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"आज मानव का सुनहला प्रात है / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
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आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
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आज बौरों पर विकल बौरी हुई,<br>
कोकिला करती प्रणय का गान है;
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कोकिला करती प्रणय का गान है;<br><br>
  
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
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आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।<br><br>
  
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प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;
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प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;<br><br>
  
डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो
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आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।
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आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।<br><br>

01:40, 4 अक्टूबर 2007 का अवतरण

आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है;
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;

मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।

आज सौरभ में भरा उच्छ्‌वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;

लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड दो ।

आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है;
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है;

यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।

आज नयनों में भरा उत्साह है,
आज उर में एक पुलकित चाह है;
आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,
प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;

डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।