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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर

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अंग व अंग  मिलाकर  नैनन, नैनन  से  प्रभु  नीर  बहाये।  
 
अंग व अंग  मिलाकर  नैनन, नैनन  से  प्रभु  नीर  बहाये।  
 
नेह निबाहन हार प्रभो  अति  स्नेह  सुधामय  बोल  सुनाये।  
 
नेह निबाहन हार प्रभो  अति  स्नेह  सुधामय  बोल  सुनाये।  
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प्रभु  मिले  गले से गला लगा,
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            चरणोदक लीनो धो-धोकर |
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बोले प्रेम भरी वाणी,
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          पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर |
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निज आसन पे बैठा करके,
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          सब सामग्री कर में लीनी |
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चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र,
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            विविध भांति पूजा कीनी |
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बोले न मिले अब तक न सखा,
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        तुम रहे कहाँ सुध भूल गये |
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आनन्द से क्षेम कुशल पूछी,
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          प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये |
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रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर,
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        सब प्रेम से पूजन करती थी |
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स्नान करने को उनको,
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          निज हाथों पानी भरती थी |
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11:47, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण


      
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।

प्रभु मिले गले से गला लगा,
            चरणोदक लीनो धो-धोकर |
बोले प्रेम भरी वाणी,
           पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर |
निज आसन पे बैठा करके,
           सब सामग्री कर में लीनी |
चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र,
            विविध भांति पूजा कीनी |
बोले न मिले अब तक न सखा,
         तुम रहे कहाँ सुध भूल गये |
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी,
          प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये |
रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर,
        सब प्रेम से पूजन करती थी |
स्नान करने को उनको,
          निज हाथों पानी भरती थी |