भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समाधि लेख / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल }} <poem> रस तो अनंत था, अंजुरी भर ह...)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
 
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
 
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।
 
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।
 
 
</poem>
 
</poem>

00:02, 22 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

रस तो अनंत था, अंजुरी भर ही पिया,
जी में वसंत था, एक फूल ही दिया।
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।