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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर

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* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 1]]
 
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* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 2]]
छेव देव 
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* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 3]]
मोह-तम-तरणि, हर, रूद्र, शंकर, शरण, हरण-मम शोक, लोकाभिरामं।
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 4]]
बाल-शशि-भाल, सुविशाल लोचन-कमल, काम-सतकोटि-लावण्य-धामं।ं
+
* [[विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 5]]
कंबं-कुंदंेदु-कर्पूा -विग्रह रूचिर, तरूण-रवि-कोटि तनु तेज भ्राजै।
+
भस्म सर्वांग अर्धांग शैलत्मजा, व्याल-नृकपाल-माला विराजै।।
+
मौलिसंकुल जटा-मुकुट विद्युच्छटा, तटिनि-वर-वारि हरि -चरण-पूतं।
+
श्रवण कुंडल गरल कंठ, करूणाकंद, सच्चिदानंद वंदेऽवधूतं।।
+
शूल-शायक, पिनाकासि-कर, शत्रु-वन-दहन इव धूमघ्वज, वृषभ-यानं।
+
व्याघ्र-गज-चर्म परिधान, विज्ञान-घन, सिद्ध-सुर-मुनि-मनुज-सेव्यमानं।।
+
तांडवित-नृत्यपर,डमरू डिंडिम प्रवर, अशुभ इव भाति कल्याणराशी।
+
महाकल्पांत ब्रह्मांड-मंडल-दवन, भवन कैलास, आसीन काशी।।
+
तज्ञ, सर्वज्ञ, यज्ञेश, अच्युत, विभो, विश्व भवदंशसंभव पुरारी।
+
ब्रह्मेंन्द्र, चंद्रार्क, वरूणाग्नि, वसु मरूत,यम, अर्चि भवदंघ्रि सर्वाधिकारी।।
+
अकल,निरूपाधि, निर्गुण , निरंजन, ब्रह्म, कर्म-पथमेकमज निर्विकारं।
+
अखिलविग्रह, उग्ररूप, शिव, भूपसुर, सर्वगत, शर्व , सर्वोपकारं।।
+
ज्ञान-वैराग्य, धन-धर्म, कैवल्य-सुख, सुभग सौभाग्य शिव! सानुकूलं।
+
तदपि नरमूढ आरूढ संसार-पथ, भृमत भव, विमुख तव पादमूलं।।
+
नष्टमति, दुष्ट अति , कष्ट-रत, खेद-गत, दास तुलसी शंभु-शरण आया।
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देहि कामारि! श्रीराम-पद-पंकजे भक्ति अनवरत गत-भेद-माया।।
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(12)
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सदा -
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शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।
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काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।
+
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
+
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।
+
ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।
+
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।
+
लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
+
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।
+
तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
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प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।
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(13)
+
 
+
स्ेावहु सिव-चरन-सरोज-रेनु।
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कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।
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कर्पूर-गौर, करूना-उदार।
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संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।
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सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार।
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निर्गुन, गुननायक, निराकार।।
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त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस।
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अहँकार-निहार-उदित दिनेस।।
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बर बाल निसाकर मौलि भ्राज।
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त्रैलोक-सोकहर प्रमभराज।।
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जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल।
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तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।
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उपकारी कोऽपर हर-समान।
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सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।
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बहु कल्प उपायन करि अनेक।
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बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।
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बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।
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कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
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(जारी)
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(15)
+
 
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दुसह दोषं-दुचा,दति, करू देवि दाया।
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विश्व- मूलाऽसि, जन- सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि महामूलमाया।1।
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तडित गर्भांग सर्वंाग सुन्दर लसत, दिव्य पट भूषण विराजैं।
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बालमृग-मंजु खंजन- विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
+
रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि,रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
+
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
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चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड -मद- भंग कर अंग तोरे।
+
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
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निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
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देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
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(16)
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छीन, जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
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भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका।
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मंगल-मुद-सिद्वि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
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ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमालिका।।
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वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल -धनुषबाण,
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धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका।
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पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
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भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।।
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जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
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समस्त-लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका।
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रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,
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देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।
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(17)
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जय जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,
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नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।
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बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
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त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1।
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बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
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भँवर बर, बिभंगतर तरंग-मालिका।
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पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,
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भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।2।
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थ्नज तटबासी बिहंग, जल-थल-चर पसु-पतंग,
+
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
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तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुवंस-बीर,
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बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।
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(जारी)
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(21)
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ज्मुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न।
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त्यों त्यों सुकृत-सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न।1।
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ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न
+
तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न।2।
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(22)
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स्ेाइअ सहित सनेेह देह भरि,कामधेनु कलि कासी।
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समनि सोक संताप पाप रूज, सकल-सुमंगल-रासी।1।
+
मरजादा चहुँ ओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी।
+
तीरथ सब सुभ अंग रोम सिवलिंग अमित अविनासी।2।
+
अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
+
गलकंबल बरूना बिभा िजनु, लूम लसति, सरिताऽसि।3।
+
दंड पानि भैरव बिषान,तलरूचि-खलगन-भयदा-सी।
+
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी।4।
+
मनिकर्निका बदन-ससि सुंदर, सुसरि-सुख सुखमा-सी।
+
स्वारथ परमारथ परिपूरन,पंचकोसि महिमा-सी।5।
+
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित7 लालति नित गिरजा-सी।
+
सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी।
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पंचााच्छरी प्रान7 मुद माधव7 गब्य सुपंचनदा-सी।
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ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी।7।
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चारितु चरिति करम कुकरम करि, मरत जीवगन घासी।
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लहत परम पद प्य पावन, जेहि चहत प्रपंच- उदासी।8।
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कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला -सी।
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तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चहै सुपासी।9।
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(23)
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सब सोच-बिमोचन चित्रकूट। कलिहरन, करन कल्यान बूट।1।
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सुचि अवनि सुहावनि आलबाल। कानन बिचित्र, बारी बिसाल।2।
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मंदाकिनि-मालिनि सदा सींच। बर बारि, बिषम नर-नारि नीच।3।
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साखा सुसृंग, भूरूह -सुपात। निरझर मधुबरद्व मृदु मलय बात।4।
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सुक,पिक, मधुकर, मुनिबर बिहारू। साधन प्रसून फल चारि चारू।5।
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भव-घोरघाम-हर सुखद छाँह। थप्यो थिर प्रभाव जानकी-नाह।6।
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साधक-सुपथिक बड़े भाग पाइ। पावत अनेक अभिमत अघाइ।7।
+
रस एक, रहित-गुन-करम-काल। सिय राम लखन पालक कृपाल।8।
+
तुलसी जो  राम पद चाहिय प्रेम। सेइय गिरि करि निरूपाधि नेम।9।
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(24)
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स्अब चित चेति चित्रकूटहि चलु।
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कोपित कलि, लोपित मंगल मगु, बिलसत बढ़त मोह माया-मलु।।
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भूमि बिलोकु राम-पद-अंकित, बन बिलोकु रघुबर - बिहारथलु।।
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सैल-सृंग भवभंग -हेतु लखु, दलन कपट -पाखंड-दंभ-दलु। ।
+
जहँ जनमे जग-जनक जगतपनि, बिधि-हरि-हर परिहरि प्रपंच छलु।।
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सकृत प्रबेस करत जेहि आस्त्रम, बिगत-बिषाद भये परथ नलु।।
+
न करू बिलंब बिचारू चारूमति, बरष पाछिले सम अगिले पलु।
+
पुत्र सेा जाइ जपहि, जो जपि भे, अजर अमर हर अचइ हलाहलु।।
+
रामनाम-जप जाग करत नित, मज्जत पय पावन पीवत जलु।
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करिहैं राम भावतैा मनकौ, सुख-साधन, अनयास महाफलु।ं
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कामदमनि कामता, कलपतरू से जुग-जुग जागत जगतीतलु।
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तुलसी तोहि बिसेषि बूझिये, एक प्रतिति, प्रीति एकै बलु।।
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07:25, 17 जून 2012 के समय का अवतरण