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निमाड़: चैत / अज्ञेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
:::(1)
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
आतप से
उन के पत्ते झराती जाती है।
:::(2)
छाया को
झरते पत्ते
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