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"अनुवाद / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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दरवाज़े के दो पल्ले अलग-अलग रंगों के, दो आदमियों के बीच अपरिचित पसीने की गंध और एक आदमी की दो पुतलियाँ अलग अलग रंगों की । एक तहजीब में परिचय का हाथ आगे बढाते तो दूसरी सभ्यता के अभिवादन से उसे पूरा करते । शराब मेज़ से उठाए जाने से लेकर होठों तक आने में अपना रंग और असर बदल चुकी होती । उधर से कोई ग़ाली देता तो इधर आते तक ख़त्म हो रहता उसका अम्ल । एक देश के सिपाही का ख़ून बहता तो दूसरे देश के सिपाही के जूते चिपचिपाने लगते । यहाँ जो चुम्बन था वहाँ एक तौलिया । एक आदमी के सीने में तलवार घोंपी जाती तो दूसरे गोलार्द्ध पर चीख़ सुनाई देती, यहाँ का आँसू वहाँ के नमक में घुला होता जो यहाँ के समंदर से निकला था ।
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एक कविता जो उस देश की ठँडी और धुँधली साँझ में शुरू हुई थी दूसरे देश की साफ़ और हवादार शाम पर आकर ख़त्म होती। वहाँ का घुड़सवार यहाँ के घोड़े से उतरेगा । यहाँ की नफ़रत वहाँ के प्रतिशोध पर ख़त्म होगी लेकिन लाल ही होगा ख़ून का रंग। जहाँ प्यार था वहाँ प्यार ही होगा जहाँ स्पंदन था वहीं पर स्पंदन, केवल देखने की जगहें बदल जातीं ।
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एक कविता  
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जो उस देश की ठँडी और धुँधली साँझ में शुरू हुई थी  
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दूसरे देश की साफ़ और हवादार शाम पर आकर  
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केवल देखने की जगहें बदल जातीं ।
  
अनुवादक दो संस्कृतियों के गुस्से की मीनारों पर तनी रस्सी पर बदहवास दौडता रहता, कभी रुककर साधता संतुलन, पूरा संतोष कहीं नहीं था ।
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अनुवादक  
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तनी रस्सी पर बदहवास दौडता रहता,  
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कभी रुककर साधता संतुलन,  
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पूरा संतोष कहीं नहीं था ।
 
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18:47, 16 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण

दरवाज़े के दो पल्ले अलग-अलग रंगों के,
दो आदमियों के बीच अपरिचित पसीने की गंध
और एक आदमी की दो पुतलियाँ
अलग अलग रंगों की ।
एक तहजीब में परिचय का हाथ आगे बढाते
तो दूसरी सभ्यता के अभिवादन से
उसे पूरा करते ।
शराब मेज़ से उठाए जाने से लेकर
होठों तक आने में
अपना रंग और असर
बदल चुकी होती ।
उधर से कोई ग़ाली देता
तो इधर आते तक
ख़त्म हो रहता उसका अम्ल ।
एक देश के सिपाही का ख़ून बहता
तो दूसरे देश के सिपाही के
जूते चिपचिपाने लगते ।
यहाँ जो चुम्बन था
वहाँ एक तौलिया ।
एक आदमी के सीने में
तलवार घोंपी जाती तो
दूसरे गोलार्द्ध पर चीख़ सुनाई देती,
यहाँ का आँसू
वहाँ के नमक में घुला होता
जो यहाँ के समंदर से निकला था ।

एक कविता
जो उस देश की ठँडी और धुँधली साँझ में शुरू हुई थी
दूसरे देश की साफ़ और हवादार शाम पर आकर
ख़त्म होती।
वहाँ का घुड़सवार
यहाँ के घोड़े से उतरेगा ।
यहाँ की नफ़रत
वहाँ के प्रतिशोध पर ख़त्म होगी
लेकिन लाल ही होगा ख़ून का रंग।
जहाँ प्यार था
वहाँ प्यार ही होगा
जहाँ स्पंदन था वहीं पर स्पंदन,
केवल देखने की जगहें बदल जातीं ।

अनुवादक
दो संस्कृतियों के गुस्से की मीनारों पर
तनी रस्सी पर बदहवास दौडता रहता,
कभी रुककर साधता संतुलन,
पूरा संतोष कहीं नहीं था ।