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Kavita Kosh से
सोने सी मधुशाला चमकी,<br>
मधुगंध दिशाओं में चमकी,<br>
चल पड़ा लिये कर में प्याला<br>
प्यासे आिआए, मैंने आिकाआँका,<br>वातायन से मैंने िािकाझाँका,<br>पीनेवालों का दल बहकाबाँका,<br>
उत्कंठित स्वर से बोल उठा,<br>
‘कर दे पागल, भर दे प्याला!’<br>