भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आह्वान / रकेल लेन्सरस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रकेल लेन्सरस |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
  
 
ताकि मैं गा के भगा सकूँ मौन दिनों की धमकियाँ
 
ताकि मैं गा के भगा सकूँ मौन दिनों की धमकियाँ
 +
 +
'''स्पानी भाषा से हिन्दी में अनुवाद : रीनू तलवार'''
 
</poem>
 
</poem>

11:36, 3 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

ऐसा हो कि अविश्वास की प्रकट स्थिरता
कभी मेरे मन को छलनी न करे ।
मुझे बच कर भाग जाने दो
निराशावाद की सुन्नता से
उचके हुए कन्धों की निष्पक्षता से ।
ऐसा हो कि जीवन में हमेशा मेरी आस्था रहे
हमेशा मेरी आस्था रहे
अनंत संभावनाओं में
ठग लो मुझे, ओ जलपरियों के मोहगीतों
छिड़क दो मुझ पर थोडा भोलापन !
मेरी त्वचा, कभी मत बन जाना तुम
कठोर, मोटा चमड़ा ।

ऐसा हो कि हमेशा मेरे आँसू बहें
असंभव सपनों के लिए
वर्जित प्रेम के लिए
लड़कपन की फंतासियों के लिए
जो खंडित हो गए हैं सब
ऐसा हो कि मैं भाग निकलूँ यथार्थवाद की बद्ध सीमाओं से
बचाए रखूँ अपने होंठों के ये गीत
ऐसा हो कि वे असंख्य हों
शोर भरे
और ध्वनियों से परिपूर्ण

ताकि मैं गा के भगा सकूँ मौन दिनों की धमकियाँ

स्पानी भाषा से हिन्दी में अनुवाद : रीनू तलवार