भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोयल की कुहक का यहीं अंत है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हम तो गाकर...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:21, 30 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
कोयल की कुहक का यहीं अंत है
माना, पुन: लौटता वसंत है
तरु से जो पत्र आज झड़ गया
आयेगा रूप लिए फिर नया
जीवन अमर है यही जानकार
आती न हो वायु को तनिक दया
रोता ही रहा परन्तु वृंत है
सिन्धु-तीर लहरों का ताँता है
मन का जुड़ गया कहीं नाता है
सलिल वही लौटता हो बार-बार
ज्वार वही लौट नहीं पाता है
क्या हो जो सृष्टि-क्रम अनंत है
कोयल की कुहक का यहीं अंत है
माना, पुन: लौटता वसंत है