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"जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी ! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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20:45, 30 अगस्त 2012 के समय का अवतरण


जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?

चिर-उदार रहकर क्यों तू यह पागलपन सहता है?
ढीठ चपलता पर मेरी बस मुस्काता रहता है
अंतहीन तृष्णा में जब मैं फिरता हूँ सुख-कामी

अपने आगे-आगे मैंने देखी तेरी छाया
कितने बाधा-विघ्नों से तू मुझे पार कर लाया
जब भी चरण डिगे तो बाँह पलटकर थामी

कैसे इस जड़ता को तूने इतना मान दिया है!
कहने के पहले ही मेरा आशय जान लिया है
मेरी हर बचपन की जिद पर भर दी तूने हामी

जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?