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"तू-मैं / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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तू फाड़-फाड़ कर छप्पर चाहे | तू फाड़-फाड़ कर छप्पर चाहे | ||
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घड़े के घड़े अमृत बरसाया कर | घड़े के घड़े अमृत बरसाया कर | ||
मैं उस की बूँद-बूँद के संचय के हित सौ-सौ बार मरूँ। | मैं उस की बूँद-बूँद के संचय के हित सौ-सौ बार मरूँ। | ||
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+ | तू सुर-लोकों के द्वार खोल नित नये | ||
राह पर नन्दन-वन कुसुमाता जा- | राह पर नन्दन-वन कुसुमाता जा- | ||
मैं बार-बार हठ कर के यह, अनन्य यह मानव-लोक वरूँ। | मैं बार-बार हठ कर के यह, अनन्य यह मानव-लोक वरूँ। |
10:48, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
तू फाड़-फाड़ कर छप्पर चाहे
जिस को तिस को देता जा
मैं मोती अपने हिय के उन में भरा करूँ।
तू जहाँ कहीं जी करे
घड़े के घड़े अमृत बरसाया कर
मैं उस की बूँद-बूँद के संचय के हित सौ-सौ बार मरूँ।
तू सुर-लोकों के द्वार खोल नित नये
राह पर नन्दन-वन कुसुमाता जा-
मैं बार-बार हठ कर के यह, अनन्य यह मानव-लोक वरूँ।
मोती बाग, नयी दिल्ली, 18 जून, 1957