भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम / निर्मला देवी / दिनेश कुमार माली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=दिनेश कुमार माली |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=निर्मला देवी
 
|अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]]
 
|अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]]
 
|संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली
 
|संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
'''रचनाकार:'''  
+
'''रचनाकार:''' निर्मला देवी (1907-1987)
  
'''जन्मस्थान:'''  
+
'''जन्मस्थान:''' बालीकूदा, कटक
  
'''कविता संग्रह:'''  
+
'''कविता संग्रह:''' दिनान्ते (1953), सीमांते(1962), वर्णराग(1986)
 
----
 
----
 
<poem>
 
<poem>
 +
तुम तो हो रंगहीन
 +
मगर रंग धारण करते हो कैसे ?
 +
तुम तो हो गंधहीन
 +
मगर असंख्य सुगंधों में सुवासित होते हो कैसे  ?
 +
तुम तो हो स्पर्शहीन
 +
मगर हर प्राणी में सिहरन उठाते हो कैसे  ?
 +
तुम तो हो रसहीन
 +
मगर पूरी सृष्टि को रसमय बनाते हो कैसे ?
 +
तुम तो हो रूपहीन
 +
मगर अनंत रूप दिखाते हो कैसे ?
 +
तुम  तो हो शब्दहीन
 +
मगर  विश्व  को शब्दमय बनाते हो कैसे ?
 +
दिखते हो तुम एकदम विचित्र
 +
सुनो, कैसे बनाऊँ मैं तुम्हारे चित्र
 
</poem>
 
</poem>

23:58, 23 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

रचनाकार: निर्मला देवी (1907-1987)

जन्मस्थान: बालीकूदा, कटक

कविता संग्रह: दिनान्ते (1953), सीमांते(1962), वर्णराग(1986)


तुम तो हो रंगहीन
मगर रंग धारण करते हो कैसे ?
तुम तो हो गंधहीन
मगर असंख्य सुगंधों में सुवासित होते हो कैसे  ?
तुम तो हो स्पर्शहीन
मगर हर प्राणी में सिहरन उठाते हो कैसे  ?
तुम तो हो रसहीन
मगर पूरी सृष्टि को रसमय बनाते हो कैसे ?
तुम तो हो रूपहीन
मगर अनंत रूप दिखाते हो कैसे ?
तुम तो हो शब्दहीन
मगर विश्व को शब्दमय बनाते हो कैसे ?
दिखते हो तुम एकदम विचित्र
सुनो, कैसे बनाऊँ मैं तुम्हारे चित्र