एवं स्वंतत्रता सेनानी अमरकांत, उर्दू के आलोचक वहाब अशरफी और मैथिली के लेखक प्रदीप बिहारी समेत 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को बुधवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
  
[[चित्र:000001.jpg|thumb|right| डा. रमाकान्त शर्मा पुरस्कार लेते हुए]]'''सांस्कृतिक मंच, भिवानी द्वारा युवा गीतकार डा. रमाकान्त शर्मा को ‘राजेश चेतन काव्य पुरस्कार’'''
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दरअसल अमरकांत को उनकी अनुपस्थिति में यह पुरस्कार प्रदान किया गया। वह अस्वस्थ होने के कारण समारोह में भाग लेने के लिए नहीं आ सके। बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने एक गरिमामय समारोह में इन लेखकों को वर्ष 2007 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।
  
भिवानी ८ अगस्त २००६, सांस्कृतिक मंच, भिवानी द्वारा भिवानी में जन्मे अंतर्राष्ट्रीय कवि श्री राजेश चेतन के जन्मदिन पर उनके नाम से एक पुरस्कार आरंभ किया गया। नेकीराम शर्मा सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में श्री महेन्द्र कुमार, उपायुक्त्त भिवानी मुख्य अतिथि के रुप मे उपस्थित थे व बी टी एम के महाप्रबंधक श्री राजेन्द्र कौशिक ने समारोह की अध्यक्षता की, साहित्य अकादमी हरियाणा के निर्देशक श्री राधेश्याम शर्मा के सान्निध्य व श्री राजेश चेतन की उपस्थिति में युवा गीतकार डा. रमाकान्त शर्मा को ‘राजेश चेतन काव्य पुरस्कार’ अर्पित किया गया।
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पुरस्कार में प्रत्येक लेखक को 50-50 हजार रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिह्न और शॉल भेंट किया गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए यह पुरस्कार दिया गया जो 1942 के भारत छोडो आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
  
पुरस्कार वितरण के बाद एक कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया जिसमें पूज्यसंत मुनि जयकुमार, श्री महेन्द्र शर्मा, श्री गजेन्द्र सोलंकी, डा. रश्मि बजाज, श्रीमती अनीता नाथ तथा अरुण मित्तल ‘अद्भुत’ ने काव्य पाठ किया। कवि सम्मेलन का संचालन प्रख्यात कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के महामंत्री श्री जगतनारायण ने किया।
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इस बार बिहार के दो लेखकों सर्वश्री वहाब अशरफी और प्रदीप बिहारी को अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उडिया लेखक दीपक मिश्र और तेलुगु लेखक गाडियाराम रामकृष्ण शर्मा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
  
समारोह में सर्वश्री बुद्धदेव आर्य, गिरधर, डा आर डी शर्मा, भारत भूषण जैन, सुरेंद्र जैन, सज्जन एडवोकेट  की विशिष्ट उपस्तिथि नें समारोह को गरिमा प्रदान की।
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शेष पुरस्कृत लेखक इस प्रकार है: हरिदत्त शर्मा संस्कृत, कुंदनमाली राजस्थानी, रतनलाल शांत कश्मीरी, राजेन्द्र शुक्ल गुजराती, मालती राव अंग्रेजी, वासुदेव निर्मल सिंधी, लक्ष्मण श्रीमल नेपाली, गो मा पवार मराठी, ज्ञान सिंह मगोच डोगरी, अनिल कुमार ब्रह्म बोडो, समरेन्द्र सेनगुप्त बांग्ला, पुरवी बरमुदै असमिया, कु. वीर भ्रदप्पा कन्नड, देवीदास रा. कदम कोंकणी, जसवंत दीद पंजाबी, खेरवाल सोरेन संथाली, नील पट्टयनाभन तमिल, ए. सेतुमाधवन सेतु मलयालम और बी एम माइस्नाम्बा मणिपुरी। समारोह की मुख्य अतिथि राज्यसभा की मनोनीत सदस्य एवं प्रख्यात संस्कृति कर्मी कपिला वात्स्यायन थी। समारोह की अध्यक्षता नारंग ने की।

17:35, 30 मई 2012 के समय का अवतरण

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पाँच सितारा होटल में नए मौसम के फूल

उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को जन्मे शायर मुनव्वर अली राना की शायरी की 16 और गद्य की 1 यानी अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाल ही में दिव्यांशु प्रकाशन. लखनऊ से उनकी शायरी की नई पुस्तक प्राकाशित हुई है – ‘नए मौसम के फूल’ । मुम्बई के पाँच सितारा होटल सहारा स्टार में शनिवार 21 मार्च को आयोजित एक भव्य समारोह में सहारा इंडिया परिवार के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर श्री ओ.पी.श्रीवास्तव ने इस पुस्तक का विमोचन किया । श्रीवास्तवजी ने इस अवसर पर साहित्य, सिनेमा, मीडिया और व्यवसाय जगत की जानी मानी हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस तरह स्लमडॉग मिलेनियर के जमाल के लिए ज़िंदगी ही सबसे बड़ी पाठशाला है, उसी तरह मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना भी ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है । श्रीवास्तवजी ने उनके कुछ शेर भी कोट किए-

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है

बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है

कार्यक्रम के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने मुनव्वर राना का परिचय कराते हुए कहा कि उनकी शायरी में रिश्तों की एक ऐसी सुगंध है जो हर उम्र और हर वर्ग के आदमी के दिलो दिमाग पर छा जाती है । पाण्डेयजी ने आगे कहा कि शायरी का पारम्परिक अर्थ है औरत से बातचीत । अधिकतर शायरों ने ‘औरत’ को सिर्फ़ महबूबा समझा । मगर मुनव्वर राना ने औरत को औरत समझा । औरत जो बहन, बेटी और माँ होने के साथ साथ शरीके-हयात भी है । उनकी शायरी में रिश्तों के ये सभी रंग एक साथ मिलकर ज़िंदगी का इंद्रधनुष बनाते हैं । कार्यक्रम के संयोजक एवं स्टार न्यूज के वरिष्ठ सम्पादक उपेन्द्र राय ने रानाजी का स्वागत करते हुए कहा कि वे हिंदुस्तान के ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर हैं जिसने ‘माँ’ की शख़्सियत को ऐसी बुलंदी दी है जो पूरी दुनिया में बेमिसाल है –

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई

मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

मंच पर लगे बैनर पर भी ‘माँ’ इस तरह मौजूद थी-

इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है

माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है

दरअसल पत्रकार उपेन्द्र राय ने अपनी जीवन संगिनी डॉ.रचना के जन्मदिन पर उनको 'शायरी की एक शाम' का नायाब तोहफा दिया था । उनकी तीन वर्षीय बेटी ऊर्जा अक्षरा ने जन्मदिन का केट काटकर 'माँ' लफ़्ज़ को सार्थकता प्रदान की । शायर मुनव्वर राना की रचनाधर्मिता और सरोकारों पर रोशनी डालते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने उन्हें काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया –

न मैं कंघी बनाता हूं , न मैं चोटी बनाता हूं

ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूं

मुनव्वर राना ने काव्यपाठ की शुरुआत माँ से ही की-

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता

मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है

अपने डेढ़ घंटे के काव्यपाठ में राना ने उस आदमी की भी ख़बर ली जो ज़िंदगी की दौड़ में सबसे पीछे है-

सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर

मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते

रानाजी के अनुरोध पर संचालक देवमणि पाण्डेय ने भी कुछ ग़ज़लें सुनाईं । कार्यक्रम के अंत में हास्यसम्राट राजू श्रीवास्तव और सुनीलपाल ने अपनी रोचक प्रस्तुतियों से माहौल को ठहाकों से सराबोर कर दिया ।


साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के सभागार में हाइकु दिवस समारोह

दुनिया में सबसे अधिक चर्चित एवं आकार की दृष्टि से सर्वाधिक छोटी मात्र १७ अक्षर की कविता 'हाइकु' पर केन्द्रित 'हाइकु दिवस` का आयोजन साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सभागार में ०४ दिसम्बर को किया गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर और उनके बाद अज्ञेय जी ने अपनी जापान यात्राओं से वापस आते समय जापानी हाइकु कविताओं से प्रभावित होकर उनके अनुवाद किए जिनके माध्यम से भारतीय हिन्दी पाठक 'हाइकु` के नाम से परिचित हुए। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर डॉ० सत्यभूषण वर्मा(०४-१२-१९३२ ....... १३-01-२००५) ने जापानी हाइकु कविताओं का सीधा हिन्दी में अनुवाद करके भारत में उनका प्रचार-प्रसार किया। इससे पूर्व हाइकु कविताओं के जो अनुवाद आ रहे थे वे अंगे्रजी के माध्यम से हिन्दी में आ रहे थे प्रो० वर्मा ने जापानी हाइकु से सीधा हिन्दी अनुवाद करके भारत मे उसका प्रचार-प्रसार किया। परिणामत: आज भारत में हिन्दी हाइकु कविता लोकप्रिय होती जा रही है। अब तक लगभग ४०० से अधिक हिन्दी हाइकु कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और निरन्तर प्रकाशित हो है। प्रो० सत्यभूषण वर्मा के जन्म दिन ४ दिसम्बर कैं हाइकु दिवस के रूप मे मनाने का प्रारम्भ हाइकु कविता की पत्रिका `हाइकु दर्पण' ने २००६ से गाजियाबाद से किया। हाइकु दर्पण के संपादक डॉ० जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल एवं डॉ० अंजली देवधर द्वारा हिन्दी हाइकु कविता की गुणवत्ता में सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे है। इसी श्रृंखला में यह आयोजन किया गया। हाइकु दिवस समारोह के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० प्रभाकर श्रोत्रिय ने दीप प्रज्ज्वलन कर समारोह का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि श्री विजय किशोर मानव (संपादक कादम्बिनी) ने कहा कि हाइकु कविता मन की अतल गहराईयों कैं प्रभावित कर सके ऐसा प्रयास करना चाहिए। विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेई ने कहा कि हाइकु मन की अनुभूति की कम शब्दों में व्यक्त करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपनी आकाशवाणी की गोष्ठियों में हाइकु पाठ के लिए भी हाइकुकारों कैं आमंत्रित किए जाने की योजना विषयक जानकारी दी तथा डोगंरी भाषा मे लिखी जा रही हाइकु कविताओं की चर्चा की। विशिष्ट अतिथि डॉ० अंजली देवधर ने अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में लिखे जाने वाली हाइकु कविताओं की चर्चा करते हुए दुनिया के तमाम देशों में आयोजित हाइकु संगोष्ठियों में भारतीय हाइकु व हिन्दी हाइकु की उपस्थिति व मान्यता विषयक जानकारी देते हुए बताया कि बंगलोर में आयोजित अंग्रेजी भाषा के विश्व हाइकु सम्मेलन में पहली बार हाइकु दर्पण के संपादक को हिन्दी में हाइकु की स्थिति पर शोधपत्र प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शब्द जैसे-जैसे कम होते जाते है कविता सघन होकर और प्रभावशाली होती जाती है। हाइकु में कम शब्द होते है वहाँ किसी निरर्थक शब्द या अक्षर की गुंजाइश नहीं है इसीलिए एक अच्छा हाइकु बहुत प्रभावशाली होता है। हाइकु दर्पण पत्रिका के संपादक एवं हाइकु दिवस समारोह के संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने विश्व स्तर पर हिन्दी हाइकु की स्थिति की जानकारी दी। इण्टरनेट पर हिन्दी हाइकु के विषय में बताते हुए डा० व्योम ने कहा कि हिन्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइट- अनुभूति एवं अभिव्यक्ति की संपादक पूर्णिमा वर्मन (यू.ए.ई.) ने हाइकु माह जैसे आयोजन किया तथा हाइकु की कार्यशाला आयोजित की और प्रतिदिन एक चुनिन्दा हाइकु चित्र सहित वेबसाइट पर प्रकाशित किया जिन्हें हजारों वेब पाठकों ने प्रतिदिन पढ़ा और सराहा। हिन्दी की अनेक वेबसाइट्स हैं जिन पर हाइकु कविताएँ निरंतर प्रकाशित की जा रही है? कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रसिद्ध हाइकुकार एवं साहित्यकार कमलेशभट्ट कमल ने हाइकु लेखन पर समग्र दृष्टि डालते हुए बताया कि आज के व्यस्ततम समय में मन के अनुभावों को व्यक्त करने के लिए अधिक समय किसी के पास नहीं है ऐसे में हाइकु कविता सर्वाधिक उपयोगी तथा समसामयिक है। प्रो० वर्मा के साथ हमेशा से जुड़े रहे कमलेश भट्ट कमल ने हिन्दी हाइकु यात्रा विषयक विस्तृत जानकारी दी तथा हाइकु १९८९, हाइकु १९९९ जैसे ऐतिहासिक संकलनों के संपादन के बाद प्रस्तावित हाइकु २००९ के संपादन विषयक जानकारी देते हुए हाइकुकारों से हाइकु भेजने हेतु कहा। ओमप्रकाश चतुर्वेदी पराग ने हाइकु कविता को ५-७-५ अक्षरक्रम में मात्र १७ अक्षर तक सीमित रखने विषयक अनुशासन पर प्रश्न उठाया। इस अवसर पर प्रो० सत्यभूण वर्मा की जीवन संगिनी श्रीमती सुरक्षा वर्मा की गरिमामय उपस्थित समारोह का आकर्षण रही। डा० अंजली देवधर को विभिन्न देशों व भाषाओं में हिन्दी हाइकु का प्रचार-प्रसार करने तथा श्रीमती सुरक्षा वर्मा को प्रो० सत्यभूषण वर्मा द्वारा छोडी गई हाइकु यात्रा को निरन्तर आगे बढाने की दिशा में सतत सहयोग देने के लिए समारोह के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय तथा मुख्यअतिथि कादम्बिनी के संपादक विजय किशोर मानव द्वारा शाल उढाकर सम्मानित किया गया। समारोह में हाइकुकारों ने हाइकु कविताओं का पाठ कर जनसमूह को प्रभावित किया। हाइकु पाठ करने वालों में सर्वश्री- डॉ० कुअँर बेचैन, डॉ० सरिता शर्मा, पवन जैन(लखनऊ), अरविन्द कुमार, लक्ष्मीशंकर वाजपेई, ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग, कमलेश भट्ट कमल, डॉ० जगदीश व्योम, सुजाता शिवेन(उड़िया कवयित्री), ममता किरण वाजपेई, प्रदीप गर्ग आदि प्रमुख थे। हाइकु दिवस समारोह में सुप्रसिद्ध साहित्यकार से.रा.यात्री, सुप्रसिद्ध गजलकार ज्ञान प्रकाश विवेक, इंडिया न्यूज पत्रिका के सहायक संपादक अशोक मिश्र, बी. एल. गौड़, साहित्यकार डॉ० अरुण प्रकाश ढौंढ़ियाल, हरेराम समीप, अमरनाथ अमर, डॉ० तारा गुप्ता, श्रीमती ज्योति श्रोत्रिय, ब्रजमोहन मुदगल, एस.एस.मावई, श्रीमती मावई, श्रीमती अलका यादव, शिवशंकर सिंह, सुधीर, प्रत्यूष, ममता किरन, मृत्युंजय साधक, नीरजा चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संयोजक डॉ० जगदीश व्योम ने किया।

अमेरिका में हिन्दी महोत्सव की धूम

न्यू जर्सी (यू. एस. ए.)

हिन्दी यू.एस.ए. द्वारा अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के सोमरसेट नगर में फ्रेंक्लिन हाई स्कूल के सभागार में दो दिवसीय सप्तम हिन्दी महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। आयोजन के पहले दिन लगभग 650 बालकों ने हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। 1200 क्षमता का फ्रेंक्लिन हाई स्कूल का सभागार जन समुदाय से भरा हुआ था। नृत्य, संगीत, अंताक्षरी, कविता पाठ, वाक्य में प्रयोग, हनुमान चालीसा तथा रामायण चोपाई गायन इस प्रकार की अन्य-अन्य प्रतियोगिताएँ देखकर दर्शक दाँतों तले उंगली दबाने को विवश थे। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के अलावा अमेरिका के अन्य प्रांतों तथा कनाडा में भी हिन्दी के लगभग 25 विद्यालय चला रही है। इन विद्यालयों में लगभग 1200 बालक – बालिकाएँ साप्ताहिक कक्षा में आकर हिन्दी सीखते हैं और वर्ष में एक बार आयोजित हिन्दी महोत्सव में आकर अपनी प्रतिभा का मंचन करते हैं। इन कक्षाओं की एक और विशेषता का उल्लेख करना ज़रूरी है कि इन कक्षाओं में दक्षिण भारतीय राज्यों के बालक-बालिका भी उत्साह से भाग लेते हैं। अभी तक समपन्न 6 हिन्दी महोत्सवों में भारत से बाबा रामदेव, श्रीमती किरण बेदी, श्री वेद प्रताप वैदिक, साध्वी ऋतम्भरा, श्री नितिश भारद्वाज और लाफ्टर चैम्पियन राजू श्रीवस्तव अतिथि के रूप में आ चुके हैं। इसी प्रकार भारत के हिन्दी लोकप्रिय कवि श्री अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबाद, माणिक वर्मा, ओम व्यास, गजेन्द्र सोलंकी काव्य पाठ कर चुके हैं।

लगभग 7 वर्ष पूर्व एक युवा दमपति देवेन्द्र- रचिता सिंह द्वारा आरंभ किया गया यह हिन्दी अभियान एक आन्दोलन का रूप लेता जा रहा है। हिन्दी महोत्सव में इस जन आन्दोलन का भव्य रूप का दर्शन किया जा सकता है। हिन्दी साहित्य के लगभग 15 स्टॉल लगाए गए थे। भारतीय व्यंजन उपलब्ध थे तथा दर्शक भी भारतीय वेशभूषा में समारोह में उपस्थित हुए थे। कुल मिलाकर एक रंग बिरंगे मेले का रूप इस हिन्दी के उत्सव ने ले लिया था। जितने लोग सभागार में उपस्थित थे उतने ही लोग बाहर मेले का आनन्द ले रहे थे।


मेले का दूसरा दिन विजेता बालकों को प्रवासी उद्योगपति श्री ब्रह्मरत्तन अग्रवाल और पूर्व एम्बेसेडर एट-लार्ज श्री भीष्म अग्निहोत्री द्वारा पुरस्कार वितरण से आरंभ हुआ। इस अनुष्ठान में लगभग 120 से अधिक हिन्दी के अध्यापक-अध्यापिकाएँ जुड़े हैं। इन सब का सम्मान किया गया। प्रसन्नता की बात है कि इन में से बहुत से अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारतीय राज्यों से भी आते हैं। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था की एक और विशेषता का उल्लेख करना जरूरी है कि इस संस्था में कोई पद नहीं है, सभी स्वयंसेवक के रूप में ही कार्य करते हैं। लगभग 50 स्वयंसेवक दिन-रात मेहनत कर के इस आयोजन को सफल करते हैं। स्वयंसेवकों की मेहनत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सम्मान हेतु उनका नाम मंच से पुकारा गया, तो व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण, कोई भी स्वयंसेवक मंच पर उपस्थित ना हो पाया। इस अवसर पर श्री भूपेन्द्र मौर्य द्वारा सम्पादित “कर्मभूमि” नामक त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया। हिन्दी यू. एस. ए. की यह ई-पत्रिका हिन्दी जगत में लोकप्रिय होती जा रही है।


इसके बाद आरंभ हुआ भारत से पधारे कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य, राजेश चेतन, और बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा कवि सम्मेलन। राजेश चेतन के संचालन में लगभग 4 घण्टे तक यह कवि सम्मेलन चला। आदित्य जी की हास्य कविताओं को सुनकर सभागार ठहाकों से गूंज रहा था। हास्य के छन्द, बालक और परीक्षा तथा नोट देवता की आरती सुनाकर, आदित्य जी ने जनता को लोट-पोट कर दिया। हास्य व्यंग के साथ, ओज कविता के तेवर रखने वाले राजेश चेतन ने अपने लगभग 1 घंटे के काव्य पाठ में ‘राम बना रोम’ तथा ‘भारत और आतंकवाद’ जैसी कविताएँ सुनाकर, जनता की खूब वाह-वाह लूटी। विश्व प्रसिद्ध कवि कलाकर बाबा सत्यनारायण मौर्य ने हिन्दी महोत्सव की गरिमा अनुसार सबसे पहले राजेश चेतन की वनवासी राम कविता के साथ भगवान राम का चित्र बनाया। विश्व में सर्वाधिक तेज गति से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध बाबा ने अपनी कविताओं के साथ-साथ चित्रकारी की भी गहरी छाप जनता पर छोड़ी। समस्त जनता ने खड़े होकर, बाबा मौर्य का आरती में सहयोग किया तथा हिन्दी को एक जन-आन्दोलन बनाने के संकल्प के साथ सातवां हिन्दी महोत्सव समपन्न हुआ। इस आयोजन में प्रूडेंशल बीमा कम्पनी के श्री जय पुरोहित, महावीर चुड़ासमा, और श्री सतीष करनधिकर का आर्थिक सहयोग रहा, उनके प्रति भी संस्था आभार प्रकट करती है।

उषा राजे सक्सेना के नए कहानी संग्रह का लोकार्पण

चर्चित कहानीकार उषा राजे सक्सेना के कहानी संग्रह 'वह रात और अन्य कहानियाँ' का लोकार्पण' लंदन स्थित नेहरू केंद्र में दिनांक शुक्रवार 30 मई 2008 को संपन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता, अचला शर्मा लेखिका, निदेशक बी.बी.सी वर्ल्ड सर्विस हिंदी लंदन ने किया। नेहरू केंद्र की निदेशक सुश्री मोनिका मोहता,आलोचक-समीक्षक गज़लकार श्री प्राण शर्मा, लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन, तथा भारत से आए पुस्तक के प्रकाशक श्री महेश भारद्वाज (सामायिक प्रकाशन) विशिष्ट अतिथि थे।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए नेहरू केंद्र की निदेशक, मोनिका मोहता ने सभी आगंतुक साहित्यकारों और श्रोताओ का स्वागत करते हुए बताया कि उषा राजे सक्सेना ब्रिटेन की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं उनके कहानी संग्रह 'वह रात ओर अन्य कहानियाँ' पुस्तक का लोकार्पण समाहरोह आयोजित कर नेहरू सेन्टर गौरवान्वित है। कार्यक्रम की अध्यक्षा अचला शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि उषा राजे उन तमाम विषयों पर क़लम चलाने का माद्दा रखती हैं जिन पर आमतौर पर अंग्रेज़ी के लेखक अपना अधिकार मानते है। ऐसे पात्रों के मन को समझना और उनकी कहानी लिखना जोखिम का काम है, उषा राजे यह जोखिम बखूबी उठाती हैं। अचला शर्मा ने आगे कहा कि उषा राजे की एक विशेषता यह कि वह चुपचाप अपने लेखन कार्य में लगी रहती हैं ये कहनियाँ इस बात का सुबूत हैं कि उषा अपने परिवेश के प्रति सजग हैं. क्योंकि ये कहानियाँ कई खबरों की सुर्खियों की याद दिलाती हैं।

मुख्य वक्ता प्राण शर्मा ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा, उषा राजे की कहानियाँ' उनके ब्रिटेन के साक्षात अनुभवों को अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ हिंदी साहित्य में तो शीर्ष स्थान बनाती ही हैं साथ अँग्रेज़ी कहानियों के समानांतर भी हैं। 'वह रात और अन्य कहानियाँ' में दुनिया के अनेक देशों के आप्रवासी पात्र अपनी-अपनी व्यक्तिगत एवं स्थानीय समस्याओं और मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ हमारे समक्ष आते हैं।

लेखिका-अनुवादक सुश्री युट्टा आस्टिन ने उषा राजे की कहानियों को गहन अनुभूतियोंवाली वाली कहानियाँ बताया। उन्होंने कहा ये कहानियाँ मात्र भारतीय या पाश्चात्य ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों से आए प्रवासियों की कहानियाँ है। युट्टा ने बताया कि उन्होंने इन कहानियों का अंग्रेजी अनुबाद कर इन्हें विश्वव्यापी बनाने का प्रयास किया है।

प्रकाशक महेश भारद्वाज ने 'वह रात और अन्य कहानियाँ' को वैश्विक, यथार्थ पर आधारित पठनीय कहानियाँ बताया। उषा राजे ने अपने वक्तव्य में कहा वे अपनी लेखनी के माध्यम से मातृ भाषा के उन पाठकों तक पहुँचना चाहती हैं जिनकी पहुँच अँग्रेज़ी भाषा साहित्य तक नहीं है परंतु वे पाश्चात्य जीवन-पद्धति, जीवन-मूल्य, कार्य-संस्कृति, मानसिकता और प्रवासी जीवन आदि का फर्स्टहैंड पड़ताल चाहते हैं।

कार्यक्रम का संचालन राकेश दुबे, अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) भारतीय उच्चायोग लंदन ने किया। कहानी-पाठ किशोरी प्रज्ञा 'सुरभि' सक्सेना ने बड़े ही प्रभावशाली और सरस ढंग से किया। नेहरूकेंद्र लंदन के तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के लगभग सभी गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे और सभागार श्रोताओं और अतिथियों से भरा हुआ था।

परिवेश सम्मान - 2007

साहित्यिक पत्रिका परिवेश द्वारा प्रतिवर्ष किसी रचनाकार को दिया जाने वाला चौदहवाँ परिवेश सम्मान वर्ष 2007 के लिए कवि-आलोचक शैलेंद्र चौहान को देने का निर्णय लिया गया है। परिवेश सम्मान की घोषणा करते हुए परिवेश के सम्पादक मूलचंद गौतम एवं महेश राही ने कहा कि हिन्दी में तमाम तरह के पुरस्कारों एवं सम्मानों के बीच इस सम्मान का अपना वैशिष्टय है। परिवेश के 53वें अंक में शैलेंद्र चौहान के साहित्यिक अवदान पर विशेष सामग्री केद्रिंत की जायेगी। 1957 में मध्यप्रदेश के खरगौन में जन्मे श्री शैलेंद्र चौहान को कविता विरासत के बजाय आत्मान्वेषण और आत्मभिव्यक्ति के संघर्ष के दौरान मिली है। निरन्तर सजग होते आत्मबोध ने उनकी रचनाशीलता को प्रखरता और सोद्देश्यता से संपन्न किया है। इसी कारण कविता उनके लिए संपूर्ण सामाजिकता और दायित्व की तलाश है। विचार, विवेक और बोध उनकी कविता के अतिरिक्त गुण हैं। जब कविता और कला आधुनिकता की होड़ में निरन्तर अमूर्त होती जा रही हो, ऐसे में शैलेंद्र चौहान समाज के हाशिए पर पड़े लोगों के दु:ख तकलीफों को, उनके चेहरों पर पढ़ने की कोशिश करते हैं। शैलेन्द्र चौहान को दिया जाने वाला 2007 का परिवेश सम्मान इसी अनुभव और सजग मानवीय प्रतिबध्दता का सम्मान है।

वर्ष 2007 का 'केदार सम्मान' अनामिका को

'केदार शोध पीठ न्यास' बान्दा द्वारा सन् १९९६ से प्रति वर्ष प्रतिष्ठित प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में दिए जाने वाले साहित्यिक 'केदार-सम्मान' की घोषणा कर दी गई है। वर्ष २००७ का केदार सम्मान कवयित्री सुश्री अनामिका को उनके काव्य-संग्रह 'खुरदरी हथेलियाँ ' के लिए प्रदान किए जाने का निर्णय किया गया है। यह सम्मान प्रतिवर्ष ऐसी प्रतिभाओं को दिया जाता है जिन्होंने केदार की काव्यधारा को आगे बढ़ाने में अपनी रचनाशीलता द्वारा कोई अवदान दिया हो।

फिर खुलेगा 300 साल पुराना पुस्तकालय

औरंगाबाद। औरंगाबाद में ऐतिहासिक वाटर मिल में 40 साल के अंतराल के बाद 300 साल पुराना प्राचीन पुस्तकालय फिर से खोला जा रहा है। इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों और दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा संग्रह है जिसमें मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर द्वारा लिखी गई पवित्र कुरान भी शामिल है। यह पुस्तकालय 18वीं शताब्दी का है जो एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है। महाराष्ट्र वक़्फ़ बोर्ड के प्रयासों से यह फिर से खुलने जा रहा है।

हिन्दी में तैयार होंगे 25 विषयों पर विश्वकोष

देश का इकलौता हिन्दी विश्वविद्यालय 25 विषयों के विश्वकोष हिन्दी में तैयार करेगा। इसमें से एक विषय तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोष तैयार किया जा चुका है और संपादन पूर्ण होते ही इसे जारी कर दिया जाएगा। विश्वविद्यालय प्रत्येक वर्ष कम से कम तीन विश्वकोष तैयार करेगा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन के अनुसार सभी 25 विश्वकोष हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना के अंतर्गत तैयार होंगे। जिन्हे बाद में एकीकृत किया जाएगा। इनमें तुलनात्मक साहित्य विश्वकोष सहित विश्वभाषा हिन्दी विश्वकोष, हिन्दी अनुवाद, जीव विज्ञान, कृषि, अंतरिक्ष, प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, विधि एवं मानवाधिकार, भाषा विज्ञान, संचार-माध्यम, नाट्शास्त्र, ललितकला आदि पर विश्वकोष होंगे। इस परियोजना को राष्ट्रीय विश्वकोष संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। परियोजना से विभिन्न खानानुशासनों में अनेकानेक विषयों पर अधिकतम प्रामाणिक सूचनाओं का विश्वकोष तैयार किया जा सकेगा। गोपीनाथन के अनुसार हिन्दी सूचना विश्वकोष परियोजना विश्वकोष नाम से एक शोध-पत्र का भी प्रकाशन करेगा। इसके अंतर्गत अंक-विशेष के लिए ख्यातनाम विद्वानों से शोध-पत्र लिए जाएंगे। विश्वकोष परियोजना के अलावा विश्व हिन्दी पोर्टल और विश्व हिन्दी संग्रहालय व अभिलेखागार की योजना भी लागू की जानी है। विश्व हिन्दी पोर्टल पर हिन्दी से जुड़ी विश्वभर की गतिविधियां शामिल की जाएगी।

विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद"

विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद" जिसका हिन्दी अनुवाद कथाकार-उपन्यासकार रूपसिंह चंदेल ने किया है और जो संवाद प्रकाशन, मेरठ से पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है, का धारावाहिक प्रकाशन ब्लाग पत्रिका "साहित्य सृजन" के फरवरी 2008 अंक से प्रारंभ होने जा रहा है। "साहित्य सृजन" का फरवरी अंक 28 फरवरी को जारी होगा। हिन्दी के पाठक अब http://www.sahityasrijan.blogspot.com/ पर 28 फरवरी से इस उपन्यास का धारावाहिक आनन्द ले सकेंगे।

अमरकांत समेत 24 लेखकों को अकादमी पुरस्कार

नई दिल्ली। हिंदी के वयोवृद्ध लेखक एवं स्वंतत्रता सेनानी अमरकांत, उर्दू के आलोचक वहाब अशरफी और मैथिली के लेखक प्रदीप बिहारी समेत 24 भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को बुधवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।

दरअसल अमरकांत को उनकी अनुपस्थिति में यह पुरस्कार प्रदान किया गया। वह अस्वस्थ होने के कारण समारोह में भाग लेने के लिए नहीं आ सके। बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय ने एक गरिमामय समारोह में इन लेखकों को वर्ष 2007 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।

पुरस्कार में प्रत्येक लेखक को 50-50 हजार रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक प्रतीक चिह्न और शॉल भेंट किया गया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में जन्में अमरकांत को उनके चर्चित उपन्यास इन्हीं हथियारों से के लिए यह पुरस्कार दिया गया जो 1942 के भारत छोडो आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित है।

इस बार बिहार के दो लेखकों सर्वश्री वहाब अशरफी और प्रदीप बिहारी को अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उडिया लेखक दीपक मिश्र और तेलुगु लेखक गाडियाराम रामकृष्ण शर्मा को मरणोपरांत यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

शेष पुरस्कृत लेखक इस प्रकार है: हरिदत्त शर्मा संस्कृत, कुंदनमाली राजस्थानी, रतनलाल शांत कश्मीरी, राजेन्द्र शुक्ल गुजराती, मालती राव अंग्रेजी, वासुदेव निर्मल सिंधी, लक्ष्मण श्रीमल नेपाली, गो मा पवार मराठी, ज्ञान सिंह मगोच डोगरी, अनिल कुमार ब्रह्म बोडो, समरेन्द्र सेनगुप्त बांग्ला, पुरवी बरमुदै असमिया, कु. वीर भ्रदप्पा कन्नड, देवीदास रा. कदम कोंकणी, जसवंत दीद पंजाबी, खेरवाल सोरेन संथाली, नील पट्टयनाभन तमिल, ए. सेतुमाधवन सेतु मलयालम और बी एम माइस्नाम्बा मणिपुरी। समारोह की मुख्य अतिथि राज्यसभा की मनोनीत सदस्य एवं प्रख्यात संस्कृति कर्मी कपिला वात्स्यायन थी। समारोह की अध्यक्षता नारंग ने की।