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"बरगद / संगीता गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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समर्थ पिता की तरह | समर्थ पिता की तरह | ||
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उसकी छत्र - छाया में | उसकी छत्र - छाया में | ||
कटता चला जाए | कटता चला जाए | ||
अपनी जड़ो से | अपनी जड़ो से | ||
− | बरगद की | + | बरगद की मंशा नहीं |
फितरत है कुदरत की | फितरत है कुदरत की | ||
न पनपने देना किसी को | न पनपने देना किसी को |
17:10, 10 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
बरगद के नीचे आकर
निश्चिन्त हो जाते हैं
धूप से अकुलाए लोग
आकर ठहरे
जीने लगते
उसकी छाया में
नहीं चाहता बरगद
समर्थ पिता की तरह
कि कोई बना रहे हमेशा
उसकी छत्र - छाया में
कटता चला जाए
अपनी जड़ो से
बरगद की मंशा नहीं
फितरत है कुदरत की
न पनपने देना किसी को
अपनी छांव में
रोते हुए बरगद को
कोई नहीं देख पाता
कितने एक जैसे हैं
आदमी और बरगद