"नहीं तेरे चरणों में / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=भग्नदूत / अज्ञेय }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | कानन का सौन्दर्य लूट कर सुमन | + | कानन का सौन्दर्य लूट कर सुमन इकट्ठे कर के |
धो सुरभित नीहार-कणों से आँचल में मैं भर के, | धो सुरभित नीहार-कणों से आँचल में मैं भर के, | ||
देव! आऊँगा तेरे द्वार- | देव! आऊँगा तेरे द्वार- |
20:57, 19 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
कानन का सौन्दर्य लूट कर सुमन इकट्ठे कर के
धो सुरभित नीहार-कणों से आँचल में मैं भर के,
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
किन्तु नहीं तेरे चरणों में दूँगा वह उपहार!
खड़ा रहूँगा तेरे आगे क्षण-भर मैं चुपका-सा,
लख कर मेरे कुसुम जगेगी तेरे उर में आशा,
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
किन्तु नहीं तेरे चरणों में दूँगा कुछ उपहार!
तोड़-मरोड़ फूल अपने मैं पथ में बिखराऊँगा,
पैरों से फिर कुचल उन्हें, मैं पलट चला जाऊँगा
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
किन्तु नहीं तेरे चरणों में दूँगा वह उपहार!
क्यों? मैं ने भी तेरे हाथों सदा यही पाया है-
सदा मुझे जो प्रिय था उस को तू ने ठुकराया है!
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
किन्तु नहीं तेरे चरणों में दूँगा वह उपहार!
शायद आँखें भर आवें-आँचल से मुख ढँक लूँगा;
आँखों में, उर में क्या है, यह तुझे न दिखने दूँगा!
देव! आऊँगा तेरे द्वार-
किन्तु नहीं तेरे चरणों में दूँगा कुछ उपहार!
दिल्ली जेल, अप्रैल, 1932