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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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कृष्ण तेरी राधा गजब करे।
य़ा मनमानी करत लाडली ना निचली रहत घरे।
सब अपराध क्षमा कर मेरे शिवदीन कहत है हित में तेरे,
मान मान मत मान श्याम श्यामा को क्यूं न बत है हित में तेरे,
मान मान मत मान श्याम श्यामा को क्यूं न बरे।
<poem>
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