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"ओ सहचर अनजाने ! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ओ सहचर अनजाने !
मुझको तो गतिमय रक्खा है तेरी ही करुणा ने
जिस दिन जीवन-कुसुम खिला था
यौवन का प्रभात पहिला था
कुछ ऐसा आभास मिला था
तू भी साथ साथ चलता है अपना आँचल ताने
जब भी दिये काल ने झटके
पाँव शून्य मरुथल में भटके
मैंने दी आवाज़ पलट के
और आ गया था झट से तू मुझको पार लगाने
जब तक हाथ शीश पर तेरा
कोई क्या कर लेगा मेरा!
फटता जाता आप अँधेरा
कटते जाते हैं भय संशय के कुल ताने –बाने
ओ सहचर अनजाने !
मुझको तो गतिमय रक्खा है तेरी ही करुणा ने