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"लोग ख़ुश हैं और हमको ज़ात का ग़म हो रहा है / ‘शुजाअ’ खावर" के अवतरणों में अंतर
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13:10, 7 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
लोग खुश हैं और हमको ज़ात का ग़म हो रहा है
दिन-ब-दिन दुनिया से अपना राबता कम हो रहा है
वो समझ ले जो समझ सकता है हम फिर कह रहे हैं
कर्बला में आजकल जश्ने-मुहर्रम हो रहा है
इस तरफ हालात के हरबे बराबर बढ़ रहे हैं
उस तरफ यादों का दस्ता फिर मुनज्ज़म हो रहा है
हम बज़ोमे-ख़ुद बहुत बरहम ज़माने से हैं लेकिन
लोग कहते हैं ज़माना हमसे बरहम हो रहा है
जाने कब बदलेगा ये मंज़र जहाने-आरज़ू का
हादसा होने से पहले इतना मातम हो रहा है