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"हँसती रहने देना / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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हाथों ने बहुत अनर्थ किये <br>
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पग ठौर-कुठौर चले <br>
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हँसती रहने देना
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे <br><br>
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पर आँखों ने <br>
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हँसती रहने देना <br>
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जब आवे दिन! <br><br>
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17:33, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

जब आवे दिन
तब देह बुझे या टूटे
इन आँखों को
हँसती रहने देना!

हाथों ने बहुत अनर्थ किये
पग ठौर-कुठौर चले
मन के
आगे भी खोटे लक्ष्य रहे
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे

पर आँखों ने
हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का
अंधकार भी देखा तो
सच-सच देखा

इस पार
उन्हें जब आवे दिन
ले जावे
पर उस पार
उन्हें
फिर भी आलोक कथा
सच्ची कहने देना
अपलक
हँसती रहने देना
जब आवे दिन!