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"कर्म / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर

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को किसको दुःख देत है, कर्म देत  झकझौर,  
 
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उरझत सुरझत आप ही, ध्वजा पवन के लौर |   
 
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ध्वजा पवन के लौर,  समज थोरी में सारी,  
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कर्म  गति  बलवान, गति  है  न्यारी-न्यारी |
 
कर्म  गति  बलवान, गति  है  न्यारी-न्यारी |
 
संत समागम सुख है, सत संगत  शुभ  रंग,
 
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शिवदीन सुकर्म ही कर चलो पावो प्रेम उमंग |
 
शिवदीन सुकर्म ही कर चलो पावो प्रेम उमंग |
                       राम गुण गायारे ||
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कर्म  चढ़ावे  स्वर्ग, कर्म  नरकन  में  डारे,
 
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कर्म ही से कारुंस लगे, कर्म ही  धोवत  दाग,
 
कर्म ही से कारुंस लगे, कर्म ही  धोवत  दाग,
 
शिवदीन कर्म गति समझ के उपजवों अनुराग |
 
शिवदीन कर्म गति समझ के उपजवों अनुराग |
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कर्म ही से सुख भोग  मिले, सब कर्म ही से दुःख पावत नाना,
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कर्म ही स्वर्ग विमान  चढ़ावत, कर्म  ही  डारत  नरक निशाना |
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कर्म ही से जग में यश किरती, निंदित  कर्म  ही है  अपमाना,
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शिवदीन कहे नहीं आन को दोष, जो कर्म करे नर वह फल पाना | 
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कर्मन  के  आधीन  सकल  संसार  देख  रे,
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विधिना लिखे विचार  बांचले  सत्य  लेख  रे |
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ज्ञानी ध्यानी और नृपति बनि  रहे  करम  से, 
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चातुर मूरख लोग  दुखी  है  और  भरम  से |
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सन्यासी साधू लखे  भजन  करें  धरि  मौन,
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शिवदीन करम के बस सभी बचा हुआ यहाँ कौन |
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                          राम गुण गायरे ||
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लिखते  पढ़ते  थक  गए,  कर्मन  केरा  हाल,
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कर्मन के बस होत है, ऋषि, नृप, भक्त, कंगाल |
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ऋषि, नृप, भक्त, कंगाल, कर्म का अदभुत् खेला,
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ये  संसार  असार,  जगत  का  देखो मेला |
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मिले  कोऊ  साधु  सुजन, तो  बनि जाये बात,
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शिवदीन भरम सब छांडी के, भजन करो दिन रात |
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                            राम गुण गायरे ||

18:51, 1 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

को किसको दुःख देत है, कर्म देत झकझौर,
उरझत सुरझत आप ही, ध्वजा पवन के लौर |
ध्वजा पवन के लौर, समझ थोरी में सारी,
कर्म गति बलवान, गति है न्यारी-न्यारी |
संत समागम सुख है, सत संगत शुभ रंग,
शिवदीन सुकर्म ही कर चलो पावो प्रेम उमंग |
                       राम गुण गायरे ||
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कर्म चढ़ावे स्वर्ग, कर्म नरकन में डारे,
कर्म धर्म बैकुंठ, कर्म ब्रह्मलोक सिधारे |
कर्म कर्म है कर्म, कर्म की गति गहन है,
कर्म करो शुभ कर्म, बने उज्वल जनमन है |
कर्म ही से कारुंस लगे, कर्म ही धोवत दाग,
शिवदीन कर्म गति समझ के उपजवों अनुराग |
                        राम गुण गायरे ||
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कर्म ही से सुख भोग मिले, सब कर्म ही से दुःख पावत नाना,
कर्म ही स्वर्ग विमान चढ़ावत, कर्म ही डारत नरक निशाना |
कर्म ही से जग में यश किरती, निंदित कर्म ही है अपमाना,
शिवदीन कहे नहीं आन को दोष, जो कर्म करे नर वह फल पाना |
=================================================
कर्मन के आधीन सकल संसार देख रे,
विधिना लिखे विचार बांचले सत्य लेख रे |
ज्ञानी ध्यानी और नृपति बनि रहे करम से,
चातुर मूरख लोग दुखी है और भरम से |
सन्यासी साधू लखे भजन करें धरि मौन,
शिवदीन करम के बस सभी बचा हुआ यहाँ कौन |
                           राम गुण गायरे ||
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लिखते पढ़ते थक गए, कर्मन केरा हाल,
कर्मन के बस होत है, ऋषि, नृप, भक्त, कंगाल |
ऋषि, नृप, भक्त, कंगाल, कर्म का अदभुत् खेला,
ये संसार असार, जगत का देखो मेला |
मिले कोऊ साधु सुजन, तो बनि जाये बात,
शिवदीन भरम सब छांडी के, भजन करो दिन रात |
                            राम गुण गायरे ||