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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो | हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो | ||
नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो | नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो | ||
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नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों | नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों | ||
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो | मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो | ||
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न हो कोई राजा न हो रंक कोई | न हो कोई राजा न हो रंक कोई | ||
सभी हों बराबर सभी आदमी हों | सभी हों बराबर सभी आदमी हों | ||
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न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले | न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले | ||
हमारे दिलों की न सौदागरी हो | हमारे दिलों की न सौदागरी हो | ||
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ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई | ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई | ||
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो | निगाहों में अपनी नई रोशनी हो | ||
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न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन | न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन | ||
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो | न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो | ||
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सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में | सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में | ||
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो | कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो | ||
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नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों | नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों | ||
नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो | नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो | ||
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15:47, 9 अगस्त 2012 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक : वतन का गीत रचनाकार: गोरख पाण्डेय
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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो न हो कोई राजा न हो रंक कोई सभी हों बराबर सभी आदमी हों न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले हमारे दिलों की न सौदागरी हो ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई निगाहों में अपनी नई रोशनी हो न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो