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21:56, 7 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

दूसरी बातों में हमको हो गया घाटा बहुत
वरना फ़िक़्रे-शऊर को दो वक़्त का आटा बहुत

आरज़ू का शोर बरपा हिज्र की रातों में था
वस्ल की शब को हुआ जाता है सन्नाटा बहुत

दिल की बातें दूसरों से मत कहो कट जाओगे
आजकल इज़हार के धन्धे में है घाटा बहुत


कायनात और ज़ात में कुछ चल रही है आजकल
जब से अन्दर शोर है बाहर है सन्नाटा बहुत

मौत की आज़ादियाँ भी ऐसी कुछ दिलकश नहीं
फिर भी हमने ज़िन्दगी की क़ैद को काटा बहुत