भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक अनकही बात / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना कुँअर }} आज़ एक वर्ष पूरा हो गया मगर मेरा ख्वाब अ...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=भावना कुँअर
 
|रचनाकार=भावना कुँअर
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
आज़ एक वर्ष पूरा हो गया
+
<poem>
 
+
आज एक वर्ष पूरा हो गया
मगर मेरा ख्वाब
+
मगर मेरा ख़्वाब
 
+
 
अभी अधूरा है,
 
अभी अधूरा है,
 
 
अभी तो मुझे पाना है
 
अभी तो मुझे पाना है
 
+
सूरज-सा तेज
सूरज़ सा तेज़
+
और चाँद-सी शीतलता,
 
+
और चाँद सी शीतलता,
+
 
+
 
अभी तो मुझे पानी है
 
अभी तो मुझे पानी है
 
+
फूलों-सी कोमलता
फूलों सी कोमलता
+
धरती-सी सहनशीलता,
 
+
धरती सी सहनशीलता,
+
 
+
 
अभी तो मुझे चुराने हैं  
 
अभी तो मुझे चुराने हैं  
 
 
कुछ रंग इन  
 
कुछ रंग इन  
 
 
रंगबिरंगी तितलियों से,
 
रंगबिरंगी तितलियों से,
 
 
अभी तो मुझे लेना है
 
अभी तो मुझे लेना है
 
+
थोड़ा-सा विस्तार  
थोड़ा सा विस्तार  
+
 
+
 
इस नीले गगन से,
 
इस नीले गगन से,
 
 
अभी तो मुझे लानी है  
 
अभी तो मुझे लानी है  
 
+
थोड़ी-सी लाली इस
थोड़ी सी लाली इस
+
 
+
 
ढलती हुई शाम से,
 
ढलती हुई शाम से,
 
 
अभी तो मुझे  
 
अभी तो मुझे  
 
 
चुरानी है
 
चुरानी है
 
+
थोड़ी-सी चमक  
थोड़ी सी चमक  
+
 
+
 
इन चमचमाते तारों से,
 
इन चमचमाते तारों से,
 
 
अभी तो मुझे लेनी है  
 
अभी तो मुझे लेनी है  
 
+
थोड़ी-सी हरियाली
थोड़ी सी हरियाली
+
 
+
 
इन लहलहाते खलियानों से,
 
इन लहलहाते खलियानों से,
 
 
अभी तो मुझे पानी है  
 
अभी तो मुझे पानी है  
 
+
नदी-सी चंचलता और
नदी सी चंचलता और
+
पहाड़-सी स्थिरता
 
+
हाँ, तभी तो होगा
पहाड़ सी स्थिरता
+
 
+
हाँ तभी तो होगा
+
 
+
 
ये ब्लॉग पूरा
 
ये ब्लॉग पूरा
 
 
इन रंगों से  
 
इन रंगों से  
 
+
सजा, हरा-भरा  
सज़ा, हरा भरा  
+
मेरे ख़्वाबों की ज़मीं पर
 
+
सजा-धजा ।
मेरे ख्वाबों की जमीं पर
+
</poem>
 
+
सज़ा धज़ा।
+

23:16, 16 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

आज एक वर्ष पूरा हो गया
मगर मेरा ख़्वाब
अभी अधूरा है,
अभी तो मुझे पाना है
सूरज-सा तेज
और चाँद-सी शीतलता,
अभी तो मुझे पानी है
फूलों-सी कोमलता
धरती-सी सहनशीलता,
अभी तो मुझे चुराने हैं
कुछ रंग इन
रंगबिरंगी तितलियों से,
अभी तो मुझे लेना है
थोड़ा-सा विस्तार
इस नीले गगन से,
अभी तो मुझे लानी है
थोड़ी-सी लाली इस
ढलती हुई शाम से,
अभी तो मुझे
चुरानी है
थोड़ी-सी चमक
इन चमचमाते तारों से,
अभी तो मुझे लेनी है
थोड़ी-सी हरियाली
इन लहलहाते खलियानों से,
अभी तो मुझे पानी है
नदी-सी चंचलता और
पहाड़-सी स्थिरता
हाँ, तभी तो होगा
ये ब्लॉग पूरा
इन रंगों से
सजा, हरा-भरा
मेरे ख़्वाबों की ज़मीं पर
सजा-धजा ।