"अधिकारी / राजेन्द्र किशोर पंडा / दिनेश कुमार माली" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=दिनेश कुमार माली |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=राजेन्द्र किशोर पंडा |
|अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]] | |अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]] | ||
|संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली | |संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | '''रचनाकार:''' | + | '''रचनाकार:''' राजेन्द्र किशोर पंडा (1944) |
− | '''जन्मस्थान:''' | + | '''जन्मस्थान:''' बाटलगा, संबलपुर |
− | '''कविता संग्रह:''' | + | '''कविता संग्रह:''' गौण देवता(1972), शतद्रु अनेक(1977), निज पाइँ नाना वाया(1980), चौकाठरे चिरकाल(81), शैलकल्प(1982), अन्या (1988), बहुव्रीहि(1991) |
---- | ---- | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर | ||
+ | चावल और भूसे में न समझे कोई अंतर | ||
+ | बालू और कांच का वह बनाता पहाड़ | ||
+ | घेरे हुए चारों ओर चींटीयों के हाड़ | ||
+ | बार बार रेंगते दिखाता है फण | ||
+ | पार नहीं करता रेखा-लक्ष्मण | ||
+ | असार आदमी बार- बार कहता हैं `सर`'सर' | ||
+ | छोंक देता इस पार, छींक देता उस पार | ||
+ | तल के ऊपर तल, उसके ऊपर और तल-तल | ||
+ | नरक के गुलाल से सारे प्राणियों में हलचल | ||
+ | चेहरे पर हंसी का दिखावटी दर्पण,दिल में खाली खोखलापन | ||
+ | कहीं पर गजब का भोलापन, कहीं पर अजब का चालूपन | ||
+ | |||
+ | कलम-रेखा से बनाते कुत्ते को बिल्ली | ||
+ | शिशु- झूले के पास करते पशु-केलि | ||
+ | बिकता है जिसका विवेक मेज के नीचे | ||
+ | करे हितोपदेश वही अधिकारी आँखें मींचें | ||
+ | मुंह में राम बगल में छुरी | ||
+ | अवैध कारोबारों में भक्ति पूरी | ||
+ | गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर | ||
+ | पत्थर और ईश्वर में न जाने कोई अंतर । | ||
</poem> | </poem> |
21:39, 25 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
रचनाकार: राजेन्द्र किशोर पंडा (1944)
जन्मस्थान: बाटलगा, संबलपुर
कविता संग्रह: गौण देवता(1972), शतद्रु अनेक(1977), निज पाइँ नाना वाया(1980), चौकाठरे चिरकाल(81), शैलकल्प(1982), अन्या (1988), बहुव्रीहि(1991)
गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर
चावल और भूसे में न समझे कोई अंतर
बालू और कांच का वह बनाता पहाड़
घेरे हुए चारों ओर चींटीयों के हाड़
बार बार रेंगते दिखाता है फण
पार नहीं करता रेखा-लक्ष्मण
असार आदमी बार- बार कहता हैं `सर`'सर'
छोंक देता इस पार, छींक देता उस पार
तल के ऊपर तल, उसके ऊपर और तल-तल
नरक के गुलाल से सारे प्राणियों में हलचल
चेहरे पर हंसी का दिखावटी दर्पण,दिल में खाली खोखलापन
कहीं पर गजब का भोलापन, कहीं पर अजब का चालूपन
कलम-रेखा से बनाते कुत्ते को बिल्ली
शिशु- झूले के पास करते पशु-केलि
बिकता है जिसका विवेक मेज के नीचे
करे हितोपदेश वही अधिकारी आँखें मींचें
मुंह में राम बगल में छुरी
अवैध कारोबारों में भक्ति पूरी
गुणा-भाग में वह भारी धुरंधर
पत्थर और ईश्वर में न जाने कोई अंतर ।