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"आईना चूर हुआ लगता है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्यार कहाँ वह! आदर तो भरपूर हुआ लगता है | ||
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+ | जैसे मेरा 'मैं' ही मुझसे दूर हुआ लगता है | ||
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21:45, 29 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
आईना चूर हुआ लगता है
जैसे मेरा 'मैं' ही मुझसे दूर हुआ लगता है
दो भागों में बाँट लिया है किसने मेरे मन को
एक भूमि पर पड़ा दूसरा छूने चला गगन को
काजल-सा है एक, अन्य कर्पूर हुआ लगता है
माना इन ॠजु-कुटिल पंक्तियों में जीवन बँध आया
वह यौवन-उन्माद कहाँ पर अब वह कंचन-काया !
प्यार कहाँ वह! आदर तो भरपूर हुआ लगता है
आईना चूर हुआ लगता है
जैसे मेरा 'मैं' ही मुझसे दूर हुआ लगता है