भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सरस्वती-पुत्र / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					|  ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभाम...' के साथ नया पन्ना बनाया) | 
| (कोई अंतर नहीं) | 
12:15, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
     मन्दिर के भीतर वे सब धुले-पुँछे उघड़े-अवलिप्त,
     खुले गले से मुखर स्वरों में
     अति प्रगल्भ गाते जाते थे राम-नाम।
     भीतर सब गूँगे, बहरे, अर्थहीन, अल्पक,
     निर्बाध, अयाने, नाटे, पर बाहर जितने बच्चे उतने ही बड़बोले।
     बाहर वह खोया-पाया, मैला-उजला
     दिन-दिन होता जाता वयस्क,
     दिन-दिन धुँधलाती आँखों से
     सुस्पष्ट देखता जाता था;
     पहचान रहा था रूप,
     पा रहा वाणी और बूझता शब्द,
     पर दिन-दिन अधिकाधिक हकलाता था :
     दिन-दिन पर उस की घिग्घी बँधती जाती थी।
देहरादून, 19 अगस्त, 1959
 
	
	

