"हमारा रूठना/ विद्युत प्रभा देवी / दिनेश कुमार माली" के अवतरणों में अंतर
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+ | हमारा खुश मन, कलकल नदी के धार की तरह | ||
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+ | हमारा हंसना- रोना, सर्दी में ओस बिंदु कणों की तरह | ||
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+ | हमारा राग-द्वेष, भादों महीने के तेज धूप की तरह | ||
+ | हमारे मन का खुलापन, कुमार पूर्णिमा की रात की तरह | ||
+ | हमारा विरह-मिलन, सूर्य-चांद की तरह | ||
+ | हमारा प्रणय , पहाड़ी झरने के नाच की तरह | ||
+ | हमारी स्नेह- ममता, अथाह दरिया के सीने की तरह | ||
+ | हमारा आलिंगन, नन्हें शिशु की तोतली बोली की तरह | ||
+ | हमारा प्रेम विनिमय , मलय अमरमता | ||
+ | सुख और दुख की कविता हैं हम दोनों | ||
+ | भव उपवन में मैं हूँ तरु, तुम हो लता | ||
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15:49, 25 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
रचनाकार: विद्युतप्रभा देवी(1926-1977)
जन्मस्थान: एरडंगा, कटक
कविता संग्रह: सविता(1947), उत्कल सारस्वत प्रतिमा(1947), कनकांजलि(1948), मरीचिका(1948) विहायसी(1949), वंदनिका (1950), स्वप्नद्वीप(1951), झराशिऊली(1952), जाहाकु जिए(1956), संचयन(1957)
हमारा रुठना, बादलों के बिजली की गार की तरह
हमारा खुश मन, कलकल नदी के धार की तरह
हमारा झगड़ना, सुबह के बादल की पुकार की तरह
हमारा मिलना- जुलना, सुगंधित- फूलों के हार की तरह
हमारा हंसना- रोना, सर्दी में ओस बिंदु कणों की तरह
हमारा मान-अभिमान , सुबह के ध्रुव तारें की तरह
हमारी बोल-चाल जिद्दी बाढ़ के पानी की तरह
हमारा राग-द्वेष, भादों महीने के तेज धूप की तरह
हमारे मन का खुलापन, कुमार पूर्णिमा की रात की तरह
हमारा विरह-मिलन, सूर्य-चांद की तरह
हमारा प्रणय , पहाड़ी झरने के नाच की तरह
हमारी स्नेह- ममता, अथाह दरिया के सीने की तरह
हमारा आलिंगन, नन्हें शिशु की तोतली बोली की तरह
हमारा प्रेम विनिमय , मलय अमरमता
सुख और दुख की कविता हैं हम दोनों
भव उपवन में मैं हूँ तरु, तुम हो लता