"आज मानव का सुनहला प्रात है / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | आज मानव का सुनहला प्रात है, | + | आज मानव का सुनहला प्रात है,<br> |
− | आज विस्मृत का मृदुल आघात है; | + | आज विस्मृत का मृदुल आघात है;<br> |
− | आज अलसित और मादकता-भरे, | + | आज अलसित और मादकता-भरे,<br> |
− | सुखद सपनों से शिथिल यह गात है; | + | सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;<br><br> |
− | मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो, | + | मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,<br> |
− | आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो । | + | आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।<br><br> |
− | आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है, | + | आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है,<br> |
− | आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है; | + | आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;<br> |
− | आज शतदल पर मुदित सा झूलता, | + | आज शतदल पर मुदित सा झूलता,<br> |
− | कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है; | + | कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;<br><br> |
− | लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो | + | लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो<br> |
− | आज मिल लो, मान करना छोड दो । | + | आज मिल लो, मान करना छोड दो ।<br><br> |
− | आज मधुकर कर रहा मधुपान है, | + | आज मधुकर कर रहा मधुपान है,<br> |
− | आज कलिका दे रही रसदान है; | + | आज कलिका दे रही रसदान है;<br> |
− | आज बौरों पर विकल बौरी हुई, | + | आज बौरों पर विकल बौरी हुई,<br> |
− | कोकिला करती प्रणय का गान है; | + | कोकिला करती प्रणय का गान है;<br><br> |
− | यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो | + | यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो<br> |
− | आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो । | + | आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।<br><br> |
− | आज नयनों में भरा उत्साह है, | + | आज नयनों में भरा उत्साह है,<br> |
− | आज उर में एक पुलकित चाह है; | + | आज उर में एक पुलकित चाह है;<br> |
− | आज श्चासों में उमड़कर बह रहा, | + | आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,<br> |
− | प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है; | + | प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;<br><br> |
− | डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो | + | डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो<br> |
− | आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो । | + | आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।<br><br> |
01:40, 4 अक्टूबर 2007 का अवतरण
आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है;
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;
मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।
आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;
लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड दो ।
आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है;
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है;
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।
आज नयनों में भरा उत्साह है,
आज उर में एक पुलकित चाह है;
आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,
प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;
डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।