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"अंत कब कहाँ / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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अन्त? कब, कहाँ, किस का अन्त?
दोनों ही असम्भव...
इस बढ़ते हुए अन्तरावकाश के कारण किसी दिन वह तेजोराशि अदृश्य हो जाएगी- और तू, क्षुद्र पक्षी, तू शून्य में भटकता रह जाएगा-
शायद खो जाएगा...
पागल, तेरा खेल समाप्त नहीं होगा!
दिल्ली जेल, 27 जून, 1932