भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सदस्य:Yog.wankhede" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(Marathi - Sant Gyaneshwar)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:29, 24 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

हरि उच्‍चारणीं अनंत पापराशि । जातील लयासि क्षणमात्रें ॥१॥

तृण अग्‍निमेळें समरस झालें । तैसें नामें केलें जपतां हरि ॥२॥

हरि उच्‍चारण मंत्र हा अगाध । पळे भूतबाध भेणें तेथे ॥३॥

ज्ञानदेव म्हणे हरि माझा समर्थ । न करवे अर्थ उपनिषदां ॥४॥