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"मुँह तका ही करे है जिस-तिस का / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
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शाम ही से बुझा-सा रहता है | शाम ही से बुझा-सा रहता है | ||
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आँख बे-इख़्तियार भर आई | आँख बे-इख़्तियार भर आई |
10:48, 17 जून 2012 के समय का अवतरण
मुँह तका ही करे है जिस-तिस का
हैरती है ये आईना किस का
जाने क्या गुल खिलाएगी गुल-रुत
ज़र्द चेह्रा है डर से नर्गिस का
शाम ही से बुझा-सा रहता है
दिल हो गोया चराग़ मुफ़लिस का
आँख बे-इख़्तियार भर आई
हिज्र सीने में जब तेरा सिसका
थे बुरे मुगाबचो के तेवर लेक
शैख़ मयखाने से भला खिसका
फ़ैज़ ये अब्र-ए-चश्म-ए-तर से उठा
आज दामन वसीअ है इस का
ताब किस को जो हाल-ऐ-'मीर' सुने
हाल ही और कुछ है मजलिस का