भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी तो राहे-मुहब्बत में ये कमाल दिखे / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> कभी ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
सफ़र का चलते ही रहना तो ठीक है लेकिन | सफ़र का चलते ही रहना तो ठीक है लेकिन | ||
− | क़दम वहाँ पे रखें क्यूँ जहाँ बवाल दिखे | + | क़दम वहाँ पे रखें क्यूँ जहाँ बवाल दिखे |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
12:34, 13 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
कभी तो राहे-मुहब्बत में ये कमाल दिखे
बिना बताये उसे मेरे दिल का हाल दिखे
बहार आती है तो फूल भी निखरते हैं
है दिल में प्यार तो गालों पे भी गुलाल दिखे
दिल उसकी सारी ख़ताएं मुआफ़ कर देगा
बस उस की आँखों में इक मरतबा मलाल दिखे
दिमाग़ प्यार को भगवान कह न पायेगा
ग़ज़ल की फ़िक्र में दिल का ही इस्तेमाल दिखे
खिज़ां के दौर में जब सब ने दर्द पाया है
तो फिर बहार में क्यूँ कोई तंगहाल दिखे
सफ़र का चलते ही रहना तो ठीक है लेकिन
क़दम वहाँ पे रखें क्यूँ जहाँ बवाल दिखे