भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज तनक़ीद की लहरों में असीरों की तरह / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मयंक अवस्थी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> आज ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:58, 6 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

आज तनक़ीद की लहरों में असीरों की तरह
फ़िक़्र अपनी है समन्दर में जज़ीरों की तरह

रहमते –अब्र का तालिब है फक़ीरों की तरह
एक दरिया जो बज़ाहिर है अमीरों की तरह

दूर के ढोल समाअत न बदर कर दें कहीं
उनके आदाब में बजिये न मज़ीरों की तरह

गैर-मुम्किन कोई तहरीर दिले-दरिया पर
रोज़ लिखती है हवा जा के हक़ीरों की तरह

उँगलियाँ वो मेरे अपनो की हैं गैरो की नहीं
उठ के लगती हैं कलेजे पे जो तीरों की तरह

अब तो उस्ताद भी शागिर्द हुये जाते हैं
ढाई आखर जो पढा हमने कबीरों की तरह

हम मिटाते हैं मगर दिल पे बनी रहती हैं
कुछ खराशें जो हैं पत्थर की लक़ीरों की तरह