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"अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

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पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे  
 
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे  
  
क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
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क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे  
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हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे  
  
 
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा  
 
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एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे </poem>
 
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे </poem>

10:18, 5 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे