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गुणा-भाग में  वह भारी धुरंधर
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चावल और भूसे में न समझे कोई अंतर
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बार बार रेंगते दिखाता है फण
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पार नहीं करता रेखा-लक्ष्मण
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छोंक देता इस पार, छींक देता उस पार
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तल के ऊपर तल, उसके ऊपर और तल-तल
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नरक के गुलाल से सारे प्राणियों में हलचल
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चेहरे पर हंसी का दिखावटी दर्पण,दिल में खाली खोखलापन
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कहीं पर गजब का  भोलापन, कहीं पर अजब का चालूपन
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कलम-रेखा से बनाते कुत्ते को बिल्ली
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शिशु- झूले के पास करते पशु-केलि
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बिकता है जिसका विवेक मेज के नीचे
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करे हितोपदेश वही अधिकारी आँखें मींचें
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मुंह में राम बगल में छुरी
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अवैध कारोबारों में भक्ति पूरी
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गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर
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पत्थर और ईश्वर में न जाने कोई अंतर ।
 
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21:39, 25 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

रचनाकार: राजेन्द्र किशोर पंडा (1944)

जन्मस्थान: बाटलगा, संबलपुर

कविता संग्रह: गौण देवता(1972), शतद्रु अनेक(1977), निज पाइँ नाना वाया(1980), चौकाठरे चिरकाल(81), शैलकल्प(1982), अन्या (1988), बहुव्रीहि(1991)


गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर
चावल और भूसे में न समझे कोई अंतर
बालू और कांच का वह बनाता पहाड़
घेरे हुए चारों ओर चींटीयों के हाड़
बार बार रेंगते दिखाता है फण
पार नहीं करता रेखा-लक्ष्मण
असार आदमी बार- बार कहता हैं `सर`'सर'
छोंक देता इस पार, छींक देता उस पार
तल के ऊपर तल, उसके ऊपर और तल-तल
नरक के गुलाल से सारे प्राणियों में हलचल
चेहरे पर हंसी का दिखावटी दर्पण,दिल में खाली खोखलापन
कहीं पर गजब का भोलापन, कहीं पर अजब का चालूपन

कलम-रेखा से बनाते कुत्ते को बिल्ली
शिशु- झूले के पास करते पशु-केलि
बिकता है जिसका विवेक मेज के नीचे
करे हितोपदेश वही अधिकारी आँखें मींचें
मुंह में राम बगल में छुरी
अवैध कारोबारों में भक्ति पूरी
गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर
पत्थर और ईश्वर में न जाने कोई अंतर ।