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"अबकी होली में / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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इस सुनहरी धूप में  
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होली में  
कुछ देर बैठा कीजिए |
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आना जी आना
आज मेरे हाथ की
+
चाहे जो रँग लिए आना ।
ये चाय ताजा पीजिए |
+
भींगेगी देह
 +
मगर याद रहे
 +
मन को भी रंग से सजाना ।
  
भोर में है आपका रूटीन
 
चिड़ियों की तरह ,
 
आप कब रुकतीं ,हमेशा
 
नयी घड़ियों की तरह ,
 
फूल हँसते हैं सुबह
 
कुछ आप भी हँस लीजिए |
 
  
दर्द पाँवों में उनींदी आँख
+
वर्षों से
पर उत्साह मन में ,
+
बर्फ़ जमी प्रीति को
सुबह बच्चों के लिए
+
मद्धम सी आँच पर उबालना,
तुम बैठती -उठती किचन में ,
+
जाने क्या
कालबेल कहती बहनजी
+
चुभता है आँखों में  
ढूध तो ले लीजिए |
+
आना तो फूँककर निकालना,
 +
मैं नाचूँगी
 +
राधा बनकर
 +
तू कान्हा बाँसुरी बजाना ।
  
मेज़ पर अखबार रखती
 
बीनती चावल ,
 
फिर चढ़ाती देवता पर
 
फूल अक्षत -जल ,
 
पल सुनहरे ,अलबमों के
 
बीच मत रख दीजिए |
 
,
 
हैं कहाँ  तुमसे अलग
 
एक्वेरियम की मछलियाँ ,
 
अलग हैं रंगीन पंखों में
 
मगर ये तितलियाँ ,
 
इन्हीं से कुछ रंग ले
 
रंगीन तो हो लीजिए |
 
  
तुम सजाती घर
+
आग लगी
चलो तुमको सजाएँ ,
+
जंगल में या
धुले हाथों पर
+
पलाश दहके हैं,
हरी मेहँदी लगाएं ,
+
मेरे भी
चाँद सा मुख ,माथ पर  
+
आँगन में
सूरज उगा तो लीजिए |
+
कुछ गुलाब महके हैं,
 +
कब तक
 +
हम रखेंगे बाँधकर
 +
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना ।
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लाल हरे
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पीले रंगों भींगी
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चूनर को धूप में सुखाएँगे,
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तुम मन के
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पंख खोल उड़ना
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हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
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मन की हर
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बँधी गाँठ खोलना
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उस दिन तो दरपन हो जाना ।
 +
 
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हारेंगे हम ही
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तुम जीतना
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टॉस मगर जोर से उछालना,
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ओ मांझी
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धार बहुत तेज़ है
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मुझे और नाव को सम्हालना,
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नाव से
 +
उतरना जब घाट पर  
 +
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना ।
 
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13:29, 1 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

होली में
आना जी आना
चाहे जो रँग लिए आना ।
भींगेगी देह
मगर याद रहे
मन को भी रंग से सजाना ।


वर्षों से
बर्फ़ जमी प्रीति को
मद्धम सी आँच पर उबालना,
जाने क्या
चुभता है आँखों में
आना तो फूँककर निकालना,
मैं नाचूँगी
राधा बनकर
तू कान्हा बाँसुरी बजाना ।


आग लगी
जंगल में या
पलाश दहके हैं,
मेरे भी
आँगन में
कुछ गुलाब महके हैं,
कब तक
हम रखेंगे बाँधकर
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना ।


लाल हरे
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
मन की हर
बँधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दरपन हो जाना ।


हारेंगे हम ही
तुम जीतना
टॉस मगर जोर से उछालना,
ओ मांझी
धार बहुत तेज़ है
मुझे और नाव को सम्हालना,
नाव से
उतरना जब घाट पर
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना ।