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"किस मुअत्तर शय को छू आई हवा / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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21:03, 17 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

किस मुअत्तर शै को छू आयी हवा
इस क़दर पहले कहाँ महकी हवा

अपनी ही मर्ज़ी से है ठहरी हुई
कब चराग़ों का कहा मानी हवा

थी बहुत पानी बरसने की उमीद
बादलों को ले उड़ी बाग़ी हवा

हम फ़क़ीरों को बस इतना है बहुत
अन्न थोड़ा, थोड़ा जल, थोड़ी हवा

अपने अपनों को नहीं पहचानते
चल पड़ी है आजकल कैसी हवा

अब्र किसके दुख में रोया रात भर
किसके दुख में रात भर सिसकी हवा

बात सीधे मुंह नहीं करता कोई
गाँव भर को लग गयी शहरी हवा

ऐ ‘अकेला’ किस तरह मुमकिन है ये
लू के मौसम में चले ठंड़ी हवा