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"माटी / जयंत महापात्र / दिनेश कुमार माली" के अवतरणों में अंतर

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अनजान-नीरवता  से
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पाया हूँ थोडा-सा सत्य
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घर तो मेरा बहुत दूर
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दिखाई देता नहीं है मुझे अपनी आँखों से
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नहीं है उसकी छत, नहीं कोई  दीवार
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किंतु वहाँ उस मिट्टी की लाश के ऊपर
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मुरझा जाता है मेरे हृदय  का फूल
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खोकर अपनी एक एक कोमल पंखुडी।
 
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16:00, 25 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

रचनाकार: जयंत महापात्रा (1927)

जन्मस्थान: तिनीकोनिया बगीचा, कटक-753002

कविता संग्रह: बलि ,चालि ,कहिबि गोटिए कथा,टिकिए छाई ,बाया रजा


नहीं समझ पा रहा हूँ
क्यों इस मिट्टी के लिए मैं अंधा
इस लाल मैली मिट्टी के लिए
जिस मिट्टी के लिए
कभी- कभी कहता है कवि
कुछ भी मत निकालो
पानी, सार या हृदय का हल्कापन
जिस मिट्टी के लिए कहते हैं नेता
दोहन कर दो सभी लोहे के पत्थर
बाक्साइट और युगों- युगों से
भीतर सोया हुआ ईश्वर ।

और जिस मिट्टी से
कोई नहीं उठाएगा
पुलिस गोली में मरे हुए लोगों के
फटी आँखों वाले शून्य चेहरे
मंत्री के विवेक की अंतिम धकधक
और जिस मिट्टी में स्वयं नहीं
आने वाले समय की भूख
तब भी यह मिट्टी मेरी
कभी भी नहीं की मजदूरी
ढोयी नहीं मिट्टी इधर से उधर
किंतु मिट्टी की
अनजान-नीरवता से
पाया हूँ थोडा-सा सत्य
घर तो मेरा बहुत दूर
दिखाई देता नहीं है मुझे अपनी आँखों से
नहीं है उसकी छत, नहीं कोई दीवार
नहीं कोई झरोखा या कोई द्वार
किंतु वहाँ उस मिट्टी की लाश के ऊपर
मुरझा जाता है मेरे हृदय का फूल
खोकर अपनी एक एक कोमल पंखुडी।