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"परदे में क़ैद औरत की गुहार / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर

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(भारतेन्दु जी द्वारा लिखित यह गीत उनकी प्रगतिशील दृष्टि का अनुपम उदाहरण है। लोकशैली में गाया जाकर यह आज भी अपनी लोकप्रियता सिद्ध कर सकता है।)
 
(भारतेन्दु जी द्वारा लिखित यह गीत उनकी प्रगतिशील दृष्टि का अनुपम उदाहरण है। लोकशैली में गाया जाकर यह आज भी अपनी लोकप्रियता सिद्ध कर सकता है।)

08:02, 7 जून 2012 के समय का अवतरण

(भारतेन्दु जी द्वारा लिखित यह गीत उनकी प्रगतिशील दृष्टि का अनुपम उदाहरण है। लोकशैली में गाया जाकर यह आज भी अपनी लोकप्रियता सिद्ध कर सकता है।)
लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो।
सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥
लहँगा दुपट्टा नीको न लागै।
मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।
वै गोरिन हम रंग सँवलिया।
नदिया प बँगला छवाय नाहीं देत्यो॥
सरसों का उबटन हम ना लगइबे।
साबुन से देहियाँ मलाय नाहीं देत्यो॥
डोली मियाना प कब लग डोलौं।
घोड़वा प काठी कसाय नाहीं देत्यो॥
कब लग बैठीं काढ़े घुँघटवा।
मेला तमासा जाये नाहीं देत्यो॥
लीक पुरानी कब लग पीटों।
नई रीत-रसम चलाय नाहीं देत्यो॥
गोबर से ना लीपब-पोतब।
चूना से भितिया पोताय नाहीं देत्यों।
खुसलिया छदमी ननकू हन काँ।
विलायत काँ काहे पठाय नाहीं देत्यो॥
धन दौलत के कारन बलमा।
समुंदर में बजरा छोड़ाय नाहीं देत्यो॥
बहुत दिनाँ लग खटिया तोड़िन।
हिंदुन काँ काहे जगाय नाहीं देत्यो॥
दरस बिना जिय तरसत हमरा।
कैसर का काहे देखाय नाहीं देत्यो॥
‘हिज्रप्रिया’ तोरे पैयाँ परत है।
‘पंचा’ में एहका छपाय नाहीं देत्यो॥
(भारतेन्दु जी की रचना ‘मुशायरा’ से)