भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किसने जीवन दीप जुगाया! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सब कुछ कृष...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
किसका था वह हाथ सदा जो आड़े-आड़े आया ! | किसका था वह हाथ सदा जो आड़े-आड़े आया ! | ||
− | अपना ही प्रतिबिम्ब, मोह, भ्रम,स्वप्न कहूँ या माया | + | अपना ही प्रतिबिम्ब, मोह, भ्रम, स्वप्न कहूँ या माया |
मैंने प्रतिपल निज प्राणों पर परस किसी का पाया | मैंने प्रतिपल निज प्राणों पर परस किसी का पाया | ||
21:12, 29 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
किसने जीवन दीप जुगाया !
मेरे मस्तक पर थी किसके स्नेहांचल की छाया !
जब भी महाकाल ने अपने जबड़ों को फैलाया
किसका था वह हाथ सदा जो आड़े-आड़े आया !
अपना ही प्रतिबिम्ब, मोह, भ्रम, स्वप्न कहूँ या माया
मैंने प्रतिपल निज प्राणों पर परस किसी का पाया
कौन अनल-सागर से तृण की तरी पार कर लाया !
किसके बल झंझा से लड़ती रही ज्योति कृशकाया !
किसने जीवन दीप जुगाया !
मेरे मस्तक पर थी किसके स्नेहांचल की छाया !