भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न मेरा जिस्म कहीं औ' न मेरी जाँ रख दे / महेश अश्क" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश अश्क }} {{KKCatGhazal}} <poem> न मेरा जिस्म ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:43, 23 जुलाई 2012 के समय का अवतरण


न मेरा जिस्म कहीं औ' न मेरी जाँ रख दे
मेरा पसीना जहाँ है, मुझे वहाँ रख दे

बगूला बन के भटकता फिरूँगा मैं कब तक
यक़ीन रख कि न रख, मुझमे कुछ गुमाँ रख दे

बिदक भी जाते हैं, कुछ लोग भिड़ भी जाते हैं
प' इसके डर से, कोई आईना कहाँ रख दे

वो रात है, कि अगर आदमी के बस में हो
चिराग़ दिल को करे और मकाँ-मकाँ रख दे

जो अनकहा है अभी तक, वो कहके देखा जाए
ख़मोशियों के दहन में, कोई ज़ुबाँ रख दे