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16:38, 8 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
किसी को शब्द हैं कंकड़ :
कूट लो, पीस लो, छान लो, डिबियों में डाल दो
थोड़ी-सी सुगन्ध दे के कभी किसी मेले के रेले में
कुंकुम के नाम पर निकाल दो।
किसी को शब्द हैं सीपियाँ :
लाखों का उलट-फेर, कभी एक मोती मिल जाएगा :
दूसरे सराहेंगे-डाह भी करेंगे कोई
पारखी स्वयं को मान पाएगा।
किसी को शब्द हैं नैवेद्य।
थोड़ा-सा प्रसादवत्, मुदित, विभोर वह पाता है।
उसी में कृतार्थ, धन्य, सभी को लुटाता है
अपना हृदय
वह प्रेममय।
दिल्ली, 21 जून, 1954