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"वह जो बार-बार पास आता है / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
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लिखता हूँ तांडव गीत<br> | लिखता हूँ तांडव गीत<br> | ||
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00:37, 8 अक्टूबर 2007 का अवतरण
वह जो बार बार पास आता है
*
क्या उसे पता है वह क्या चाहता है
वह जाता है
लौटकर नाराज़गी के मुहावरों
के किले गढ़
भेजता है शब्दों की पतंगें
मैं समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ
जैसे चांद पर मुझे कविता लिखनी है
वैसे ही लिखनी है उस पर भी
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की
चांदनी में लौटते हुए
एक चांद उसके लिए देखता हूँ
चांदनी हम दोनों को छूती
पार करती असंख्य वन-पर्वत
बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों
को पार करती चांदनी
उस पर कविता लिखते हुए
लिखता हूँ तांडव गीत
तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।