भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई, / मनु 'बे-तख़ल्लुस'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनु 'बे-तख़ल्लुस' |संग्रह= }} [[Category:ग़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:31, 8 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

 
तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई
हो मुश्किल बहर से लाचार जैसे काफिया कोई

खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई

वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई

खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई

सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई

न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई

कहाँ तो वक़्त काटे जा रहा है 'बे-तखल्लुस' को
कहाँ देखा गया है वक़्त अपना काटता कोई.