"नष्ट नारी / अपर्णा महांति / दिनेश कुमार माली" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=दिनेश कुमार माली |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=अपर्णा महांति |
|अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]] | |अनुवादक=[[दिनेश कुमार माली]] | ||
|संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली | |संग्रह=ओड़िया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ / दिनेश कुमार माली | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | '''रचनाकार:''' | + | '''रचनाकार:''' अपर्णा महांति (1952) |
− | '''जन्मस्थान:''' | + | '''जन्मस्थान:''' कपालेश्वर,केंद्रपाड़ा-754211 |
− | '''कविता संग्रह:''' | + | '''कविता संग्रह:''' अव्यक्त आत्मीयता (1991),असती (1993) |
---- | ---- | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | अपर्णा | ||
+ | पहचानो | ||
+ | एक साधारण नारी के | ||
+ | स्वाक्षर। | ||
+ | |||
+ | पलक झपकते ही | ||
+ | मिटाने से मिट जाएंगे | ||
+ | पढ़ने बैठोगे तो पढते रह जाओगे | ||
+ | युग -युग तक | ||
+ | |||
+ | आदि काल से | ||
+ | आजतक.... | ||
+ | कितनी माया कितना मोह | ||
+ | कितना दाह कितना द्रोह | ||
+ | कितने आंसू कितना लहू | ||
+ | इतिहास के सजीव | ||
+ | शिलालेखों में | ||
+ | कलात्मकता से अंकित | ||
+ | कई साहसी नष्ट-नारियों | ||
+ | के कुछ अक्षर | ||
+ | |||
+ | तैंतीस करोड़ देवी- देवताओं के सामने | ||
+ | दुर्गा के निर्वस्त्र होने से लेकर | ||
+ | अहिल्या का पत्थर बनना | ||
+ | सीता की अग्नि परीक्षा | ||
+ | और पाताल में प्रवेश | ||
+ | पांचाली का जुए में बाजी लगना | ||
+ | आदि जाने सुने असाधारण | ||
+ | असहायता के उदाहरण । | ||
+ | |||
+ | गार्गी के सिर कलम करने की धमकी | ||
+ | खना की कटी जीभ का कारुण्य | ||
+ | रूप कंवर का जिंदा सती होना | ||
+ | बनवार का सामूहिक बलात्कार | ||
+ | तसलीमा की मौत का फतवा | ||
+ | अपनी आँखों से देखकर | ||
+ | |||
+ | पिता के निर्मम प्रहार से | ||
+ | क्षतविक्षत माँ के शरीर को | ||
+ | सहलाते समय | ||
+ | भगिनी की जलते चर्म की | ||
+ | आग बुझाते समय | ||
+ | निरापद अँधेरे में | ||
+ | स्व-शून्यता की दिशा में | ||
+ | मुँह करके दौड़ते हुए | ||
+ | बेटी को लौटा लाने में | ||
+ | लगी रक्ताक्त ठोकर । | ||
+ | |||
+ | प्रेमी, पति, पुरुष के | ||
+ | विलास, स्वार्थ, अहंकार को | ||
+ | काल- काल से भोगने के बाद भी | ||
+ | मुँह नहीं खोलकर अपने भीतर | ||
+ | अपने को खोजते- खोजते | ||
+ | असंख्य संपर्क | ||
+ | और संस्कारों की बेड़ी से | ||
+ | छिन्न- भिन्न होती अपनी निजता | ||
+ | |||
+ | ढेर ही ढेर | ||
+ | कटी जीभ, कटे हाथ -पाँव | ||
+ | ढेरों जलती लाशें | ||
+ | और उनका रससिक्त अपरिचय का | ||
+ | अरत्नजड़ित स्वर्णपदक में | ||
+ | आत्म निर्वासिता इस | ||
+ | अस्मिता को क्या जान पाएगी . | ||
+ | |||
+ | एक ही साथ एकत्रित होना | ||
+ | संसार के सभी मृत -जीवित नारियों के | ||
+ | आत्म विश्वास के जीवाश्म | ||
+ | घोर-तिरस्कार और मौन हाहाकार...। | ||
</poem> | </poem> |
22:10, 25 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
रचनाकार: अपर्णा महांति (1952)
जन्मस्थान: कपालेश्वर,केंद्रपाड़ा-754211
कविता संग्रह: अव्यक्त आत्मीयता (1991),असती (1993)
अपर्णा
पहचानो
एक साधारण नारी के
स्वाक्षर।
पलक झपकते ही
मिटाने से मिट जाएंगे
पढ़ने बैठोगे तो पढते रह जाओगे
युग -युग तक
आदि काल से
आजतक....
कितनी माया कितना मोह
कितना दाह कितना द्रोह
कितने आंसू कितना लहू
इतिहास के सजीव
शिलालेखों में
कलात्मकता से अंकित
कई साहसी नष्ट-नारियों
के कुछ अक्षर
तैंतीस करोड़ देवी- देवताओं के सामने
दुर्गा के निर्वस्त्र होने से लेकर
अहिल्या का पत्थर बनना
सीता की अग्नि परीक्षा
और पाताल में प्रवेश
पांचाली का जुए में बाजी लगना
आदि जाने सुने असाधारण
असहायता के उदाहरण ।
गार्गी के सिर कलम करने की धमकी
खना की कटी जीभ का कारुण्य
रूप कंवर का जिंदा सती होना
बनवार का सामूहिक बलात्कार
तसलीमा की मौत का फतवा
अपनी आँखों से देखकर
पिता के निर्मम प्रहार से
क्षतविक्षत माँ के शरीर को
सहलाते समय
भगिनी की जलते चर्म की
आग बुझाते समय
निरापद अँधेरे में
स्व-शून्यता की दिशा में
मुँह करके दौड़ते हुए
बेटी को लौटा लाने में
लगी रक्ताक्त ठोकर ।
प्रेमी, पति, पुरुष के
विलास, स्वार्थ, अहंकार को
काल- काल से भोगने के बाद भी
मुँह नहीं खोलकर अपने भीतर
अपने को खोजते- खोजते
असंख्य संपर्क
और संस्कारों की बेड़ी से
छिन्न- भिन्न होती अपनी निजता
ढेर ही ढेर
कटी जीभ, कटे हाथ -पाँव
ढेरों जलती लाशें
और उनका रससिक्त अपरिचय का
अरत्नजड़ित स्वर्णपदक में
आत्म निर्वासिता इस
अस्मिता को क्या जान पाएगी .
एक ही साथ एकत्रित होना
संसार के सभी मृत -जीवित नारियों के
आत्म विश्वास के जीवाश्म
घोर-तिरस्कार और मौन हाहाकार...।