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हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
 
हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
 
नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो
 
नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो
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नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
 
नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
 
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो
 
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो
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न हो कोई राजा न हो रंक कोई
 
न हो कोई राजा न हो रंक कोई
 
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
 
सभी हों बराबर सभी आदमी हों
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न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले
 
न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले
 
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
 
हमारे दिलों की न सौदागरी हो
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ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई
 
ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई
 
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो
 
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो
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न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
 
न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
 
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो
 
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो
 +
 
सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में
 
सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में
 
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो
 
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो
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नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों
 
नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों
 
नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो
 
नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो
 
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15:47, 9 अगस्त 2012 का अवतरण

Lotus-48x48.png
सप्ताह की कविता
शीर्षक : वतन का गीत रचनाकार: गोरख पाण्डेय
हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो
नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो

नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों
मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो

न हो कोई राजा न हो रंक कोई
सभी हों बराबर सभी आदमी हों

न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले
हमारे दिलों की न सौदागरी हो

ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई
निगाहों में अपनी नई रोशनी हो

न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन
न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो

सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में
कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो

नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों
नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो