भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} {{KKCatKavita}} [[Category:लम्बी ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये। | अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये। | ||
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये। | नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये। | ||
+ | |||
+ | प्रभु मिले गले से गला लगा, | ||
+ | चरणोदक लीनो धो-धोकर | | ||
+ | बोले प्रेम भरी वाणी, | ||
+ | पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर | | ||
+ | निज आसन पे बैठा करके, | ||
+ | सब सामग्री कर में लीनी | | ||
+ | चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र, | ||
+ | विविध भांति पूजा कीनी | | ||
+ | बोले न मिले अब तक न सखा, | ||
+ | तुम रहे कहाँ सुध भूल गये | | ||
+ | आनन्द से क्षेम कुशल पूछी, | ||
+ | प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये | | ||
+ | रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर, | ||
+ | सब प्रेम से पूजन करती थी | | ||
+ | स्नान करने को उनको, | ||
+ | निज हाथों पानी भरती थी | | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:47, 29 अक्टूबर 2012 का अवतरण
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
प्रभु मिले गले से गला लगा,
चरणोदक लीनो धो-धोकर |
बोले प्रेम भरी वाणी,
पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर |
निज आसन पे बैठा करके,
सब सामग्री कर में लीनी |
चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र,
विविध भांति पूजा कीनी |
बोले न मिले अब तक न सखा,
तुम रहे कहाँ सुध भूल गये |
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी,
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये |
रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर,
सब प्रेम से पूजन करती थी |
स्नान करने को उनको,
निज हाथों पानी भरती थी |