भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निमाड़: चैत / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय }} <Poem> पेड़ अपनी-अपनी छाया को आतप से ओट दे...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 +
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
 
+
 
<Poem>
 
<Poem>
 +
:::(1)
 
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
 
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
 
आतप से  
 
आतप से  
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
उन के पत्ते झराती जाती है।
 
उन के पत्ते झराती जाती है।
  
2
+
:::(2)
 
छाया को
 
छाया को
 
झरते पत्ते
 
झरते पत्ते
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
पत्तों को ही
 
पत्तों को ही
 
छाया छा लेती है।
 
छाया छा लेती है।
 
 
</poem>
 
</poem>

16:49, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

(1)
पेड़ अपनी-अपनी छाया को
आतप से
ओट देते
चुप-चाप खड़े हैं।

तपती हवा
उन के पत्ते झराती जाती है।

(2)
छाया को
झरते पत्ते
नहीं ढँकते,
पत्तों को ही
छाया छा लेती है।