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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">नदी के दो किनारे</div>
<div style="font-size:15px;"> योगदानकर्ता:[[सदस्य:चंद्र मौलेश्वर‎| श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद]] </div>
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<div style="font-size:15px;"> योगदानकर्ता:[[मृदुल कीर्ति| मृदुल कीर्ति]] </div>
 
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
कविताकोश के एक प्रमुख योगदानकर्ता
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दो शरीर
श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद का 12 सितम्बर 2012
+
परस्पर सलग
को देहांत हो गया।
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परस्पर विलग
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आत्मीय आदान-प्रदान का सेतु बंध,
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था ही नहीं ।
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आकर्षण विकर्षण का प्रतिबिम्ब ,
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था ही नहीं ।
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परस्पर प्रति,सहज समर्पण, स्नेहानुबंध
 +
था ही नहीं ।
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नितांत असम्पृक्त एकाकी होकर भी ।
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हम निरंतर इस तरह साथ हैं,
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जैसे धरती पर छाया आकाश ,
 +
विराट नदी के दो अदृश्य किनारे,
 +
परस्पर सलग ,
 +
परस्पर विलग ।
  
आप 18 अप्रैल 2009 को पहली बार
 
कविताकोश से जुडे
 
और 21 जुलाई 2011 तक 600 से भी
 
अधिक रचनाओं को इस कोश में जोडा
 
आपने जो पहली रचना इस कोश में जोडी
 
वह ऋषभ देव शर्मा जी की रचना
 
गोलमहल थी और संग्रह था
 
ताकि सनद रहे..... ।
 
 
यह संयोग है कि 21 जुलाई 2011 को
 
अंतिम बार आपने कविताकोश पर
 
जिस रचना को जोडा
 
वह भी ऋषभदेव शर्मा की ही रचना थी
 
तेवरी काव्यान्दोलन..... ।
 
 
कविताकोश से योगदानकर्ता के रूप में
 
जुडे रहने के दौरान आपने आरज़ू लखनवी, ‎
 
सफ़ी लखनवी, सीमाब अकबराबादी, ‎
 
जिगर मुरादाबादी, ‎आसी ग़ाज़ीपुरी, ‎
 
अमजद हैदराबादी, ‎कविता वाचक्नवी,
 
यगाना चंगेज़ी, ‎ लेकर फ़ानी बदायूनी,
 
तक की शायरियों को जोडा ।
 
 
कविताकोश और उसके पढने वाले
 
श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद के योगदान को
 
हमेशा याद रखेंगे ।
 
 
ईश्वर ने आपके लिये स्वर्ग में स्थान
 
सुनिश्चित किया हो इसी कामना के साथ
 
सभी योगदानकर्ताओं की ओर से
 
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ।
 
 
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22:24, 4 अक्टूबर 2012 का अवतरण

Lotus-48x48.png
नदी के दो किनारे
योगदानकर्ता: मृदुल कीर्ति
दो शरीर 
परस्पर सलग
परस्पर विलग
आत्मीय आदान-प्रदान का सेतु बंध,
था ही नहीं ।
आकर्षण विकर्षण का प्रतिबिम्ब ,
था ही नहीं ।
परस्पर प्रति,सहज समर्पण, स्नेहानुबंध 
था ही नहीं ।
नितांत असम्पृक्त एकाकी होकर भी ।
हम निरंतर इस तरह साथ हैं,
जैसे धरती पर छाया आकाश ,
विराट नदी के दो अदृश्य किनारे,
परस्पर सलग ,
परस्पर विलग ।