भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मानव की आँख / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=शरणार्थी / अज्ञेय }}...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:03, 4 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
कोटरों से गिलगिली घृणा यह झाँकती है।
मान लेते यह किसी शीत रक्त, जड़-दृष्टि
जल-तलवासी तेंदुए के विष नेत्र हैं
और तमजात सब जन्तुओं से
मानव का वैर है क्यों कि वह सुत है
प्रकाश का-यदि इन में न होता यह स्थिर तप्त स्पन्दन तो!
मानव से मानव की मिलती है आँख पर
कोटरों से गिलगिली घृणा झाँक देती है!
इलाहाबाद स्टेशन, 12 अक्टूबर, 1947
