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"इक चाँद तीरगी में समर रोशनी का था / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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22:00, 6 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
इक चाँद तीरगी में समर रोशनी का था
फिर भेद खुल गया वो भँवर रोशनी का था
सूरज पे तूने आँख तरेरी थी , याद कर
बीनाइयों पे फिर जो असर रोशनी का था
सब चाँदनी किसी की इनायत थी चाँद पर
उस दाग़दार शै पे कवर रोशनी का था
मग़रिब की मदभरी हुई रातों में खो गया
इस घर में कोई लख़्ते –जिगर रोशनी का था
दरिया में उसने डूब के कर ली है खुदकुशी
जिस शै का आसमाँ पे सफर रोशनी का था
जर्रे को आफताब बनाया था हमने और
धरती पे कहर शामो-सहर रोशनी का था