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Kavita Kosh से
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, दया कर सागर हे !
अंग भसम शिर सिर अंग, गले बिच विषधर हे !
लोचन लाल विशाल, भाल बिच शशिधर हे !
जानि शरण दीनबन्धु, शरण धय रहलहूँ हे !
दया करू मम प्रतिपाल, अगम जल पड़लहूँ हे !