भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगत विदित बैद्यनाथ / विद्यापति

No change in size, 13:55, 26 सितम्बर 2012
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, दया कर सागर हे !
अंग भसम शिर सिर अंग, गले बिच विषधर हे !
लोचन लाल विशाल, भाल बिच शशिधर हे !
जानि शरण दीनबन्धु, शरण धय रहलहूँ हे !
दया करू मम प्रतिपाल, अगम जल पड़लहूँ हे !
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits